जानें कौन थे सृष्टि के सबसे पहले नर्तक ?

त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) में सबसे लोकप्रिय भगवान शिव को ही माना जाता है। भगवान भोलेनाथ को बहुत ही जल्दी प्रसन्न होने वाला देवता मानते हैं। कहा जाता है कि शिव सिर्फ एक लौटा जल और बिल्व पत्रों में ही आराधना को स्वीकार कर लेते हैं। भगवान शिव के अनेकों नाम है, जैसे भोलेनाथ, शिव, शंकर, अर्ध नारीश्वर, हरिहर, हर, महादेव आदि। लेकिन शिव का ही एक रूप नटराज भी है, जो सृष्टि के प्रथम नर्तक के रूप में भी जाने जाते हैं। नटराज को प्रकृति या समस्त जगत के सृजन और विनाश दोनों के कर्ता-धर्ता  के रूप में भी जानते हैं। तो चलिए आज इस लेख में भगवान शिव के इसी नटराज स्वरूप के बारे में आपको बताते हैं।

शिव के नटराज रूप की कथा

पुराणों के अनुसार एक बार त्रिपुर नामक राक्षस का अत्याचार लोगों पर बहुत बढ़ गया था।  तब भगवान शिव ने लोगों को त्रिपुर से बचाने के लिए उसका वध कर दिया और उसके बाद वे खुशी से झूमने लगे। नृत्य करते समय शुरुआत में उन्होंने अपनी भुजाएं नहीं खोली, क्योंकि वे जानते थे, कि यदि वे अपनी भुजाएं खोल देंगे, तो उससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ जायेगा और सृष्टि का विनाश होने लगेगा। लेकिन थोड़ी देर बाद भगवान शिव नृत्य में इतने मग्न हो गए कि उन्हें किसी तरह का सुध नहीं रहा और वे खुल कर नृत्य करने लगे। उनके ऐसा करते ही सृष्टि भी डगमगाने लगी। तब देवी पार्वती ने संसार की रक्षा के लिए स्वयं भी प्रेम और आनंद में भरकर लास्य नृत्य आरंभ कर दिया, जिसके बाद वापस से सृष्टि में संतुलन होने लगा। थोड़ी देर बाद भगवान शिव भी शांत हो गए। तभी से भगवान शिव को सृष्टि के प्रथम नर्तक के रूप में जाना जाने लगा।

नटराज स्वरूप व उसके प्रतीक चिन्ह

अगर नटराज के स्वरूप की बात करें, तो भगवान शिव एक बौने राक्षस पर तांडव नृत्य करते हुए दिखते हैं। उस स्वरुप में बौनापन का मतलब शारीरिक दिव्यांगता नहीं है, बल्कि बौना अज्ञान का प्रतीक है। एक अज्ञानी व्यक्ति का कद समाज में हमेशा बौना ही माना जाता है। जो खुशी अज्ञान को दूर कर ज्ञान प्राप्त करने पर मिलती है, उन्हीं भावों को शिव के इस स्वरूप में देखा जा सकता है। 

नटराज मुद्रा में उनके बायें हाथ में अग्नि दिखाई देती है, जो कि विनाश की प्रकृति है। इसीलिए शिव को विनाशक भी माना जाता है। अपनी इस अग्नि से शिव समस्त ब्रह्माण्ड में मौजूद नकारात्मकता को नष्ट करते हैं। नटराज की इस नृत्य मुद्रा में शिव का एक पैर उठा हुआ है, जो कि हमें स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने का संकेत करता है। शिव का यह आनंदित स्वरूप बहुत ही व्यापक है, जितना अधिक यह विस्तृत है, उतना ही अनुकरणीय भी है।

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