लोकसभा में टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भले ही अपनी कुर्सी बचा पाने में कामयाब रहीं हो लेकिन अभी तक उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। पहले बीजेपी-टीएमसी कार्यकर्ताओं का खुनी खेल और अब पश्चिम बंगाल में ‘कट मनी’ को लेकर सड़कों से लेकर संसद तक ममता सरकार के खिलाफ राज्य में रोज़ाना प्रदर्शन हो रहे हैं। इसके अलावा राज्य के कई टीमएसी नेताओं के खिलाफ भी इस मामले में लोग अपना क्रोध व्यक्त करते हुए हिंसक प्रदर्शन रहे हैं।
बंगाल का ‘कट मनी’ का मुद्दा संसद में भी उठा
मौके की नज़ाकत को समझते हुए अब भाजपा भी कोलकाता में ममता बनर्जी को घेरते हुए संसद में भी यह मामला उठा दिया है। ऐसे में राजनीतिक दखल के चलते सरकार के खिलाफ होने वाले ये प्रदर्शन अब हिंसक रूप लेते दिखाई दे रहें हैं। इसका उदाहरण उस वक़्त देखने को मिला जब बर्धमान के कालना इलाके में गांववालों और स्थानीय लोगों ने इसी मामले में अपना गुस्सा दिखते हुए तृणमूल कांग्रेस के एक स्थानीय नेता की पिटाई कर दी।
लोगों के आक्रोश का असर कुछ ये हुआ कि अब नेता आम लोगों को कट मनी की रकम लौटा रहे हैं। याद रहे कि 2019 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए इसे लेकर पश्चिम बंगाल सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। जिसके बाद लोकसभा में इस मामले को फिर से उठाने वाले भाजपाई सांसद सौमित्र खान ने इस पूरे मामले पर केंद्र से जांच की मांग करते हुए ममता सरकार पर आरोप लगाए हैं कि ये पता लगाया जाए कि मुख्यमंत्री और उनके परिवार के खाते में कितनी राशि गई है।
जानिए आखिर क्या होती है कटमनी?
पश्चिम बंगाल में कट मनी का कोई नया नहीं है बल्कि ये सालों से चला आ रहा है। आसान शब्दों में समझाएं तो ये राज्य में किसी भी योजना का लाभ दिलाने के लिए एक अनौपचारिक कमीशन होती है। जिसे सत्ताधारी नेताओं राज्य और केंद्र सरकार की योजना का लाभ दिलाने के लिए सालों से ‘कट मनी’ के रूप में अपनी जेब भरते रहे हैं।
इसे ऐसे समझा जा सकता है कि यदि सरकार किसी विशेष परियोजना के वित्तपोषण के लिए सरकारी खज़ाने से 1000 रुपए जारी करती है, तो स्थानीय नेता, जो कई बार चुने गए प्रतिनिधि भी होते हैं, उस अनुदान राशि को प्राप्त करने के लिए कमीशन के रूप में 25% यानी 250 रुपए वसूल करते हैं। और इस कमीशन को छोटे नेता से लेकर बड़े नेताओं और मंत्री तक सभी के बीच अलग-अलग तरीके से बाँटा जाता है।
आयकर से बचने के लिए बड़े स्तर पर होता है नकदी का अदान-प्रदान
बता दें कि जहाँ अब पूरा देश डिजिटल की राह पर चलता दिख रहा है वहां अभी भी कट मनी की राशि को आमतौर पर नकदी में ही लिया जाता है, और ऐसा करने के पीछे का सबसे बड़ा कारण होता है कि इससे आयकर विभाग की नजरों से बचा जा सकना। हमारे देश में जैसा सब जानते हैं कि एक परियोजना जिस राशि को ध्यान में रखते हुए शुरू की जाती है उसे पूरा होते-होते उसकी असल राशि कई गुना तक बढ़ जाती है। इसलिए बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की ‘कट मनी’ यानी कमीशन भी करोड़ों में बनती है। ये राशि कितनी बड़ी होती हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में टीएमसी के एक बूथ अध्यक्ष त्रिलोचन मुखर्जी ने करीब 2.25 लाख रुपए से अधिक की ‘कट मनी’ की धनराशि लौटा दी, जो उन्हें 141 मज़दूरों से उनकी आठ दिन की मजदूरी से ली गई थी।
सिर्फ बंगाल तक ही सीमित नहीं है रिश्वत लेने का ये खेल
आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले वर्ष एक ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट द्वारा इस बात का पता चला कि ‘कट मनी’ का यह खेल सिर्फ टीएमसी या पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। बल्कि भारत में इस तरह से रिश्वत लेने का ये तरीका महज एक साल में 11 फीसद बढ़ी है। जिसमे मुख्य तौर पर पंजाब, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के सरकारी अधिकारी सबसे भ्रष्ट निकलकर सामने आए हैं।
वर्षों से सरकार की नाक के नीचे चलता आ रहा है ‘कट मनी’ का ये खेल
खबरों की माने तो ‘कट मनी’ का ये भ्रष्ट खेल पश्चिम बंगाल में वाम दल के शासनकाल के समय से चला आ रहा है। हालांकि ये मुद्दा विधानसभा में भी कई बार उठा है जिसमे विपक्ष (कांग्रेस, वाम दल और भाजपा) ममता बनर्जी सरकार को घेरती रही है। ऐसे में एक बार फिर ये मुद्दा गरमाया हुआ है जिसमे पूरे पश्चिम बंगाल में कट मनी को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन इन दिनों देखने को मिल रहे हैं। जिसे गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों से अपना रिफंड प्राप्त करने के लिए कट मनी लेने वालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने को कहा है।
ममता बनर्जी ने पहले ही रकम लौटाने की या फिर जेल जाने की दी थी चेतावनी
ग़ौरतलब है कि मामले ने जब तूल पकड़ी तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दिनों ही अपने कार्यकर्ताओं के साथ इस मुद्दे को लेकर बैठक की और उसके बाद सभी नेताओं और मंत्रियों को कट मनी की राशि वापस करने की सलाह देते हुए, इस फैसले को न मानने वालों को जेल जाने के लिए तैयार रहने तक की चेतावनी दी। जिसके परिणाम स्वरूप इस चेतावनी ने ज़मीनी स्तर के छोटे कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच बहुत अधिक नाराज़गी पैदा की है।