जानिए क्यों और कैसे मनाते हैं लोहड़ी और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाएँ

लोहड़ी का त्यौहार किसानों के नए साल के रूप में मनाया जाता है। यूं तो यह त्योहार मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा का है लेकिन समय के साथ पूरे उत्तर भारत में और धीरे-धीरे दुनिया भर के लोग लोहड़ी का यह त्यौहार बेहद ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। लोहड़ी को अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तो आइए अब जानते हैं कि, इस नए साल में लोहड़ी किस दिन मनाई जाएगी? साथ ही जानते हैं इस त्यौहार का महत्व और इतिहास? 

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कब मनाई जाएगी लोहड़ी? 

इस वर्ष लोहड़ी बुधवार, जनवरी 13, 2021 को मनाई जाएगी

लोहड़ी संक्रान्ति का क्षण – 08 बज-कर 29 मिनट (सुबह), जनवरी 14

लोहड़ी क्यों मनाई जाती है? 

लोहड़ी का त्यौहार पंजाब में फसल काटने के दौरान मनाया जाता है। फसल काटने के बाद किसानों की आमदनी होती है और इससे घर में ख़ुशियाँ आती है। इसी खुशी को जश्न के रूप में मनाने के लिहाज से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन लोग आग जलाकर उसमें गुड़, गजक, तिल, इत्यादि डालते हैं। इसके अलावा लोहड़ी से जुड़ी कई तरह की प्राचीन कहानियां भी प्रचलित हैं, जिसे लोग इस दिन सुनते हैं। 

लोहड़ी का इतिहास 

लोहड़ी बीते कई वर्षों से मनाया जाने वाला एक बेहद ही खूबसूरत त्यौहार है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो लोहड़ी का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के पौष माह में आता है और इसके बाद से ही सर्दियाँ कम होने लगती है और यह समय होता है नई फसल के शुरू होने का। 

कैसे मनाते हैं लोहड़ी? 

लोहड़ी के दिन लोग आग जलाकर इसके इर्द-गिर्द घूमते नाचते गाते और ख़ुशियाँ मनाते हैं। आग में लोग गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक इत्यादि डालते हैं और इसके बाद एक दूसरे के साथ यह सभी चीजें बांटते भी हैं। इसके अलावा इस दिन पॉपकॉर्न, तिल के लड्डू, मूंगफली की पट्टी भी लोग एक दूसरे के साथ बांटते हैं। 

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लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं 

लोहड़ी का त्यौहार मनाने के पीछे इतिहास में कई कारण बताए गए हैं। लोहड़ी हमेशा की तरह हिंदू कैलेंडर के अनुसार विक्रम संवत एवं मकर संक्रांति से जोड़कर देखा जाता है। इस त्योहार को शरद ऋतु के खत्म होने पर मनाने का प्रचलन है। साथ ही यह त्यौहार किसानों के नव वर्ष के रूप में देखा जाता है। 

लोहड़ी से जुड़ी ज्योतिषीय मान्यताएं 

ज्योतिष के अनुसार लोहड़ी का त्यौहार इस मकसद के साथ मनाया जाता है कि, हमारी आने वाली पीढ़ियाँ अपने बड़े बुजुर्गों से अपने रीति-रिवाज़ों परंपराओं का पालन करना सीखें। इसके अलावा इस त्यौहार को मनाने के लिए स्वास्थ्य से जुड़ा भी एक मकसद है क्योंकि, इसके पहले के महीनों में बहुत ठंड होती है ऐसे में आग जलाने से शरीर को गर्मी मिलती है। वहीं आग में डालने वाली वस्तुएं जैसे गुड़, तिल, गजक, मूंगफली यह हमारे शरीर को कई तरह के आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं। 

लोहड़ी शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है। ‘लो’ अर्थात लकड़ी, ‘ओ’ अर्थात उपले, और ‘डी’  यानी रेवड़ी, और ये तीनों चीज़ इस त्यौहार का केंद्र बिंदु माने जाते हैं। इस दिन लोग नए वस्त्र पहनते हैं महिलाएं नृत्य करती हैं और गाने गाती है और सभी मिलकर एक साथ ईश्वर की पूजा करते हैं। 

