नक्षत्र क्या और कितने प्रकार के होते हैं और उनकी विशेषताएं क्या होती हैं? इस आर्टिकल में जानते हैं इन सभी सवालों का जवाब और क्योंकि समय है नवरात्रि का ऐसे में एस्ट्रोसेज लेकर आया है आपके लिए एस्ट्रोसेज नवरात्रि धमाका जहां मिलेगी आपको एस्ट्रो प्रोडक्ट्स पर भारी छूट अभी ऑर्डर करने के लिए नीचे दिये बटन पर क्लिक करें।
वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का इतना मान क्यों हैं? और मुहूर्त नामकरण और गुण मिलान में नक्षत्रों का क्या महत्व होता है? इस आर्टिकल में आपको इन सभी बातों की विस्तृत जानकारी प्रदान की जा रही है।
इतिहास: चंद्रमा और उनकी 27 पत्नियाँ
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक राजा हुआ करते थे, जिनका नाम था राजा दक्ष। राजा दक्ष ने चंद्रमा को अपनी सभी 27 बेटियों से शादी करने का प्रस्ताव दिया। इस प्रस्ताव पर चंद्रमा राजी हो गए। राजा की 27 बेटियां 27 नक्षत्र थीं। हालांकि चंद्रमा इन सभी में सबसे ज्यादा प्रेम रोहिणी से करते थे। ऐसे में कुछ ही समय में चंद्रमा को रानी रोहिणी के साथ समय व्यतीत करना सबसे ज्यादा अच्छा लगने लगा। रोहिणी नक्षत्र में ही चंद्रमा को उच्च का माना जाता है। इस बात से नाखुश चंद्रमा की अन्य 26 पत्नियों ने राजा दक्ष यानी अपने पिता से चंद्रमा की शिकायत कर दी, जिसके बाद राजा दक्ष ने बार-बार चंद्रमा को समझाया और उनसे अनुरोध किया कि, वह अपनी सभी 27 पत्नियों को समान रूप से प्यार करें, लेकिन चंद्रमा का प्रेम रानी रोहिणी की तरफ ज्यादा ही रहा।
जब काफी समझाने पर भी चंद्रमा ने राजा दक्ष की बात नहीं मानी तो इससे राजा को बुरा लग गया और उन्होंने गुस्से में आकर चंद्रमा को श्राप दे दिया। राजा के श्राप से चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गए और उनकी चमक धूमिल होने लगी। धीरे-धीरे करते हुए उनकी चमक समाप्त हो गयी, जिससे पृथ्वी की गति बिगड़ने लगी। ऐसी स्थिति में सभी ऋषि-मुनि देवता परेशान हो गए और अंत में भगवान ब्रह्मा की शरण में गए। देवताओं ने हस्तक्षेप किया और राजा दक्ष से चंद्रमा को दिया गया उनका श्राप वापस लेने का अनुरोध किया। देवताओं ने राजा को वचन दिया कि, एक बार अगर आप चंद्रमा को दिया गया श्राप वापस ले लेते हैं तो, चंद्रमा अपनी सभी पत्नियों के साथ एक समान समय बिताएंगे और सभी को एक समान प्रेम करेंगे।
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हालांकि श्राप को पूरी तरह से वापस नहीं लिया जा सकता था, इसलिए चंद्रमा की स्थिति में बदलाव देखने को मिलते हैं। एक माह में दो पक्ष होते हैं, उनमें से एक पक्ष में चंद्रमा वरदान के प्रभाव से निखरता है तो वहीं, दूसरे पक्ष में राजा दक्ष के श्राप से चंद्रमा क्षीण होता नजर आता है। देवताओं के वरदान से चंद्रमा शुक्ल पक्ष में अपने तेज पर होता है और कृष्ण पक्ष में चंद्रमा धूमिल नजर आता है, और यही मुख्य कारण है कि चंद्रमा 1 महीने की अवधि में सभी 27 नक्षत्रों के माध्यम से अपने चक्र को पूरा करता है, जिससे कभी पूर्णिमा की स्थिति बनती है तो कभी अमावस्या की और इसी दौरान चंद्रमा का आकार बढ़ता और कम होता नजर आता है।
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नक्षत्रों का महत्व
