लाभ पंचमी: जानें क्या है इस दिन का महत्व और कैसे करें पूजन?

लाभ पंचमी को सौभाग्य लाभ पंचमी के नाम से भी जानते हैं। यह त्यौहार मुख्यतः गुजरात में मनाया जाता है। लाभ पंचमी को दिवाली के त्यौहार का आखिरी दिन माना गया है। सौभाग्य शब्द का अर्थ होता है अच्छा भाग्य और लाभ का मतलब होता है फायदा, इसलिए लाभ पंचमी या सौभाग्य पंचमी का दिन अच्छे भाग्य और की कामना के लिए बेहद लाभकारी माना गया है। 

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गुजरात में लाभ पंचमी के दिन ही दिवाली के उत्सव का समापन होता है। ऐसे में इस दिन को बेहद ही शुभ माना जाता है। लाभ पंचमी के दिन पूजा अर्चना करने से इंसान के जीवन, उसके व्यवसाय, और परिवार में लाभ, अच्छा भाग्य, और उन्नति का आगमन होता है। गुजरात के व्यवसायी दिवाली के बाद इस त्यौहार को मना कर फिर अपने काम की शुरुआत करते हैं। 

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नोट: गुजरात न्यू ईयर के हिसाब से लाभ पंचमी से पहले कामकाजी दिन की शुरुआत होती है। 

लाभ पंचमी या सौभाग्य लाभ पंचम कब मनाई जाती है? 

लाभ पंचमी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाई जाती है। इसे ज्ञान पंचमी, लाखेनी पंचमी भी कहते हैं। 

लाभ पञ्चमी बृहस्पतिवार, नवम्बर 19, 2020 को

प्रातःकाल लाभ पञ्चमी पूजा मुहूर्त – 06:47 ए एम से 10:20 ए एम

अवधि – 03 घंटे 33 मिनट्स

पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 18, 2020 को 11:16 पी एम बजे

पञ्चमी तिथि समाप्त – नवम्बर 19, 2020 को 09:59 पी एम बजे

लाभ पंचमी के दिन किसी भी नए व्यवसाय या किसी भी नए काम को शुरू करना बेहद ही शुभ फलदाई माना गया है। गुजरात में लाभ पंचमी के दिन का बेहद महत्व होता है और यहां के लोग इस दिन को बेहद ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। लाभ पंचमी के दिन से गुजराती व्यवसायी लोग अपना नया बहीखाता शुरू करते हैं। 

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इस दिन व्यवसाई कुमकुम से बही खाते के बाई तरफ और दाहिनी तरफ शुभ और लाभ लिखते हैं। इसके बाद लक्ष्मी पूजन करते हैं और फिर अपना काम शुरू करते हैं। इसके अलावा जैन समुदाय के लोग इस दिन ज्ञानवर्धक पुस्तकों की पूजा करते हैं और बुद्धि, ज्ञान, इत्यादि की प्रार्थना करते हैं। 

लाभ पंचमी मनाने का तरीका 

  • दिवाली के दिन जो लोग शारदा पूजन नहीं कर पाते हैं वह लक्ष्मी पूजन के दिन अपनी दुकान, व्यावसायिक संस्थान, इत्यादि खोलकर पूजा करते हैं। 
  • इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घर और व्यवसाय में सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, इत्यादि की कामना करते हैं। 
  • इस दिन की एक परंपरा यह भी है कि इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों, मित्र गणों के घर जाते हैं। एक दूसरे को मिठाई और उपहार देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से रिश्ते में मिठास आती है।
  • भारत के कुछ क्षेत्रों में लाभ पंचमी के दिन लोग विद्या की पूजा करते हैं और बुद्धि और ज्ञान के लिए माता से प्रार्थना करते हैं। 
  • लाभ पंचमी के दिन लोग कपड़े, मिठाई, पैसे, इत्यादि जरूरी सामानों को ज़रुरतमंदों को दान देते हैं। इसे बेहद शुभ फलदाई माना जाता है। 

भारत के अन्य हिस्सों में दिवाली का त्यौहार अमूमन भाई दूज के दिन खत्म हो जाता है। मध्य भारत और उत्तर भारत में यह 5 दिनों का त्यौहार होता है। जहाँ त्योहारों का सिलसिला धनतेरस से शुरू होता है फिर, नरक चौदस, और  दिवाली, फिर अन्नकूट, और अंत में भाई दूज का त्यौहार मनाते हैं। 

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लेकिन गुजरात में यह त्यौहार धनतेरस से शुरू होकर लाभ पंचमी के दिन खत्म होता है। दिवाली के दूसरे दिन गुजरात में लोग कहीं घूमने चले जाते हैं और यह घूमना दो या तीन दिन तक चलता है।  इसके बाद लाभ पंचमी के दिन सब अपने घर वापस लौट कर कामकाज में जुटते हैं और नए सिरे से अपने काम की शुरुआत करते हैं।

लाभ पंचमी का महत्व क्या है?

लाभ पंचमी का यह त्यौहार रोशनी के त्यौहार दिवाली से जुड़ा हुआ है। ‘लाभ’ शब्द का मतलब होता है फायदा और इस प्रकार लोगों के जीवन में योग्यता और अच्छा भाग्य लाने के लिए इस दिन को जाना और मनाया जाता है। गुजरात राज्य में, लोग मानते हैं कि लाभ पंचमी की पूजा करने से वह पेशेवर और व्यक्तिगत दोनों मोर्चों पर अच्छे भाग्य, धन और खुशी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। लाभ पंचमी का यह त्यौहार कोई भी नया व्यापार उद्यम शुरू करने या स्थापित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना गया है।

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