13 नवंबर से शुरू हो रहा है भगवान कृष्ण का प्रिय माह मार्गशीर्ष, जानें इसका महत्व और पूजन विधि

12 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही कार्तिक मास ख़त्म हो गया है और 13 नवंबर से शुरू होता है मार्गशीर्ष मास।  यह माह भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय माह कहा जाता है। इसे अगहन मास के नाम से भी जानते हैं। मार्गशीर्ष का महीना हिंदू धार्मिक पंचांग का नौवां महीना माना जाता है। मार्गशीर्ष मास को सनातन संस्कृति के सभी मास और हिन्दू धर्म शास्त्र के मुताबिक सबसे पावन महीना माना गया है।  मान्यता है कि इस महीने से ही सतयुग की भी शुरुआत होती है। 13 नवंबर को मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि और बुधवार का दिन है। प्रतिपदा तिथि आज शाम 07 बज-कर 42 मिनट तक रहेगी।  

सनातन संस्कृति में एक साल को बारह मास में बाँटा गया है। इन सभी 12 मास को अलग-अलग नाम दिया गया है और उन्हें अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा से जोड़ा गया गया। इसी तरह 13 नवंबर से शुरू होने वाले मास को भगवान श्रीकृष्ण का महीना कहा जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास का संबंध ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से एक मृगशिरा नक्षत्र से है। इस मास की पूर्णिमा तिथि को मृगशिरा नक्षत्र होता है। इस कारण इस मास को मार्गशीर्ष मास के नाम से भी जाना जाता है।

स्नान करते समय इस मंत्र का जाप करें :

इस मास में स्नान करने के लिए तुलसी के पौधे का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन स्नान से पहले जल में तुलसी के पौधे की मिट्टी, जड़ और उसके पत्ते मिलाकर स्नान करना चाहिए। इसके साथ ही ‘ओम नमो नारायणाय’ या ‘गायत्री मंत्र’ का जप करना चाहिए।

पूजन विधि : 

यह मास भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित है इसलिए इस मास में शंख पूजा को विशेष दर्जा दिया गया है। कहते हैं कि अगहन मास या मार्गशीर्ष मास में जो लोग सामान्य शंख को पांचजन्य शंख मानकर पूजा करते हैं भगवान उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा कर देते हैं। शंख की पूजा नीचे लिखे श्लोक से करें।

यहाँ पढ़ें : हिन्दू धार्मिक पंचांग 

पंचजन्य शंख मंत्र

त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।

निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते।

तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।

शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते॥

शंख को देवस्वरूप मानकर मन्त्र के साथ-साथ कुमकुम, अक्षत, मेहँदी, हल्दी, अबीर, फूल, गुलाल चीज़ें समर्पित करें। इसके बाद शंख के समक्ष पांचोमेवा, कोई भी फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएँ।  फिर धूपबत्ती और दीपक जलाएं। 

शंख-पूजन से मिलता है ये फल

शास्त्रों में लिखा है कि शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है और समुद्र मंथन से ही धन की देवी लक्ष्मी जी की भी उत्पत्ति हुई  है इसलिए शंख को माँ लक्ष्मी का भाई कहा जाता है। ऐसे में मान्यता के अनुसार शंख पूजन से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और शंख की उपासना करते वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर उन्हें सुख-समृद्धि का वरदान भी देती हैं। पूजा के बाद घर और देवालय में शंख के जल को अवश्य छिड़कें इसे समृद्धिकारक माना गया है।

किस राशि के लिए कौन सा मंत्र है सही? 

मेष राशि : ‘ऊँ दामोदराय नमः’

वृष राशि : ‘ऊँ हृषिकेषाय नमः’

मिथुन राशि : ‘ऊँ पद्मानाभाय नमः’

कर्क राशि : ‘ऊँ नमो भगवते नारायणाय’

सिंह राशि : ‘ऊँ श्रीधराय नमः’

कन्या राशि : ‘ऊँ केशवाय नमः’

तुला राशि :  ‘ऊँ गोविंदाय नमः

वृश्चिक राशि : ‘ऊँ अच्युताय नमः’

धनु राशि : ‘ऊँ माधवाय नमः’

मकर राशि : ‘ऊँ मधुसूदनाय नमः’

कुंभ राशि : ‘ऊँ अनंताय नमः’

मीन राशि : ‘ऊँ त्रिविकरमाय नमः’

जानें क्यों है ये श्रीकृष्ण का प्रिय माह?

श्रीमद भागवत में इस बात का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण ने खुद कहा है कि, “मार्गशीर्ष मास स्वयं मेरा ही स्वरूप है” मान्यता है कि इस मास में नदी, सरोवरों या किसी भी पवित्र कुंड में स्नान करने से इंसान के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें पुण्य फल की प्राप्ति होती है।  इस मास का ज़िक्र गोपियों से करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि, “इस मास में जो भी यमुना के जल में स्नान करेगा मैं उसे सहज ही प्राप्त हो जाऊंगा” इसलिये ही इस मास में स्नान का अलग ही महत्व बताया गया है।

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