लोहड़ी के दिन से जुड़ी परंपराएं 

इस दिन मुख्य रूप से पंजाब समुदाय के लोग अग्नि को साक्षी मानकर प्रार्थना करते हैं और फिर उसके इर्द-गिर्द घूम कर उसमें अलग-अलग वस्तुएं आहुति के रूप में चढ़ाते हैं। इसके बाद लोग अपने दोस्तों रिश्तेदारों पड़ोसियों के घर जाकर इस दिन की शुभकामनाएं देते हैं। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा के लोग पतंगबाजी को बेहद ही शुभ मानते हैं। इस दिन घर पर आए किसी भी बच्चे को खाली हाथ लौट आना अशुभ माना जाता है, इसलिए लोग बच्चों को चीनी, मिठाई, मूंगफली आदि देते हैं। लोहड़ी के दिन सरसों के साग, मक्के की रोटी बनाई जाती है और खीर भी बनाई जाती है।

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लोहड़ी से जुड़ी पौराणिक कथा 

बताया जाता है कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। यह वह समय था जब मामा कंस बाल कृष्ण को मारने के लिए रोज नए प्रयास करता था। एक बार जब सभी लोग मकर संक्रांति का त्यौहार मना रहे थे तब कंस ने भगवान कृष्ण के बाल रूप को मारने के लिए लोहित नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा। राक्षसी वहां बाल कृष्ण को मारने गई थी लेकिन, बालकृष्ण ने खेल-खेल में खुद राक्षसी को ही मार डाला। क्योंकि उस राक्षसी का नाम लोहित था इसलिए, उसके नाम पर ही लोहड़ी के उत्सव का नाम रख दिया गया। 

इसके अलावा सिंधी समाज में भी लोहड़ी के दिन को लाल लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी का यह त्यौहार अग्निदेव को समर्पित है, इसलिए इस दिन लोग चिवड़ा, तिल, मूंगफली, मुरमुरे इत्यादि आग में आहुति के रूप में डालते हैं। इसके अलावा माना जाता है कि, राजा दक्ष की पुत्री सती ने इसी दिन अपने पति के साथ हुए दुर्व्यवहार के चलते खुद को अग्नि में जला दिया था। ऐसे में इस दिन को लोहड़ी के रूप में मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। क्योंकि सूर्य को ऊर्जा का सबसे बड़ा कारक माना जाता है इसलिए, इस दिन सूर्य और अग्नि की पूजा की जाती है। 

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लोहड़ी से जुड़ी दुल्ला भट्टी की कहानी 

जब भी जिक्र होता है लोहड़ी का तो सबसे पहले लोगों के जहन में दुल्ला भट्टी की कहानी आती है या हम दुल्ला भट्टी की कहानी सुनते हैं, लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर यह दुल्ला भट्टी कौन थे? तो हम बता दें मुगल काल में दुल्ला भट्टी पंजाब में अकबर के समय के एक वीर योद्धा थे। माना जाता है कि, दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की रक्षा की थी क्योंकि, उस समय अमीर सौदागर संदल की लड़कियों को बेचते थे। बताया जाता है कि, जब इस बात की भनक दुल्ला भट्टी को लगी तो उन्होंने हिंदू लड़कों से उनकी शादी करवा दी और लड़कियों को सौदागरों के चंगुल से छुड़ाया। इसके बाद ही दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया और हर साल लोहड़ी के दिन इनकी कहानी को सुना और बच्चों को सुनाया जाता है।

एक बार ऐसे ही दुल्ला भट्टी को दो गरीब और रूपवान बहनों सुंदरी और मुंदरी के बारे में पता चला। सुंदरी और मंदिर को जमींदार अगवा करके ले आए थे और उनके चाचा उनकी रक्षा करने में असमर्थ हो रहे थे। दुल्ला भट्टी को जब इस बात की भनक लगी तो उन्होंने लोहड़ी के दिन जंगल में लकड़ी काटकर उसके चारों ओर चक्कर काटकर उन दोनों लड़कियों का विवाह कराया और उनका कन्यादान किया। हालांकि जब दहेज या उपहार देने की बात आई तो वह दुल्ला भट्टी के पास इस वक्त कुछ नहीं था। ऐसे में उसने एक सेर शक्कर देकर दोनों को विदा किया। दुल्ला भट्टी ने अपने पूरे जीवन में महिलाओं का सम्मान, गरीबों की सेवा और अपने राष्ट्र और समुदाय के लिए योद्धा की भूमिका निभाई। ऐसे में लोग दुल्ला भट्टी को निडरता, संघर्ष, सत्य, विश्वास के प्रतीक के रूप में जानते हैं। इसलिए लोहड़ी के दिन लोग उनके किस्से सुनते और सुनाते हैं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी अभी दुल्ला भट्टी की वीरता, शक्ति से सीख ले और उनके तरह निडर होकर जीवन जिए।

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