धार्मिक नगरी वृन्दावन में एक ऐसी जगह हैं जहाँ के बारे में कहा जाता है कि यहाँ आज भी भगवान कृष्ण राधा माता के साथ यहाँ हर रात्रि रास रचाने आते हैं। इस पावन और बेहद ही खूबसूरत जगह का नाम है निधि-वन।
निधि-वन को एक अत्यंत पवित्र और रहस्मयी धार्मिक स्थान माना जाता है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि निधि-वन में भगवान श्रीकृष्ण और श्री राधा आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाने आते हैं। रास रचाने के बाद निधि-वन परिसर में स्थापित रंग महल में दोनों सोने जाते हैं । इसी वजह के चलते आज भी हर रोज़ रंग महल में प्रसाद रखा जाता है।
श्री कृष्ण और श्री राधा के लिए पलंग लगाया जाता है
हर रोज़ भगवान कृष्ण और माता राधा यहाँ सच में आते हैं ऐसा सोचकर यहाँ के शयनकक्ष को रोज़ संवारा जाता है लेकिन हर सुबह बिस्तरों को देखने से ऐसा लगता है कि यहाँ रात में ज़रूर कोई सो कर गया है। लगभग दो ढाई एकड़ क्षेत्र फल में फैले निधि-वन के वृक्षों की ख़ासियत यह है कि इनमें से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं होते हैं। और यहाँ वृक्षों की डालियां नीचे की ओर झुकी हुई और आपस में गुंथी हुई नज़र आती है।
निधि-वन परिसर में ही संगीत सम्राट एवं ध्रुपद के जनक श्री स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधा-रानी बंशी चोर आदि दर्शनीय स्थान है। इस मंदिर के बारे में एक और मान्यता है जिसके अनुसार कहा जाता है कि हर रात निधि-वन में होने वाली रास-लीला को अगर कोई देख लेता है तो वो अंधा, गूंगा, बहरा, पागल और उन्मादी हो जाता है ताकि वह इस रास-लीला के बारे में किसी को बता ना सके।
ये साक्ष्य बताते हैं कि यहाँ राधा-कृष्ण आते हैं
मंदिर में रात को होने वाली रास-लीला कोई देखे नहीं इसलिए हर रात तकरीबन 8 बजे के बाद पशु-पक्षी, परिसर में दिन भर दिखाई देने वाले बंदर, भक्त, पुजारी इत्यादि सभी यहां से चले जाते हैं। इसके बाद मंदिर परिसर के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया जाता है जिससे यहाँ कोई आ ना सके। इस स्थान पर जो भी रात को रुक जाता है वह सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाते हैं और जो मुक्त हो गए हैं, उनकी समाधियां परिसर में ही बनी हुई है।
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पेड़ ही बनते हैं गोपियाँ
यहाँ के लोग बताते हैं कि निधि-वन में जो 16000 आपस में गुंथे हुए वृक्ष हैं, वही रात में श्रीकृष्ण की 16000 रानियां बनकर उनके साथ रास रचाते हैं। रास के बाद श्री राधा और श्रीकृष्ण परिसर के ही रंग महल में विश्राम करते हैं। सुनने में बेशक हैरानी वाली बात है लेकिन मंदिर के पुजारी बताते हैं कि हर सुबह 5:30 बजे जब रंग महल का दरवाज़ा खुलता है तो वहां रखी दातून गीली मिलती है।
इस मंदिर के बारे में एक और दावा ये किया जाता है कि जो कोई भी इंसान यहां से किसी पेड़ के पत्ते को ले गया है उसके साथ कुछ ना कुछ अहित ज़रूर होता है। इसलिए लोग इस जगह से पत्तियों को अपने साथ ले जाने से परहेज करते हैं। इस मंदिर में जो कुछ भी होता है उसपर यहाँ आने वालों की गहरी आस्था है। लोग मानते हैं कि हर रात श्रीक़ृष्ण और राधा रानी यहाँ आते हैं और रास रचाने के बाद वो रंग महल में विश्राम करने जाते हैं।
विश्राम स्थल पर उनके द्वारा चबाई हुई दातुन, अस्त-व्यस्त पलंग, और खाया हुआ मीठा पान भक्तों के इस विश्वास को और मज़बूती देता है। बताया जाता है कि रंग महल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद के रूप में उन्हें भी श्रृंगार का सामान ही मिलता है।