मार्गशीर्ष अमावस्या पर करें ये काम- होगी शुभ फलों की प्राप्ति!

हिन्दू धर्म में मार्गशीर्ष अमावस्या का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को ‘मार्गशीर्ष अमावस्या’ कहा जाता है। इसे ‘अगहन अमावस्या’ और ‘पितृ अमावस्या’ भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगहन के महीने में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था। इस कारण इसे अगहन अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितरों की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि अगहन महीने की अमावस्या कार्तिक मास में पड़ने वाली अमावस्या के बराबर फलदायी होती है। 

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यह खास महीना माता लक्ष्मी को बेहद प्रिय होता है, इसलिए इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि अगहन मास की अमावस्या पर लक्ष्मी जी की विधि विधान से पूजा करने व व्रत करने से जातक के सारे पापों का नाश होता है। आइए जानते हैं एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में मार्गशीर्ष अमावस्या का महत्व, तारीख व इससे जुड़ी खास बातें।

मार्गशीर्ष अमावस्या 2022: तिथि व मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल 2022 में मार्गशीर्ष अमावस्या 23 नवंबर, बुधवार के दिन पड़ रही है।

अमावस्या आरम्भ तिथि: 23 नवंबर 2022 को सुबह 06 बजकर 56 मिनट से 

अमावस्या समाप्त तिथि: 24 नवंबर 2022 को सुबह 04 बजकर 29 मिनट पर 

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मार्गशीर्ष अमावस्या 2022 का महत्व

मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों की पूजा करने का विशेष दिन माना गया है। मान्यता है कि इस खास दिन पूजा व व्रत करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष भी दूर हो जाता है। केवल यही नहीं, मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत करने से कुंडली के सारे दोष दूर हो जाते हैं। इस अमावस्या के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि अगर किसी जातक की कुंडली में पितृ दोष या कोई संतान हीन योग बन रहा है तो उसे मार्गशीर्ष अमावस्या का व्रत जरूर करना चाहिए। कहते हैं अगहन मास में ही भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया था। यही वजह है कि इस अमावस्या को बहुत ही लाभकारी व पुण्यफलदायी माना जाता है।

मार्गशीर्ष अमावस्या के व्रत व पूजा विधि

  • मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन प्रात: काल उठकर नित्यक्रिया करके किसी पवित्र नदी में स्नान करें। पूरे घर में गौमूत्र और गंगाजल का छिड़काव करें।
  • स्नान के बाद सूर्यदेव को जल दें और व्रत का संकल्प लें। 
  • इसके बाद भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान से करें। 
  • फिर अपने पितरों और ईष्ट देवताओं का स्मरण करें। पितरों को तर्पण करें और मोक्ष की कामना करें।
  • विधि विधान से पूजा-पाठ के बाद भोजन और वस्त्र किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान करें।

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मार्गशीर्ष अमावस्या में इन बातों का रखें ध्यान

  • मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन शमशान घाट पर नहीं जाना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन शमशान जाने से बुरी शक्तियां व्यक्ति को जकड़ लेती हैं।
  • इस अमावस्या का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दिन में नहीं सोना चाहिए।
  • मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन दाम्पत्यों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
  • इस दिन मांसाहारी भोजन, शराब और मदिरा से दूर रहना चाहिए।
  • इसके साथ ही इस दिन बाल और नाखून भी नहीं काटने चाहिए।
  • इसके अलावा व्रती को पानी भी नहीं पीना चाहिए।

मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन करें ये उपाय

इस दिन पितरों का तर्पण करने से उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही कई उपाय करने से पितरों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इससे आपके घर में माँ लक्ष्मी खुद चलकर आती हैं। जानिए इन उपायों के बारें में:

