श्राद्ध से जुड़ी इस अनुठी प्रथा के बारे में नहीं जानते होंगे आप !

पितृ पक्ष के दौरान हिंदू धर्म के लोग अपने पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं, इस दौरान घर के वरिष्ठों द्वारा श्राद्ध कर्म किया जाता है और पूर्वजों को तर्पण दिया जाता है। पूरे भारत में पितृपक्ष के दौरान तर्पण की क्रिया को यूं तो घर के वरिष्ठ द्वारा किया जाता है लेकिन उत्तर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में महबुलिया एक ऐसी अनूठी परंपरा है जिसको बच्चों द्वारा पूरा किया जाता है।

वैसे तो बुंदेलखंड में भी बाकी भारत की तरह पितृपक्ष के दौरान पूजन-अनुष्ठान और श्राद्ध कर्म किया जाता है लेकिन यहां इसके साथ एक खास प्रथा भी है। इस प्रथा के अंतर्गत बालिकाओं की महबुलिया पूजा इस समय की जाती है और ऐसा माना जाता है कि इसके जरिए नई पीढ़ी को संस्कार सिखाने का काम किया जाता है।

एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है महबुलिया

महबुलिया को विंध्य क्षेत्र में एक पर्व के रुप में मनाया जाता है और इस पर्व का इंतजार बच्चे पूरे साल भर करते हैं। इस पर्व के दौरान बच्चों के द्वारा गीत संगीत के प्रोग्राम किय जाते हैं। इस पर्व के दौरान महुबल को सजाया जाता है। इस पर रंग बिरंगे फूल और पत्ते लगाये जाते हैं। पितृ विसर्जन के दिन महबुल की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है और फिर इसे पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।। जब महबुलिया को बच्चों द्वारा विसर्जित कर दिया जाता है उसके बाद यही बच्चे रास्तों पर आकर राहगीरों को प्रसाद स्वरुप भीगी चने की दाल और लाई का प्रसाद भेंट करते हैं।

महबुलिया पूजा विधि

आपको बता दें कि महबुलिया पूजा हर दिन अलग-अलग लोगों के घरों में आयोजित की जाती है। महबुलिया पूजा में बच्चों के अलावा घर की कोई वृद्ध महिला भाग लेती है और बच्चों को पूजा को
विधि-विधान से करने का तरीका सिखाती है। इसके साथ ही वृद्ध महिला द्वारा बच्चों को लोक संस्कार का पाठ भी सिखाया जाता है। बुंदेली लोक जीवन में मुख्य रूप से इस प्रथा को बेहद ख़ास माना जाता है। इस प्रथा के द्वारा खासतौर से बेटियों के महत्व को बताया जाता है। हालाँकि इस प्रथा शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारे में कोई ख़ास जानकारी अभी तक नहीं मिली है। आधुनिकता के दौर में अब धीरे-धीरे बुंदेलखंड की इस परंपरा का भी क्षय हो गया है। अब महज कुछ ही ऐसे लोग हैं जिन्होनें इस परंपरा को जीवित रखा है।

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