27 फरवरी को मनाया जायेगा मासी मागम, जानें इसका महत्व और पूजन विधि

मासी मागम (Masi Magam 2021) का त्योहार 27 फरवरी को मनाया जायेगा। यह त्यौहार मुख्य रूप से भारत के दक्षिण में तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। मासी मागम का यह त्यौहार पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। ज्योतिष में मागम को 27 सितारों में से एक माना जाता है। मुख्य रूप से मासी मागम का यह खूबसूरत त्योहार तमिलनाडु, केरल और पांडिचेरी में मनाया जाता है। 

यह त्यौहार एक साल में एक बार आता है। इस दौरान बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। मासी मागम के इस शुभ दिन पर अलग-अलग तरह के अनुष्ठान और पूजा आदि की जाती है। तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कि, मासी मागम त्योहार का महत्व क्या होता है? इस दिन की पूजन विधि क्या है? और इस दिन से जुड़ी व्रत कथा क्या कहती है? 

मासी मागम का महत्व (Masi Magam Mahatva)

मासी मागम साल का सबसे शक्तिशाली पूर्ण चंद्र दिवस माना जाता है। इसके अलावा मासी मागम जैसा कि हमने पहले भी बताया 27 सितारों में से एक है ऐसे में यह राजाओं और पूर्वजों के जन्म का सितारा भी माना जाता है। मासी मागम के दिन पूर्णिमा तिथि भी होती है ऐसे में इस दिन श्राद्ध और पितरों का तर्पण आदि करने के लिए दिन बेहद उपयुक्त माना जाता है।

जो कोई भी लोग इस दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा अर्चना करते हैं उन्हें जीवन में सुख, समृद्धि और अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। सिर्फ इतना ही नहीं मासी मागम के दिन जो कोई भी व्यक्ति पूजा-अर्चना करता है उससे शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होने के साथ-साथ उसके जीवन की सभी नकारात्मक शक्तियां और उर्जाएं नष्ट हो जाती हैं। 

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मासी मागम पूजन विधि (Masi Magam Puja Vidhi)

  • दक्षिण भारत के लोग मासी मागम के पवित्र दिन देवी देवताओं की मूर्तियों को समुद्र के किनारे ले जाते हैं। 
  • इस दिन स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। 
  • लोग मंदिरों से भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्तियों को झांकियों के साथ समुद्र तक ले जाते हैं। इसके अलावा इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को भी समुद्र के किनारे ले जाया जाता है। यहां पर देवी देवताओं की पूजा अर्चना और अन्य सभी अनुष्ठान किए जाते हैं। 
  • मासी मागम पर्व के दिन समुद्र के तट पर हजारों लाखों की तादाद में लोग इकट्ठा होते हैं। 
  • यहां पर मूर्तियों को पारंपरिक अनुष्ठान और तरीकों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद देवी-देवताओं की मूर्तियों को वापस झांकियों में मंदिर तक ले जाया जाता है। 
  • मंदिरों में हाथी की पूजा जिसे गज पूजा कहते हैं या घोड़े की पूजा जिसे अश्व पूजा कहते हैं की जाती है। 
  • इसके अलावा बहुत से लोग इस दिन पवित्र नदियों और समुद्रों में स्नान भी करते हैं। इसके पीछे की मान्यता बताई जाती है ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप और समुद्र के पानी में धुल जाते हैं 

मासी मागम से संबंधित कथा (Masi Magam Katha)

मासी मागम से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, 

बहुत समय पहले तिरुवन्नामलाई के एक राजा थे जो भगवान शिव के परम भक्त हुआ करते थे। हालाँकि राजा की कोई संतान नहीं थी। ऐसे में राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि, वह खुद राजा का अंतिम संस्कार करेंगे। ऐसे में समय बीतने के बाद मासी मागम के दिन ही राजा की मृत्यु हुई। तब अपने वादे के अनुसार भगवान शिव ने ही उनका अंतिम संस्कार किया था। और साथ ही यह आशीर्वाद दिया था कि, जो कोई भी मासी मागम के दिन पवित्र नदियों में स्नान करेगा उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी। 

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मासी मागम से संबंधित दूसरी कथा, प्राचीन काल में ऋषि मुनियों को अपने विद्या पर अभिमान हो चला था। ऋषि-मुनियों को ऐसा लगने लगा कि, उन्हें सब कुछ पता है और ऐसे में वह देवताओं की भी उपेक्षा करने लगे। ऋषि मुनियों के दिमाग में यह बात आ गई कि, वह इंसानों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें देवी-देवताओं की जरूरत नहीं है। ऋषियों की ऐसी सोच देखकर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और ऐसे में उन्हें सबक सिखाने के लिए उन्होंने एक चाल चली। 

एक दिन भगवान शिव ने भिखारी का रूप धारण किया और ऋषि मुनियों के समक्ष प्रकट हुए। तब ऋषि-मुनियों ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया और उन्हें शैतान मान लिया। इसके बाद ऋषियों ने भगवान शिव पर हमला करने के लिए एक पागल हाथी भेजा। जैसे ही हाथी भगवान बने भिखारी को पर हमला करने वाला था भगवान शिव गायब हो गए। यह सब देखकर माता पार्वती को बहुत डर लगा। उन्हें लग रहा था कि यदि भगवान को कुछ हो गया तो धरती का क्या होगा। हालांकि दूसरी तरफ भगवान शिव ने उस पागल हाथी को मार दिया और उसकी खाल पहन लिया। बताया जाता है कि, ऐसे में इस दिन को गज संहार के रूप में जाना जाने लगा है। 

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यह सब देखकर ऋषियों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी। मासी मागम का यह त्यौहार कुंबकोणम और कुंडेश्वर मंदिर में बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है और बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है। 

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