  • इस दिन पितरों की कृपा पाने के लिए गाय के गोबर से बने उपले पर देशी घी व गुड़ मिलाकर धूप देनी चाहिए। यदि घी व गुड़ मौजूद न हो जो खीर बनाकर भी धूप दिखा सकते हैं।
  • इस दिन अपने पूर्वजों के नाम पर ब्राह्मण और जरूरतमंद लोगों को भोजन जरूर करवाएं।
  • मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन पितरों के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। ऐसे में इस दिन जरुरतमंद को दूध का दान करें।
  • इस दिन चीटियों को चीनी मिला हुआ आटा खिलाना अच्छा माना जाता है। ऐसा करने से आपकों सभी पापों से मुक्ति मिल जाएगी और आपको हर कामों में सफलता मिलेगी।
  • जीवन में स्थिरता बनाए रखने के लिए इस दिन अपने हाथ में फिटकरी का एक टुकड़ा लेकर बुध मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करें। 

मंत्र – ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

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पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार किसी नगर में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। उसमें पति पत्नी के अलावा उनकी एक पुत्री भी थी। आयु के अनुसार पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। बढ़ती उम्र के साथ उसमें स्त्री के गुणों का विकास होने लगा। वह बहुत ही सुंदर, सुशील व सर्वगुण संपन्न थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारे। कन्या की सेवा से साधु महाराज बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने कन्या को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया और कहा कि इस कन्या की हथेली में विवाह का योग नहीं है। इस बात से चिंतित होकर ब्राह्मण परिवार ने साधु से उपाय पूछा। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपने ध्यान के आधार पर बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन है, जो अपने बेटे और बहू के साथ रहती है।

महिला की बहू बहुत ही संस्कारों से संपन्न तथा पति परायण व निष्ठावान है। साधु ने कहा कि यदि कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसके सिर में अपनी मांग का सिंदूर लगा दे, तो यह दोष खत्म हो जाएगा और उसकी शादी हो जाएगी। साधु ने बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है। साधु की बात सुनते ही ब्राह्मण ने अपनी बेटी से उस महिला की सेवा करने को कहा। अगले ही दिन से कन्या रोज सुबह जल्दी उठकर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई व सारे काम कर के घर वापस आ जाती। एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछा कि तुम सुबह उठकर सारा काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा- मां जी मुझे तो लगा कि आप सुबह उठकर सारा काम करती होंगी। मैं तो सुबह उठ ही नहीं पाती हूं। इसके बाद महिला ने घर की निगरानी करनी शुरू कर दी।

कुछ दिन बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या अंधेरे में घर आती है और घर की साफ सफाई करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन हैं और इस तरह छिपकर मेरे घर का सारा काम क्यों करती हैं? तब कन्या ने साधु की कही बात बताई। उस समय सोना धोबिन के पति अस्वस्थ थे। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसके पति की मृत्यु हो गई। जैसे ही पुत्री को इस बात का पता चला वह घर से निर्जला ही चल पड़ी, यह सोचकर कि रास्ते में कहीं पीपल का वृक्ष मिलेगा तो उसे भंवरी देकर व उसकी परिक्रमा करके ही जल व अन्न ग्रहण करेगी।

उस दिन सोमवती अमावस्या (सोमवार के दिन पड़ने वाले अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं) पड़ी थी। पुत्री ने पूड़ी सब्जी की जगह ईंट के टुकड़ों से 108 बार पीपल के वृक्ष की परिक्रमा की। इसके बाद जल व अन्न ग्रहण किया। ऐसा करते ही उस महिला के पति में जान आ गई। तब से मान्यता है कि अमावस्या का व्रत पति की उम्र बढ़ाता है।

इस दिन सत्यनारायण पूजा का महत्व

मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा का पाठ किया जाना बेहद शुभ माना जाता है। पूजा स्थल पर भगवान सत्यनारायण और माता लक्ष्मी की तस्वीर रखकर विधि-विधान से पूजा व आरती करनी चाहिए। साथ ही भगवान को हलवे का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद के रूप में लोगों के बीच बांटना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

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