ज्योतिष में मारक ग्रह और उनके उपाय – Marak Grah in Astrology

मारक ग्रह (Marak Grah) को वैदिक ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह किसी कुंडली विशेष के लिए अर्थात किसी लग्न विशेष के लिए अलग-अलग हो सकते हैं और इनके प्रभाव से व्यक्ति को मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट भी मिल सकते हैं लेकिन ऐसा तभी होता है, जब इन ग्रहों की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतर दशा प्राप्त होती है। 

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हालांकि यह भी आवश्यक नहीं कि ये सदैव ही कष्टकारी हों क्योंकि जीवन में मृत्यु हमेशा एक ही बार आ सकती है। अगर किसी मारक ग्रह की दशा आपके जीवन में एक से अधिक बार आती है तो यह आवश्यक नहीं कि वह आपके जीवन में कष्ट ही लेकर आए अपितु अनेक प्रकार के अच्छे फल भी प्रदान कर सकते हैं। मारक ग्रह का आंकलन करना और प्रत्येक लग्न के लिए अर्थात मेष से लेकर मीन राशि के लग्न के लिए अलग-अलग मारक ग्रह का प्रभाव दिखाई देता है।

ज्योतिष में नवग्रह होते हैं लेकिन हर राशि के लग्न के लिए अलग-अलग ग्रह मारक और कारक का दायित्व निभाते हैं। वास्तव में ज्योतिष में मारक ग्रह से तात्पर्य ऐसे ग्रहों से है, जो हमारे जीवन में समस्या प्रदान करने में सक्षम हैं और जिनका प्रभाव हमारे जीवन को बहुत ज्यादा नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। आज इस लेख के माध्यम से हम मारक ग्रह के बारे में जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर मारक ग्रह क्या होते हैं, मारक ग्रह का फल क्या होता है और मारक ग्रह के प्रभाव को संतुलित करने के लिए किस प्रकार के उपाय अपनाए जा सकते हैं। 

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वास्तव में मारक ग्रह कोई विशेष ग्रह नहीं होता अपितु हमारी कुंडली में ही मौजूद नवग्रहों में से कुछ विशेष ग्रह होते हैं, जो किसी विशेष लग्न के लिए विशेष प्रकार की भूमिका निभाते हैं। किसी भी प्रकार की कुंडली में ग्रह कारक का दायित्व निभाते हैं और जीवन में अनुकूल फलों को प्रदान करते हैं तो वहीं कुछ ग्रह सम होते हैं जो परिस्थिति वश परिणाम देने में सक्षम होते हैं।

इन्हीं के साथ कुछ ग्रह मारक ग्रह होते हैं, जो जीवन में कष्ट प्रदान करने का माद्दा रखते हैं। जब हमारे जीवन में इन मारक ग्रह की दशा आती है तो हमें इससे संबंधित फलों की प्राप्ति होती है। अब वह फल कैसा और कितना खराब हो सकता है, यह स्थिति और परिस्थिति पर निर्भर करता है तथा कुंडली के समग्र विश्लेषण के उपरांत ही उसके बारे में कुछ कहा जा सकता है।

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जन्म कुंडली में मारक ग्रह (Janma Kundali Mein Marak Grah)

ज्योतिष में आमतौर पर मारक ग्रह से तात्पर्य उन ग्रहों से है, जो किसी कुंडली विशेष के लिए अशुभ फल दाता ग्रह होते हैं। कुंडली में लग्न को शरीर माना जाता है। अर्थात लग्न से हमारा व्यक्तित्व माना जाता है। लग्न से अष्टम भाव आयु का भाव होता है और अष्टम से अष्टम अर्थात भावात भावम के दृष्टिकोण से देखने पर अष्टम से अष्टम भाव अर्थात कुंडली का तृतीय भाव भी आयु के बारे में जानकारी प्रदान करता है। 

ऐसे मुख्य भाव, जो आयु का ह्रास करते हैं, मारक ग्रह के कारकत्वों में आ जाते हैं। इस प्रकार देखें तो अष्टम भाव का व्यय भाव अर्थात सप्तम भाव एक मारक भाव कहलाता है और सप्तम भाव का स्वामी कुंडली का मारक ग्रह कहलाता है। इसी प्रकार तृतीय भाव का व्यय भाव अर्थात कुंडली का दूसरा भाव भी मारक भाव कहलाता है और दूसरे भाव का स्वामी मारक ग्रह कहलाता है। ज्योतिष में मुख्य रूप से सप्तम भाव और द्वितीय भाव के स्वामी मारक ग्रह कहलाते हैं और इनकी दशा, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा आने पर व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