नक्षत्र शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है, पहला नक्शा जिसका अर्थ होता है मानचित्र या मैप, और दूसरा तारा। ऐसे में इन दोनों शब्द को जोड़ने पर बनता है नक्षत्र जिसका अर्थ होता है तारों का मानचित्र। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं, और वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। चंद्रमा अपनी कक्षा पर चलता हुआ पृथ्वी की एक परिक्रमा को लगभग 27.3 दिन में पूरा करता है। ऐसे में माना जाता है कि चंद्रमा प्रतिदिन तकरीबन एक नक्षत्र की यात्रा करता है। ज्योतिष शास्त्र में सबसे सटीक और सही भविष्यवाणी करने के लिए नक्षत्रों का ही उपयोग किया जाता है। इन नक्षत्रों को विभिन्न प्रकार के वर्गों के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जैसे, इनकी मूलभूत विशेषताएँ, इन की प्राथमिक प्रेरणा, धर्म-मोक्ष इत्यादि।
नक्षत्र
- जन्म चार्ट नक्षत्र के अनुसार: बच्चे के जन्म के समय ग्रहों की चाल और नक्षत्र की गणना की जाती है और इसलिए व्यक्तिगत चार्ट का विश्लेषण प्रदान किया जाता है।
- हर व्यक्ति का व्यक्तित्व नक्षत्रों पर ही आधारित होता है क्योंकि आपके पूरे जीवन में नक्षत्रों की चाल आपके जन्म, व्यक्तित्व, आपकी ताकत और कमज़ोरियों से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की क्षमता रखती हैं।
- आपका जन्म नक्षत्र क्या होता है? दरअसल आपके जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है उसे ही आपका जन्म नक्षत्र माना जाता है।
- हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बताया जाता है कि, ऋषि-मुनियों ने आसमान का बारह हिस्सा कर दिया था और इन्हीं 12 हिस्सों को अलग-अलग राशियों के नाम से जाना जाता है। इसके बाद इसके और सूक्ष्म अध्ययन के लिए इसे 27 अन्य भागों में बांट दिया गया, जिसे हम नक्षत्र कहते हैं। राशि बड़ी होती है और नक्षत्र छोटे, जिसके परिणामस्वरूप एक राशि के अंदर लगभग 2.25 नक्षत्र आते हैं।
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जन्म राशि या जन्म नक्षत्र
एक व्यक्ति की जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों को अलग-अलग राशियों में रखा जाता है। इन ग्रहों को विभिन्न नक्षत्रों में भी तदनुसार रखा जाता है। राशि के भीतर नक्षत्र में ग्रह के साथ या उससे जुड़ा एक महत्व माना गया है। इन 27 नक्षत्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
- पहला शुभ नक्षत्र इसे देव-गण भी माना जाता है। इस श्रेणी में आने वाले नक्षत्रों को देव-दूत माना जाता है, और वह भगवान की तरह सूक्ष्म और परिष्कृत होते हैं।
- इसके बाद दूसरी श्रेणी आती है मनुष्य गण की, जिसे मध्यम नक्षत्र माना जाता है। इस श्रेणी में आने वाले नक्षत्र इंसानों की ही तरह माने जाते हैं और इंसानों की ही तरह काम करते हैं।
- अंतिम और तीसरी श्रेणी होती है राक्षस गण, जिन्हें अशुभ नक्षत्र भी माना जाता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक राक्षस तो नहीं होते हैं, लेकिन उनके अंदर कुछ हद तक बुरे और विध्वंसक प्रवृत्ति अवश्य मौजूद होते हैं।
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अश्विनी नक्षत्र (देव-गण)
इस नक्षत्र में 3 तारे एक साथ चमकते हुए अश्व के मुंह की तरह प्रतीत होते हैं। अश्विनी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक सुंदर होते हैं, उन्हें अच्छी तरह से तैयार होना बेहद पसंद होता है, साथ ही स्वभाव में वह शांत होते हैं और आमतौर पर उन्हें आभूषण और दवा/चिकित्सा का शौक होता है।
भरिणी नक्षत्र (मनुष्य-गण)
भरणी नक्षत्र की आकृति गर्भ की तरह प्रतीत होती है। इस नक्षत्र में भी प्रमुख रूप से तीन सितारे होते हैं। भरणी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक अपने जीवन के प्रति बेहद उत्साहित होते हैं। इसके अलावा उन्हें उनके जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और यह कभी भी झूठ नहीं बोलते हैं।
