हमारे देश में इतने मंदिर हैं और उनसे जुड़ी इतनी कथाएँ हैं कि अगर उनको एक जगह एकत्रित किया जाये तो शायद हजारों पन्ने भी उन कथाओं को समेट न पाएँ। सनातन धर्म में देवी के स्वरूप की पूजा बहुत ही श्रद्धा भाव से की जाती है। माता भगवती के कुल 51 शक्तिपीठ मौजूद हैं जहां भक्तों का तांता लगा रहता है। इन्हीं 51 शक्तिपीठ में से एक है नैना देवी का मंदिर। आज हम इस लेख में आपको नैना देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में मान्यता है कि इसी जगह पर राक्षस महिषासुर का माता ने वध किया था।
जीवन की दुविधा दूर करने के लिए विद्वान ज्योतिषियों से करें फोन पर बात और चैट
नैना देवी मंदिर
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के शिवालिक पहाड़ियों के खूबसूरत वादियों के बीच बसा है माता नैना देवी का मंदिर। समुद्र तल से 1177 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह मंदिर सभी सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से आँख संबंधी हर रोग का नाश हो जाता है।
मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान हनुमान विराजमान हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। मध्य में माता नैना देवी की प्रतिमा है। जबकि दायीं ओर माता काली की प्रतिमा है और वहीं बायीं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर परिसर में कई सारे पीपल के पेड़ मौजूद हैं जिन्हें कई हजार साल पुराना बताया जाता है।
नैना देवी मंदिर की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा है। जिसके अनुसार राजा दक्ष की पुत्री सती का विवाह महादेव से हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में भगवान महादेव का कोई स्थान नहीं रखा। अपने पति का अपमान देख कर माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे। भगवान शिव ने जब यह दृश्य देखा तो उन्होंने क्रोध और दुख के मिश्रित भाव में माता सती को गोद में उठा कर तांडव करना आरंभ कर दिया। इस वजह से सृष्टि पर प्रलय आ गयी।
यह देख कर सभी देवताओं ने भगवान श्री विष्णु से इस समस्या का हल निकालने को कहा। जिसके परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किए। माता सती के शरीर के जितने टुकड़े पृथ्वी पर गिरे, वह सारी जगह शक्तिपीठ कहलाई। मान्यता है कि नैना देवी मंदिर में माता सती के नैन गिरे थे।
वर्षों बाद उस स्थान पर एक नैना नामक चरवाहा बालक अपनी गायें चराने गया। तो उसने देखा कि एक गाय एक विशेष स्थान पर रुक जाती और उसका दूध स्वयं ही उस स्थान पर गिरने लगता। यह प्रक्रिया काफी दिनों तक चली। फिर एक दिन देवी उस बालक के सपने में आयीं और उससे कहा कि जिस स्थान पर गाय का दूध टपकता है, वहाँ उनका पिंड है। बालक ने यह बात जाकर नगर के राजा बीर चंद को बताई। राजा बीर चंद ने बच्चे की बात मानते हुए उस जगह पर खुदाई करवाई तो वहाँ से नैना देवी की पिंड अवतरित हुई। जिसके बाद राजा ने वहां मंदिर का निर्माण करवाया।
नैना देवी के मंदिर के पास मौजूद दिव्य तालाब
मंदिर परिसर से थोड़ी ही दूर नैनी तालाब मौजूद है। इस तालाब को लेकर भी एक दंतकथा है। इस दंतकथा के अनुसार एक बार अत्री, पुलत्स्य और पुलह ऋषि इस इलाके में भ्रमण कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि उस इलाके में कहीं भी कोई पानी का स्त्रोत नहीं है। ऐसे में उन तीन ऋषियों ने मानसरोवर से जल लाकर उस जगह पर पानी के तालाब का निर्माण किया। मान्यता है कि उस तालाब में स्नान से वही फल प्राप्त होता है जो मानसरोवर झील में नहाने से प्राप्त होता है।
महिषासुर का वध स्थल
नैना देवी मंदिर को महिषापीठ के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मा का वरदान प्राप्त करने के बाद महिषासुर नामक दैत्य का अत्याचार पृथ्वीलोक पर काफी बढ़ गया। उसने देवताओं तक को परेशान करना शुरू कर दिया। चूंकि महिषासुर को भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध किसी स्त्री के हाथों ही होगा इसलिए सभी देवताओं के तेज से देवी भगवती उसका वध करने के लिए उत्पन्न हुईं। मान्यता है कि नैना देवी ही वह जगह है जहां देवी ने महिषासुर का वध किया था। माता ने महिषासुर का वध करने के बाद उसकी आँखें निकाल ली थीं।
यह भी पढ़ें: ये हैं भारत के पांच सबसे अमीर मंदिर, कमाई जान कर उड़ जाएंगे आपके होश
ऐसे में अगर आप इस इलाके में घूमने जा रहे हैं या फिर आसपास ही कहीं मौजूद हैं तो माँ नैना देवी के दर्शन करना बिलकुल भी न भूलें। आपको बताते चलें कि नवरात्रि के दौरान यहाँ एक बहुत बड़ा मेला लगता है और माता के दर्शन के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमरती है।
हमें उम्मीद है कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इस लेख को अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ साझा कर सकते हैं। धन्यवाद!