हालांकि कुंडली में केवल इन्हीं दो भावों के स्वामियों को बुरा मान लेना अनुकूल नहीं अपितु कुंडली के छठे भाव के स्वामी भी अशुभ प्रभाव देने वाले माने जाते हैं क्योंकि यह रोग, रिपु और ऋण का भाव होता है। कुछ विद्वान ज्योतिषी व्यय भाव अर्थात द्वादश भाव के स्वामी ग्रह को भी मारक ग्रह मानते हैं क्योंकि यह लग्न भाव से व्यय का भाव होता है। आइए अब जानते हैं विभिन्न लग्नों के लिए कौन से ग्रह मारक ग्रह होते हैं:

मेष लग्न में मारक ग्रह (Mesh Lagna Mein Marak Grah)

मेष लग्न के स्वामी ग्रह मंगल हैं और दूसरे भाव के स्वामी शुक्र तथा सप्तम भाव के स्वामी भी शुक्र हैं। इस प्रकार दो मारक भावों के स्वामी होने के कारण शुक्र को मेष लग्न के लिए प्रबल मारक ग्रह माना जाता है। मेष लग्न के लिए बुध ग्रह भी अशुभ ग्रह माना जाता है क्योंकि यह तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है। 

वृषभ लग्न में मारक ग्रह (Vrishabh Lagna Mein Marak Grah) 

वृषभ लग्न के स्वामी ग्रह शुक्र देव होते हैं। आपके लग्न में बुध ग्रह दूसरे भाव के स्वामी होने के साथ-साथ पंचम भाव के स्वामी भी हैं, इसलिए मारक का प्रभाव नहीं देते हैं। आपके सप्तम भाव के स्वामी मंगल होते हैं, जिनके दूसरे भाव की राशि आपके द्वादश भाव में आती है, इसलिए वृषभ लग्न के लिए मंगल प्रबल मारक ग्रह बन जाता है। देव गुरु बृहस्पति भी वृषभ लग्न में अष्टम भाव के स्वामी होने के साथ-साथ एकादश भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ बन जाते हैं। 

मिथुन लग्न में मारक ग्रह (Mithun Lagna Mein Marak Grah) 

मिथुन लग्न के स्वामी बुध ग्रह होते हैं। आपके दूसरे भाव के स्वामी चंद्रमा हैं, जिनका बुध ग्रह से शुभ संबंध ना होने के कारण अशुभ ग्रह की भूमिका निभाते हैं। आपके सप्तम भाव के स्वामी देव गुरु बृहस्पति हैं जो कि आपके दशम भाव के स्वामी भी हैं। इस कारण यह मारक की भूमिका नहीं निभाते अपितु मंगल जोकि षष्ठ और एकादश के स्वामी हैं, प्रबल मारक ग्रह बन जाते हैं।

कर्क लग्न में मारक ग्रह (Kark Lagna Mein Marak Grah) 

कर्क लग्न के स्वामी चंद्रमा हैं और दूसरे भाव के स्वामी सूर्य हैं जोकि चंद्रमा के मित्र भी हैं, इसलिए यह मारक ग्रह की भूमिका नहीं निभाते लेकिन कर्क लग्न में शनि देव सप्तम और अष्टम भाव के स्वामी होने के कारण प्रबल मारक ग्रह बनते हैं। बुध ग्रह आपके लग्न से तीसरे और द्वादश भाव के स्वामी होने के कारण भी अशुभ ग्रह कहलाते हैं। 

सिंह लग्न में मारक ग्रह (Simh Lagna Mein Marak Grah)

आपके लग्न के स्वामी सूर्य ग्रह हैं और कुंडली के दूसरे भाव में बुध ग्रह की राशि आती है। अर्थात कन्या राशि लेकिन बुध सूर्य देव के लिए सम हैं, इसलिए वे मारक नहीं बनते परंतु सप्तम भाव और छठे भाव के स्वामी होने के कारण शनि प्रबल मारक बन जाते हैं। 

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कन्या लग्न में मारक ग्रह (Kanya Lagna Mein Marak Grah) 