कृत्तिका नक्षत्र (राक्षस-गण)
कृत्तिका नक्षत्र एक घोड़े की नाल के आकार में सात सितारों का एक नक्षत्र होता है। कृत्तिका नक्षत्र में पैदा हुए जातक जन्म-जात स्वाभिमानी होते हैं। इसके साथ ही उन्हें जीवन में शक्ति या सत्ता में रहने की हमेशा भूख रहती है। शारीरिक रूप से मजबूत और स्वास्थ्य सदैव उत्तम रहता है। हालाँकि इनके अंदर गुस्सा बेहद होता है।
रोहिणी नक्षत्र (मनुष्य-गण)
रोहिणी नक्षत्र बैलगाड़ी के आकार में होता है। रोहिणी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक सुंदर होते हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग ईमानदार, सच्चे, बेहद ही उदार स्वभाव के और चरित्रवान होते हैं।
मृगशिरा नक्षत्र (देव-गण)
मृगशिरा नक्षत्र हिरण के चेहरे के आकार में होता है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं। यह साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं और इन्हें आर्थिक पक्ष के लिहाज से कभी परेशानियां नहीं झेलनी पड़ती हैं। धन इनके पास आराम से आता है, लेकिन आमतौर पर इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग डरपोक होते हैं और हीन भावना से ग्रस्त माने जाते हैं।
आर्द्रा नक्षत्र (मनुष्य-गण)
आर्द्रा नक्षत्र एक रत्न के आकार में होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक बेहद ही भावनात्मक होते हैं, लेकिन ईमानदार और भरोसेमंद बिल्कुल भी नहीं होते हैं। इसके अलावा यह हमेशा स्वाभिमानी इनके अंदर गुस्सा बहुत होता है और यह हमेशा आत्म केंद्रित ही नजर आते हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र (देव-गण)
पुनर्वसु नक्षत्र तरकश की तरह प्रतीत होता है। महाभारत वन पर्व के अनुसार पुनर्वसु नक्षत्र में ही भगवान राम का जन्म हुआ था। पुनर्वसु का अर्थ होता है पुनः शुभ। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से विनम्र और चपल होते हैं। इसके साथ ही वह बेहद ही चतुर और व्यापारिक सौदेबाजी में पक्के होते हैं।
पुष्य नक्षत्र (देव-गण)
पुष्य नक्षत्र एक चक्र या पहिये की तरह नजर आता है। इसे सबसे पवित्र सितारा माना गया है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक परम सत्य के चाहने वाले होते हैं। साथ ही यह ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं। यूं तो उनके पास एक संतुलित और शांत दिमाग होता है लेकिन अपने दृष्टिकोण में अक्सर वे डरपोक और सतर्क माने जाते हैं।
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आश्लेषा नक्षत्र (राक्षस-गण)
आश्लेषा नक्षत्र नौवां नक्षत्र होता है। यह नक्षत्र सुदर्शन चक्र के आकार में होता है। सुदर्शन चक्र जिसे दिव्य चक्र माना जाता है। आश्लेषा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक खलनायक की तरह होते हैं और दूसरों को यातना देना इन्हें बेहद पसंद होता है। इसके अलावा स्वभाव से कपटी और स्वार्थी होते हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ इनका स्वभाव हंसमुख भी होता है और यह भोजन के प्रेमी होते हैं।
मघा नक्षत्र (राक्षस-गण)
मघा नक्षत्र में कुल 5 तारे होते हैं। यह नक्षत्र एक घर के तरह दिखाई देता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग स्वाभिमानी होते हैं साथी इन्हें कड़ी मेहनत करने वाला नहीं माना जा सकता है। हालांकि जीवन में सुख-समृद्धि इनके पास बेहद ही आसानी से आ जाती है और वह जीवन सुख-सुविधाओं और विलासिता से परिपूर्ण होकर जीते हैं। इन्हें खूबसूरत चीजें और फूल बहुत पसंद होते हैं।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र (मनुष्य-गण)
