लाजवर्त रत्न धारण करने की विधि और लाभ

लाजवर्त रत्न (Lajward Stone) शनि और राहु-केतु के बुरे प्रभावों को कम करने के लिए धारण किया जाता है। इस रत्न को नीलम रत्न का उपरत्न माना जाता है।  इस रत्न को धारण करने के कई लाभ हैं जिनके बारे में हम आज इस लेख में चर्चा करेंगे। ज्योतिष में राहु-केतु और शनि को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है इसलिए इन तीनों ग्रहों को शांति करने के लिए अलग-अलग प्रकार के उपाय किये जाते हैं लेकिन यदि यह तीनों ही ग्रह कुंडली में अच्छे न हों तो ज्योतिष के जानकारों के द्वारा लाजवर्त रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। इस रत्न की कई खूबियां और लाभ हैं। आइए विस्तार से जानते हैं लाजवर्त रत्न से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।  

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लाजवर्त रत्न (Lajward Stone) की विशेषता

इस रत्न को धारण करके व्यक्ति के ऊर्जा और सकारात्कता प्राप्त होती है। यह न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक रूप से भी व्यक्ति के जीवन में सुधार लाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह डायबिटीज और मानसिक रोगों में दवा की तरह काम करता है। यह उन लोगों के लिए भी प्रभावी होता है जिनमें एकाग्रता की कमी है। यह व्यक्ति के रचनात्मकता को भी निखारता है। जो लोग खुद को व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं उनको यह रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। 

यह रत्न औषधीय गुणों से युक्त भी माना गया है। इसे धारण करने से पित्त जनित रोग, बावासीर, गूर्दे के रोग, पथरी आदि भी ठीक होने लगते हैं। हृदय के रोगों, पीलिया, मिर्गी और चर्म रोगों में भी इसे कारगर माना गया है। यह रत्न यदि छोटे बच्चों को पहनाया जाए तो उन्हें डर और घबराहट नहीं होती। बच्चों को यह रत्न गले में पहनाया जाना चाहिए। 

किन लोगों को धारण करना चाहिए लाजवर्त रत्न

जैसा कि इस लेख में पहले भी बताया गया है कि यह रत्न उन लोगों के लिए लाभदायक सिद्ध होता है जिनकी कुंडली में शनि और राहु-केतु ग्रह अशुभ होते हैं। इसके अलावा उन लोगों को भी यह रत्न धारण करना चाहिए जिनकी कुंडली में शनि शुभ भावों का स्वामी होकर अच्छी अवस्था में स्थित नहीं होता। 

लाजवर्त धारण करने की विधि

अन्य रत्नों की तरह इस रत्न को भी अंगूठी में या लॉकेट में धारण किया जाता है। इसे पंचधातु में जड़वाकर धारण किया जाता है।  चूंकि यह नीलम का उपरत्न है इसलिए शनिवार के दिन इसको धारण करना शुभ माना जाता है। इसे सुर्यास्त से लगभग दो घंटे पहले धारण करना चाहिए। इसे धारण करते समय नीचे दिये गये शनि के किसी भी एक मंत्र का जाप करना चाहिए। 

शनि बीज मंत्र– ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

शनि मंत्र– ॐ शं शनिश्चरायै नमः

कैसे करें लाजवर्त (Lajward Stone) की पहचान

यह नीलम का उपरत्न है इसलिए नीलम की ही तरह इसका रंग भी नीला होता है। नीले रंग की आभा वाला लाजवर्त रत्न सबसे असरकारक माना जाता है। यदि इस रत्न की आभा गहरी नीली न हो और इसमें बैंगनी, हरे रंग की चमक दिख रही हो तो इसे असरदायक नहीं माना जाता। इस रत्न की चमक और नीलिमा के अनुसार ही इसके दाम भी तय किया जाता है। रत्न यदि गहरी नीली आभा लिये हुए है तो इसका दाम भी अधिक होता है और यह अच्छे फल भी प्रदान करता है। 

कब न करें यह रत्न धारण 

हर रत्न को धारण करने से पहले कुछ सुझाव ज्योतिषाचार्यों द्वारा दिए जाते हैं। इस रत्न को धारण करने के भी कुछ नियम हैं जिन्हे हर किसी को याद रखना चाहिए। इस रत्न को वह लोग धारण न करें जो मोती, पुखराज, माणिक्य या मूंगा रत्न धारण किये हुए हैं। रत्न को धारण करने से पहले इसे सरसों के तेल में कुछ घंटों के लिए डुबाकर रखें। कुछ ज्योतिषीय जानकारों के अनुसार फरवरी महीने में पैदा हुए लोगों के लिए यह रत्न बहुत शुभ माना गया है। 

कहां पाया जाता है लाजवर्त रत्न

यह रत्न भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान में पाया जाता है। इसके साथ ही अर्जैंटीना, अमेरिका और रूस में भी यह रत्न मिलता है। यह रत्न फ्रांस में रसायनिक प्रक्रियाओं के द्वारा बनाया जाता है। अफगानिस्तान और अर्जैंटीना का लाजवर्त रत्न सबसे कीमती माना जाता है।   

लाजवर्त धारण करने से होते हैं यह लाभ

  • मन को शांत करके सकारात्मकता लाता है। 
  • मानसिक स्थिरता के लिए सबसे शुभ रत्नों में से एक। 
  • शनि, राहु-केतु के अशुभ प्रभावों को समाप्त करने में कारगर।
  • यदि व्यवसाय में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो इस रत्न को धारण करने से लाभ मिलता है। 
  • दुर्घटनाओं से बचाता है। 
  • स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करता है। 
  • इस रत्न को धारण करके धन हानि की संभावना न के बराबर हो जाती है। 
  • आर्थिक स्थिति को बेहतर करने में भी लाजवर्त रत्न कारगर है। 
  • यह रत्न कुंडली में मौजूद सूर्य या चंद्र ग्रहण के दोष को भी कम करने में कारगर है। 
  • इस रत्न को धारण करके पारिवारिक जीवन में भी सकारात्मकता आने लगती है।

निष्कर्ष

यह रत्न ज्योतिष में बहुत अहम माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस रत्न की उत्पत्ति असुरों के राजा बलि की केश राशि से हुई थी।  इस रत्न से आभूषणों का निर्माण भी किया जाता है। प्राचीन भारत में भी इस रत्न की अहमियत हमारे पूर्वजों को पता थी इसके साक्ष्य सिंधु घाटी की सभ्यता में मिले अवशेषों से पता चलते हैं। इस रत्न को धारण करके जीवन की कई परेशानियों से निजात पायी जा सकती है, हालांकि कुंडली के अनुसार किसी अच्छे ज्योतिषविद् से परामर्श करने के बाद ही यह रत्न धारण किया जाना चाहिए।  

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