कन्या लग्न के स्वामी बुध ग्रह होते हैं। इनके दूसरे भाव में तुला राशि है, जिसके स्वामी शुक्र देव हैं लेकिन शुक्र देव कन्या लग्न के लिए नवम भाव के स्वामी होने के कारण और बुध के मित्र ग्रह होने के कारण मारक की भूमिका नहीं निभाते। देव गुरु बृहस्पति कन्या लग्न में सप्तम भाव के स्वामी बनते हैं लेकिन इसके साथ ही चतुर्थ भाव के स्वामी होने के कारण है उतने बड़े  मारक नहीं बन पाते जबकि मंगल इनकी कुंडली में तीसरे भाव और अष्टम भाव के स्वामी होने के कारण प्रबल मारक बनते हैं। 

तुला लग्न में मारक ग्रह (Tula Lagna Mein Marak Grah) 

तुला लग्न के स्वामी ग्रह शुक्र होते हैं। इनके दूसरे भाव के स्वामी मंगल हैं जो कि इनके  सप्तम भाव के स्वामी भी हैं। इस प्रकार तुला लग्न की कुंडली के लिए मंगल प्रबल मारक ग्रह बन जाते हैं। बृहस्पति देव तुला लग्न में तीसरे भाव और छठे भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह बन जाते हैं। 

वृश्चिक लग्न में मारक ग्रह (Vrishchik Lagna Mein Marak Grah) 

वृश्चिक लग्न के स्वामी ग्रह मंगल देव हैं। आपके दूसरे भाव का स्वामी बृहस्पति हैं लेकिन लग्नेश के मित्र हैं। सप्तम भाव के स्वामी शुक्र हैं जोकि आपके द्वादश भाव के स्वामी भी हैं, इसलिए शुक्र प्रबल मारक बनते हैं। इसके अतिरिक्त कुंडली में बुध ग्रह अष्टम भाव और एकादश भाव के स्वामी होने के कारण भी कष्ट कारक ग्रह बन जाते हैं।

धनु लग्न में मारक ग्रह (Dhanu Lagna Mein Marak Grah) 

धनु लग्न के स्वामी ग्रह बृहस्पति हैं और इनके दूसरे भाव और तीसरे भाव के स्वामी होने के कारण शनि देव मारक ग्रह बन जाते हैं। बुध ग्रह इनके सातवें भाव के साथ साथ दसवें भाव के स्वामी होने के कारण मारक ग्रह की भूमिका नहीं निभाते फिर भी कुछ हद तक कष्ट देने की क्षमता रखते हैं। शुक्र ग्रह छठे भाव और एकादश भाव के स्वामी होने के कारण भी मारक बन जाते हैं। 

मकर लग्न में मारक ग्रह (Makar Lagna Mein Marak Grah) 

मकर लग्न के लिए स्वामी ग्रह शनि देव हैं जो कि आपके दूसरे भाव के स्वामी भी हैं। आपकी कुंडली में सप्तम भाव के स्वामी चंद्रमा है लेकिन एकादश भाव के स्वामी होने के कारण और लग्नेश शनि से शत्रुता के कारण मंगल प्रबल मारक ग्रह बन जाते हैं। चंद्रमा की दशा भी कष्टकारी होती है। बृहस्पति भी अशुभ भावों अर्थात तीसरे और द्वादश भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ कारक बन जाते हैं। 

कुंभ लग्न में मारक ग्रह (Kumbh Lagna Mein Marak Grah)

कुंभ लग्न के स्वामी शनि देव हैं, जिनके दूसरे भाव में देव गुरु बृहस्पति की मीन राशि है और उनकी दूसरी राशि धनु आपके एकादश भाव में होने के कारण देव गुरु बृहस्पति मारक ग्रह की भूमिका निभाते हैं। सूर्यदेव सप्तम भाव के स्वामी होने के कारण तथा मंगल ग्रह भी तीसरे भाव के स्वामी होने के कारण तथा लग्नेश के शत्रु होने के कारण मारक का काम करते हैं। 

मीन लग्न में मारक ग्रह (Meen Lagna Mein Marak Grah)   

मीन लग्न के स्वामी देव गुरु बृहस्पति होते हैं। आपके दूसरे भाव के स्वामी मंगल होते हैं, जिनकी दूसरी राशि वृश्चिक आपके नवम भाव में होने के कारण  तथा लग्नेश के मित्र होने के कारण मंगल मारक ग्रह नहीं बनते हैं। आपके लग्न से तीसरे भाव के स्वामी शुक्र आपके अष्टम भाव के स्वामी भी हैं, इसलिए प्रबल मारक ग्रह बन जाते हैं। शनि ग्रह द्वादश और एकादश भाव के स्वामी होने से भी कष्टप्रद होते हैं। 