पूर्वा-फाल्गुनी नक्षत्र झूले, सोफ़े या बिस्तर के अगले पाये की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से परोपकारी होते हैं और इनमें जन्म-जात सहानुभूति की भावना होती है। साथ ही इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग अच्छे व्यवसाई बनते हैं क्योंकि इनकी भाषण देने की शैली बेहद ही शानदार होती है। साथ ही किसी भी काम का परिणाम का इन्हें पूर्वाभास हो जाता है।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र (मनुष्य-गण)
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र बिस्तर या चारपाई के पिछले पाये की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वाभिमानी होने के साथ-साथ तुनक मिज़ाज के होते हैं। इसके अलावा स्वभाव से यह सच्चे, ईमानदार और बड़े दिलवाले होते हैं। हालांकि इन्हें अ-पर्याप्त भूख की शिकायत रहती है।
हस्त नक्षत्र (देव-गण)
हस्त नक्षत्र में कुल पांच सितारे होते हैं जो एक इंसान के हाथ की आकृति बनाते हैं। इस नक्षत्र में चंद्रमा के चलते इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक परोपकारी, कृतग्य और धर्मार्थ स्वभाव के होते हैं। इसके अलावा इस नक्षत्र के तहत जन्मे लोग लालची स्वभाव के भी होते हैं। इन्हें शराब और संगीत का शौक होता है।
चित्रा नक्षत्र (राक्षस-गण)
चित्रा नक्षत्र में मोती के आकार में दिखने वाला एक बेहद ही चमकीला सितारा होता है। यह नक्षत्र कन्या और तुला राशि तक फैली हुई है। चित्रा नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग की काया बेहद ही अच्छी होती है। सुडौल फिगर और आकर्षक विशेषताएँ और आँख इनकी प्रमुखता मानी जाती है।
स्वाति नक्षत्र (देव-गण)
स्वाति नक्षत्र में सिर्फ एक सितारा होता है यह तलवार या मूंगा की तरह प्रतीत होता है। स्वाति नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग अपने परिष्कृत, प्रतिष्ठित और शिष्टाचार के लिए जाने जाते हैं। स्वभाव में थोड़े शर्मीले होते हैं और इनका आत्म नियंत्रण बेहद ही शानदार होता है। हालांकि वे जिद्दी स्वभाव के भी हो सकते हैं।
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विशाखा नक्षत्र (राक्षस-गण)
विशाखा नक्षत्र पांच सितारों से मिलकर बना है और यह कुम्हार के चाक की तरह प्रतीत होता है। यह तुला और वृश्चिक राशि तक फैला हुआ है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों को हमेशा ईश्वर का भय रहता है साथ ही ये स्वभाव में बेहद ही ईमानदार होते हैं। कभी-कभी आक्रामक, ईर्ष्यालु और कंजूस और तुनक मिज़ाज भी हो सकते हैं।
अनुराधा नक्षत्र (देव-गण)
अनुराधा नक्षत्र में कुल 4 सितारे होते हैं जो एक हल की पंक्ति या कमल की तरह प्रतीत होता है। चंद्रमा यहां विभाजन में लेकिन देवघर नक्षत्र में है। ऐसे में अनुराधा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक शांत स्वभाव के सुंदर और ईश्वर भक्त होते हैं विदेशी भूमि में यह बेहद ही भाग्यशाली साबित होते हैं।
ज्येष्ठा नक्षत्र (राक्षस-गण)
ज्येष्ठा नक्षत्र एक लटकते हुए झुमके या छाते की तरह प्रतीत होता है। इसमें तीन प्रमुख सितारे होते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक विपरीतलिंगी के जातकों के लिहाज से बेहद ही आकर्षक साबित होते हैं। साथ ही इन्हें दान-पुण्य इत्यादि करना बेहद पसंद होता है।
मूल नक्षत्र (राक्षस-गण)
