हिन्दू धर्म में पितरों के आत्मा की शांति के लिए हर श्राद्धपक्ष या पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण की क्रिया की जाती है। पितरों का आशीर्वाद परिवार पर बनाये रखने के लिए मुख्य रूप से सोलह दिनों के पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस बीच आने वाले सभी श्राद्ध का विशेष महत्व है। लेकिन विशेष रूप से नवमी तिथि को किये जाने वाले मातृ नवमी श्राद्ध को ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। आने वाले 23 सितंबर को मातृ नवमी श्राद्ध किया जाएगा। आइये जानते हैं इस दिन का महत्व और श्राद्ध कर्म करने की पूरी विधि के बारे में।
मातृ नवमी का महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार मातृ नवमी का श्राद्ध आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को किया जाता है। आपको बता दें कि, इस दिन मुख्य रूप से परिवार के सदस्य अपनी माता और परिवार की ऐसी महिलाओं का श्राद्ध करते हैं जिनकी मृत्यु एक सुहागिन के रूप में होती है। यही कारण है कि इस दिन पड़ने वाले श्राद्ध को मातृ नवमी श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस दिन दिवंगत आत्माओं के लिए श्राद्ध क्रिया करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद परिवार पर हमेशा बना रहता है। ऐसी मान्यता है कि, मातृ नवमी श्राद्ध के दिन परिवार की बहु बेटियों को व्रत रखना चाहिए। इस दिन व्रत रखने से विशेष रूप से महिलाओं को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए इस दिन किये जाने वाले श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
मातृ नवमी श्राद्ध नियम
- इस दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व सभी नित्य क्रियाओं से निवृत होने के बाद घर के दक्षिण दिशा में एक हरे रंग का कपड़ा बिछाकर उसपर सभी दिवंगत पितरों की फोटो रखें।
- अगर आपके पास किसी की फोटो ना हो तो उसकी जगह एक साबूत सुपारी रख दें।
- अब श्राद्धापूर्वक सभी पितरों के नाम से एक दीये में तिल का तेल डालकर उसे जलाएं।
- इसके बाद सुगंधित धूप या अगरबत्ती जलाकर सबकी फोटो के सामने रखें और एक तांबे के लोटे में जल डालकर उसमें काला तिल मिलाकर पितरों का तर्पण करें।
- दिवंगत पितरों की फोटो पर तुलसी के पत्ते अर्पित करें और आटे से एक बड़ा दीया जलाकर उसे सबकी की फोटो के आगे रखें।
- अब व्रती महिलाएं कुश के आसन पर बैठकर भगवत गीते के नौवें अध्याय का पाठ करें।
- श्राद्धकर्म पूरा होने के बाद ब्राह्मणों को लौकी की खीर, मूंगदाल, पालक सब्जी और पूरी आदि का भोजन कराएं।
- ब्राह्मण भोजन के बाद यथाशक्ति अनुसार उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें।
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