उपरोक्त के अलावा ज्योतिष में कुछ अन्य नियम हैं, जिनके कारण मारक ग्रहों का प्रभाव निर्धारित हो जाता है। यदि उपरोक्त मारक ग्रह कुंडली में प्रबल राजयोग कारक ग्रह बन जाएं तो काफी हद तक मारक प्रभाव छोड़ देते हैं। यदि मारक ग्रह की महादशा में मारक ग्रह की अंतर्दशा हो तो अत्यंत कष्टकारी होती है। शनि देव को काल भी कहा जाता है, इसलिए विशेष परिस्थितियों में जब शनि का संबंध मारक ग्रह के साथ हो जाए तो शनिदेव उन मारक ग्रह के प्रभाव को ग्रहण करके स्वयं मारक बन जाते हैं लेकिन इसके लिए आवश्यक यह है कि शनिदेव उस कुंडली के लिए अशुभ ग्रह होने चाहिए।

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मारक ग्रहों का फल

वैदिक ज्योतिष में मारक ग्रह का प्रभाव उस ग्रह विशेष की महादशा, अंतर्दशा अथवा प्रत्यंतर दशा के दौरान प्राप्त होता है। मारक ग्रह की दशा मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट देने में सक्षम होती है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में यह अनुकूल परिणाम भी देते हैं। आमतौर पर जब किसी मारक ग्रह की दशा होती है तो व्यक्ति के जीवन में समस्याएं और परेशानियां बढ़ जाती हैं। उनके बनते हुए कार्यों में विघ्न आ जाता है और अड़चनों के कारण काम में बाधा आती है। मानसिक तनाव में वृद्धि होती है तथा मानसिक और शारीरिक कष्ट परेशान करने लगते हैं। व्यक्ति को अपयश का सामना भी करना पड़ता है। किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने या चोट लगने की संभावना भी बढ़ जाती है। मारक ग्रह की दशा व्यक्ति को कोई लंबी बीमारी या परेशानी जनक स्थिति का सामना करवाती है। यदि आपके मारक ग्रह की दशा चल रही है तो संभव है कि आपके दांपत्य जीवन में भी बिना वजह का क्लेश, डर और घबराहट जैसी स्थिति हो। आपके अंदर आत्मविश्वास की कमी आ जाती है और जीवन के लगभग अनेक क्षेत्रों में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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ज्योतिष के अनुसार सदैव ही मारक ग्रह की दशा कष्टकारी नहीं होती है। सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि व्यक्ति की आयु अल्पायु है, मध्यायु है अथवा दीर्घायु है या फिर उत्तमायु है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति की अल्पायु है और अल्पायु में ही उसे मारक ग्रह की दशा प्राप्त हो जाती है तो उसकी मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है लेकिन यदि उस व्यक्ति की आयु मध्य आयु या फिर दीर्घायु है लेकिन मारक ग्रह की दशा अल्प आयु में प्राप्त होती है तो व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती अपितु उसे मृत्यु तुल्य कष्ट या शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और कार्यों में अड़चनें आती हैं। 

यदि कुंडली में मारक ग्रह अनुकूल स्थितियों में अर्थात स्वराशि या फिर उच्च राशिगत है तो ऐसा भी संभव है कि जब मारक ग्रह की दशा आए तो कुछ शारीरिक कष्ट और समस्याएं हों लेकिन उसके बाद आपको अनुकूल परिणाम भी प्राप्त होने लगें और जीवन में अनेक क्षेत्रों में आपको सफलता भी प्राप्त हो सकती है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता। इसका तात्पर्य यह है कि ये ग्रह यदि अष्टमेश हों तो कुंडली में मृत्यु तुल्य कष्ट नहीं देते लेकिन फिर भी अष्टमेश होने के कारण जीवन में कष्ट तो आ ही सकते हैं। 

अब यदि अष्टम भाव का स्वामी होकर सूर्य केंद्र भाव में उच्च राशिगत हों तो सूर्य की महादशा प्राप्त होने पर व्यक्ति में डर, घबराहट, मानसिक तनाव और शारीरिक कष्ट तो अष्टम भाव के प्रभाव के कारण आ सकते हैं लेकिन क्योंकि सूर्य अपनी उच्च अवस्था में हैं इसलिए यह व्यक्ति के मान सम्मान में वृद्धि भी करेंगे और आर्थिक स्थिति में भी मजबूती प्रदान करेंगे। इस प्रकार मारक ग्रह का प्रभाव जीवन में अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग रूप में देखा जा सकता है।

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मारक ग्रह के उपाय (Marak Grah Ke Upay)