मूल नक्षत्र में शेर के आकार के 11 तारे होते हैं। मूल नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक अपने विचारों और ख्यालातों में दृढ़ होते हैं। इसके अलावा स्वभाव से यह बेहद ही चतुर चालाक होते हैं और करीबी रिश्तेदारों से दूरी बना कर रखना इन्हें पसंद होता है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र (मनुष्य-गण)
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कुल 4 सितारे होते हैं जो हाथी दांत, पंखे या डलिया की तरह दिखाई देते हैं। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक आत्मा स्वाभिमानी होने के साथ-साथ बेहद ही उदार स्वभाव, दयालु और धर्मार्थ स्वभाव के होते हैं।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र (मनुष्य-गण)
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में कुल 3 सितारे होते हैं जो हाथी दाँत या छोटी चारपाई की तरह प्रतीत होते हैं। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों का शारीरिक संरचना बेहद ही शानदार होती है। लंबी नाक और शानदार विशेषताएँ इनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती हैं। इन्हें अच्छा भोजन, कोमल और दयालु स्वभाव बेहद ही पसंद होता है।
श्रवण नक्षत्र (देव-गण)
श्रवण नक्षत्र में तीन तारे होते हैं। चंद्रमा इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों को अत्यधिक बुद्धि और महान नेक-दिल बनाता है। साथ ही इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों का स्वभाव बेहद ही विनम्र और गरिमा पूर्ण होता है।
धनिष्ठा नक्षत्र (राक्षस-गण)
धनिष्ठा नक्षत्र ड्रम के आकार का होता है और इसमें चार तारे होते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए लोग बेहद ही महत्वाकांक्षी और स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं। इसके अलावा इनमें वीरता और साहस कूट-कूट कर भरी होती है।
शतभिषा नक्षत्र (राक्षस-गण)
शतभिषा नक्षत्र में यूँ तो सौ तारे होते हैं लेकिन देखा केवल एक को ही जा सकता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक गुणी और बेहद ही सच्चे होते हैं और आमतौर पर इन्हें सभी लोग प्यार करते हैं।
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र (मनुष्य-गण)
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र केवल दो सितारों से मिलकर बना है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक खुद को कम आंकते हैं। अक्सर उदास रहने वाले इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से ईर्ष्यालु और लालची होते हैं।
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र (मनुष्य-गण)
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र दो सितारों से मिलकर बना है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक कला और विज्ञान के शौकीन होते हैं। आमतौर पर यह धर्मार्थ और दयालु स्वभाव के होते हैं।
रेवती नक्षत्र (देव-गण)
32 सितारों से मिलकर बना रेवती नक्षत्र एक ढोल या मछली के जोड़े की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों की शारीरिक संरचना बेहद ही अच्छी होती है और इन्हें मजबूत और आकर्षक शरीर का वरदान प्राप्त होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग कूटनीतिक रूप से भी चतुर होते हैं साथ ही इनके पास शिष्टाचार, शिक्षा और धन परिपूर्ण रहता है।
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नक्षत्र के आधार पर मुहूर्त का चयन
- नरम और कोमल नक्षत्र
