सोलर ईयर की शुरुआत मेष संक्राति के साथ होती है।
प्रत्येक साल में कुल 12 संक्रांति होती हैं लेकिन इन सब में सबसे ज़्यादा महत्व मेष संक्रांति को दिया जाता है। इस संक्रांति में सूर्य देव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए इस संक्रांति को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इस ख़ास दिन को जो बात और ख़ास बनाती है वो यह कि मेष राशि में सूर्य का आना इस वजह से भी शुभ माना ही गया है क्योंकि यह दिन सौर वर्ष या सोलर ईयर का पहला दिन होता है. यानि कि सोलर ईयर की शुरुआत मेष संक्राति के साथ होती है।
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जानिए मेष संक्रांति कब है और क्या है इसका महत्व
इस वर्ष मेष संक्रांति 13 अप्रैल 2020, सोमवार के दिन मनाई जा रही है। साल में पड़ने वाली अन्य सभी संक्रांति की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। इस दिन के बारे में कहा जाता है कि ये वो दिन होता है जब सूर्य देवता मेष राशि में संक्रमण करते हैं और इसी दिन से सौर वैशाख मास की शुरुआत होती है।
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मेष संक्रांति से ही भगवान सूर्य उत्तरायण का आधा सफर पूरा करते हैं। भारत में इस दिन को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। अन्य संक्रांति की तरह इस दिन भी स्नान-दान, पितरों का तर्पण और मधुसूदन भगवान की पूजा का बहुत महत्व बताया गया है।
मेष संक्रांति पूजन विधि
- सुबह उठकर स्नान इत्यादि करें। इसके बाद सूर्यदेव का दोषोपचार पूजन करें।
- पूजा में लाल तेल का दीपक, धूप, नवैद्य, रोली, सिन्दूर आलता अवश्य इस्तेमाल करें।
- पूजा में लाल-पीले फूलों का इस्तेमाल करें और भोग में गुड़ से बना हलवा चढ़ाएं।
- सूर्य देव को अर्घ्य दें। पूजा के बाद प्रसाद को सभी लोगों में बांटे।
संक्रांति उपाय
- अगर आप किसी परीक्षा में सफल होना चाहते हैं तो भगवान सूर्य पर चढ़े खजूर को गरीब बच्चों में बांटिए।
- अगर आर्थिक परेशानी से मुक्ति पाना चाहते हैं तो अलमारी पर आलता से ‘ह्रीं’ लिखें।
- अगर शिक्षण क्षेत्र में नाम कमाना चाहते हैं तो सूर्यदेव पर चढ़े लाल पेन का उपयोग करें।
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संक्रांति का महत्व
- संक्रांति का सीधा संबंध खेती, प्रकृति, और मौसम के बदलने से जोड़ कर देखा जाता है और सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर भी जाना जाता है। ऐसे में इस दिन सूर्य पूजा का बहुत महत्व बताया गया है।
- संक्रांति के दिन पूजा-पाठ के बाद तिल का प्रसाद बांटा जाता है।
- संक्रांति के दिन का बहुत महत्व बताया गया है जिसके चलते कई जगह पर लोग इस दिन पूजा-पाठ और व्रत इत्यादि भी करते हैं। मत्स्यपुराण में संक्रांति के व्रत का वर्णन भी किया गया है।
- कहा जाता है कि जिस भी इंसान को संक्रांति का व्रत रखना हो उसे एक दिन पहले सिर्फ एक समय ही भोजन करना चाहिए।
- संक्रांति वाले दिन साधक को सुबह जल्दी उठकर दांतों को अच्छे से साफ करके स्नान करना चाहिए।
- इस दिन आपको नहाने के पानी में तिल ज़रूर मिला लेना चाहिए।
- पूजा-पाठ के बाद दान आदि देने का महत्व गया है।
- इसके अलावा इस दिन बिना तेल का भोजन करना चाहिए और अपनी यथाशक्ति से दूसरों को भी भोजन देना चाहिए।
- संक्रांति के दिन गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान महापुण्यदायक माना गया है। ऐसा करने वाले इंसान को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
उत्तराखंड में बेहद ख़ास महत्व है मेष संक्रांति का
वैसे तो मेष संक्रांति देश के सभी हिस्सों में बड़े ही पैमाने पर मनाई जाती है लेकिन उत्तराखंड में इस त्यौहार का अलग ही रंग देखने को मिलता है। उत्तराखंड में मेष संक्रांति के दिन एक पत्थर को दैत्य का प्रतीक माना जाता है और फिर उसकी जमकर पिटाई की जाती है। इसके बाद भगवान से सभी के कल्याण प्राप्ति की कामना की जाती है। इसके बाद पारंपरिक नृत्य और गीत-संगीत का आयोजन किया जाता है। और फिर सभी लोग एक-दूसरे को गले मिलते हैं और एकदूसरे को इस पर्व की बधाई देते हैं।
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