ज्योतिष में मारक ग्रह हम जानते हैं कि जीवन में कष्ट प्रदान करते हैं और ईश्वर की शरण में जाना कष्टों  से मुक्ति का प्रमुख उपाय है। इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को सदैव अच्छे कार्य अर्थात अच्छे कर्म करने चाहिएं ताकि उसे कष्टकारी समय की प्राप्ति ना हो तथा ईश्वर भक्ति में सदैव तत्पर रहना चाहिए ताकि ईश्वर उसके कष्टों को हर सकें। वैदिक ज्योतिष में जब मारक ग्रह की दशा और महादशा चल रही हो और व्यक्ति को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो तो कुछ विशेष उपाय करने से कुछ हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। हालांकि यह मानकर चलें कि जीवन में जो भी आपको प्राप्त हो रहा है, वह आपके कर्मों का ही परिणाम है इसलिए आप को भुगतना तो पड़ेगा ही लेकिन ईश्वर की शरण में जाने से काफी हद तक आपके अंदर वह सामर्थ्य आ जाता है कि आप उन चुनौतियों का सामना कर सकें। मारक ग्रह की दशा होने पर निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:- 

  • समस्त संसार के कष्टों को हरने वाले भगवान शिव की पूजा करना मारक ग्रह की दशा का सर्वोत्तम उपाय है इसलिए यदि आपकी कुंडली में किसी मारक ग्रह की दशा चल रही हो और आपको अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ रहा हो तो आपको भगवान शिव का रुद्राभिषेक विधिवत संपन्न कराना चाहिए। इससे आपको उन कष्टों से  काफी हद तक मुक्ति मिल सकती है। 
  • भगवान शिव का महामृत्युंजय स्वरूप को परिभाषित करने वाले मंत्र “ॐ नमः शिवाय मृत्युंजय महादेवाय नमोस्तुते” कर नियमित जाप करना भी आपको संकटों से उभारने का सरल माध्यम बन सकता है। 
  • यदि आपकी कुंडली में मारक ग्रह का प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा हो, आपकी मरणासन्न स्थिति हो या फिर शारीरिक रूप से अत्यधिक कष्ट हो तो भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्||”  जाप करना अथवा करवाना चाहिए। 
  • विशेष परिस्थितियों में संपुटयुक्त महा मृत्‍युंजय मंत्र “ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ||” का जाप किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा करवाया जा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त लघु मृत्‍युंजय मंत्र “ॐ जूं स: माम् पालय पालय स: जूं ॐ।” मंत्र का जाप भी किया जा सकता है। 
  • यदि आपके परिवार के किसी अन्य सदस्य को कोई समस्या आ रही है। यह आपका कोई अपना पीड़ित अवस्था में है तो मारक ग्रह के उपाय के रूप में “ॐ जूं स: (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए आप यह जाप कर रहे हैं) पालय पालय स: जूं ॐ।” का जाप करना लाभदायक रहता है। 
  • इसके अलावा मारक ग्रह की दशा अंतर्दशा को देखते हुए उस मारक ग्रह से संबंधित वस्तुओं का उस मारक ग्रह के दिन, नक्षत्रों और होरा में दान किया जा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त उस मारक ग्रह की शांति के लिए पूजन, अनुष्ठान, जब तक आगे भी किया जा सकता है। 
  • यदि आप मारक ग्रह की दशा के प्रभाव में हो तो आपके लिए श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करना भी उत्तम रहेगा। 
  • मारक ग्रह का प्रबल प्रभाव देना लग्नेश अर्थात आपके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं होता इसलिए आपको मारक ग्रह की दशा में अपने लग्न के स्वामी ग्रह और राशि के स्वामी ग्रह के मंत्रों का अनुष्ठान कराना चाहिए। 
  • मारक ग्रह के उपाय में गायत्री मंत्र का पुरश्चरण कराना भी मारक की दशा को नियंत्रित करने का एक अच्छा उपाय है।

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इस प्रकार उपरोक्त उपायों के द्वारा मारक ग्रह से संबंधित अशुभ प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सकता है क्योंकि जैसा कि हमने बताया हमारे जीवन में ग्रह जो भी प्रभाव देते हैं। वह हमारे पूर्व जनित कर्मों का ही प्रभाव होता है, इसलिए सदैव इस बात का ध्यान रखें कि आपके किसी भी कर्म से किसी को कष्ट ना हो सत्कर्म करते हैं। ऐसे मारक ग्रह भी आपके मार्ग में बाधा उत्पन्न नहीं करते और ईश्वर की प्राप्ति होती है। 

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