मृगशिरा, अनुराधा और रेवती नक्षत्र वित्त, सीखने, समाजीकरण, कामुक सुख, इवेंट बिज़नेस, नए वस्त्र और परिधान पहनने, शादी के उद्देश्य, कलात्मक चीजों, कृषि और यात्राओं के लिए बेहद अच्छे माने जाते हैं।
- हलके और तीव्र नक्षत्र
अश्विनी, पुष्य और हस्त नक्षत्र किसी भी तरह के खेल के लिए अच्छे माने गए हैं इसके अलावा विलासिता का आनंद लेना, नए उद्योग कार्यालय का उद्घाटन करना, कौशल मजदूर, चिकित्सा उपचार, सामाजिकता, कुछ भी खरीदना या बेचना, किसी भी पूजा या आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए, ऋण देने और प्राप्त करने के लिए या नई यात्राएँ शुरू करने के लिए भी उत्तम माना गया है।
- उग्र/भयंकर नक्षत्र
आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए, आत्माओं को बुलाने के लिए, जेल जाने के लिए, विरहा/अलगाव के लिए, विनाश के कार्य करने और गठबंधन तोड़ने के लिए उपयुक्त हैं।
- चर अथवा चल नक्षत्र
पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा चर/चल, फुर्तीले नक्षत्र माने गए हैं। ये नक्षत्र छोटी यात्राओं के लिए लाभदायक माने गए हैं इसके साथ ही कन्वेक्शन, बागवानी, किसी यात्रा में जाना या समाजीकरण और कुछ भी ऐसा काम जो छोटे समय के के लिए हो, इन नक्षत्रों में किया जाना चाहिए।
- तेज नक्षत्र
भरिणी, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद ये नक्षत्र बुराईयों के लिए, जैसे किसी को धोखा देने या टकराव के लिए उपयुक्त हैं। ये नक्षत्र लड़ाई, आग लगाने, या विनाश के किसी भी कार्य के लिए दुश्मनों के विनाश के लिए भी उपयोगी हैं। कृत्तिका और विशाखा मिश्रित नक्षत्र हैं और दैनिक मजदूरी और पेशेवर जिम्मेदारियों के लिए अच्छे माने गए हैं।
बच्चे का नामकरण
किसी भी बच्चे का नामकरण इस लिहाज़ से किया जाता है कि, बच्चे के नाम का पहले अक्षर उसके नक्षत्र या उस चरण जिसमें उसका जन्म हुआ हो, उसके अक्षर से मेल खाए। उदाहरण के तौर पर समझाएं तो मान लीजिये किसी बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, तो ऐसे में बच्चे का नाम “चु” शब्द से किया जायेगा। ऐसे ही मान लीजिये बच्चे का जन्म दूसरे चरण में हुआ है तो इसके लिहाज़ से बच्चे का नाम “चे” शब्द से किया जायेगा और आगे की गणना इसी आधार पर चलती जाएगी।
पंच-काल की रचना करने वाला नक्षत्र
पंचक का अर्थ होता है पांच दिन। प्रत्येक चंद्र माह में, पांच दिनों की एक ऐसी अवधि होती है जब चंद्रमा कुंभ राशि से होकर पांच नक्षत्रों, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों के ऊपर से गुजरता है। इस अवधि को पंचक कहा जाता है। किसी भी शुभ समारोह जैसे शादी आदि को आयोजित करने के लिए अवधि को सही नहीं माना जाता है।
मूल- नक्षत्र
नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और उनके अलग अलग फल भी होते हैं। कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं। उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र या गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। इस प्रकार हमारे पास मूल नक्षत्र आश्लेषा और माघ, ज्येष्ठा और मूल, रेवती और अश्विनी हैं। माना जाता है कि, जब किसी शिशु का जन्म इन नक्षत्रों में होता है तो इससे बालक के स्वास्थ्य की स्थिति, या फिर उसकी माँ की स्थिति या परिवार की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। इन नक्षत्रों के सबसे महत्वपूर्ण चरणों की बात करें तो, आश्लेषा नक्षत्र का चौथा चरण, ज्येष्ठा नक्षत्र का चौथा चरण और रेवती नक्षत्र का चौथा चरण माना गया है। इसके अलावा माघ नक्षत्र का पहला चरण, मूल नक्षत्र का पहला चरण, और अश्विनी नक्षत्र का पहला चरण होता है। ये शिशु के जन्म के समय दोष का कारण बनते हैं, जिसे आमतौर पर गंड – मूलरिश कहा जाता है।
इसके तहत पैदा हुए बच्चे का जीवित रहना बेहद नाज़ुक माना जाता है क्योंकि मूल नक्षत्र को बेहद ही अशुभ माना गया है। यदि शिशु का जन्म मूल नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है तो ये बच्चे के पिता के लिए हानिकारक साबित होता है, और यदि दूसरे चरण में हुआ है तो ये माँ के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अगर तीसरे चरण में हुआ है तो, इससे माता-पिता को धन हानि होती है। ऐसी स्थिति में नक्षत्रों के दुष्प्रभाव को खत्म या कम करने के लिए ग्रह शांति के लिए पूजा-पाठ इत्यादि कराने की सलाह दी जाती है।
शादी-विवाह के लिए नक्षत्र मिलान
विवाह के लिए, राशि मिलान के अलावा, लड़के और लड़की के नक्षत्र का मिलान करना पड़ता है। ये दो तरीके से किया जाता है। एक तरीका होता है जिसमें लड़का-लड़की के गुण का मिलान किया जाता है और दूसरे तरीके में, नाडी दोष से बचना देखा जाता है। कैसा देखा जाता है इसकी जानकारी हम आपको संक्षिप्त में नीचे प्रदान कर रहे हैं।
गुण मिलान: जैसा हमने आपको पहले बताया, प्रत्येक नक्षत्र एक व्यक्ति के जीवन में कुछ गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुल मिलाकर नौ गुण देखे जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक में चार अंक होते हैं। ऐसे में गुण मिलान का कुल योग बनता है 36 अंकों का। अगर लड़का-लड़की की कुंडली में सभी गुण मिलते हैं तो ये 36-36 गुण वाला रिश्ता कहा जाता है।
एक शादी को सुखी और संपन्न बनाने के लिए कम-से-कम 18 गुणों का मिलना आवश्यक बताया गया है। यानि इससे ऊपर हो सकता है, लेकिन इससे कम को कुंडली मिलान में अच्छा नहीं माना गया है। यदि लड़का और लड़की दोनों के नक्षत्र और गुण अनुकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है, लेकिन वहीं अगर दोनों के नक्षत्र प्रतिकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय और क्लेश भरा गुजरता है। एक बार नक्षत्र राशि में होने के बाद, गुण मिलान किया जा सकता है। देव गण नक्षत्र दोनों अन्य नक्षत्रों अर्थात मनुष्य और राक्षस गण नक्षत्रों के साथ तालमेल बैठा सकते हैं, हालाँकि मनुष्य और राक्षस गुण नक्षत्र कभी एक साथ तालमेल नहीं बिठा सकते हैं। इसे गण-महादोष कहा जाता है और अमूमन तौर पर मनुष्य गण और राक्षस गण के व्यक्तियों के बीच शादी ना किये जाने की सलाह दी जाती है।
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निष्कर्ष
नक्षत्र प्रतिदिन हमारे मन को प्रभावित करते हैं, क्योंकि चंद्रमा 1 महीने में रोजाना राशि चक्र के एक नक्षत्र से होकर गुजरता है। ऐसे में स्वाभाविक है इसका हमारे जीवन पर प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। हमारी जन्म नक्षत्रों का निश्चित स्वभाव और जन्म के समय उनमें स्थित ग्रह हमारी आत्मा का मार्गदर्शन करते हैं जो हमारे पूरे जीवन काल में हमारे विकास को प्रेरित करती है। नक्षत्र के साथ जो बात हमें महत्वपूर्ण तौर पर सीखने की जरूरत है वह यह कि जो परेशानियां या मानसिक समस्याएं हमें प्रभावित कर रही है उन्हें अपने जीवन से दूर रख कर हम कैसे उनसे बाहर निकल सकते हैं।
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आशा है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
अति उत्तम और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने धन्यवाद जी 🙏🙏
आपका ज्योतिष हमे अच्छा लगता है.