ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली में कुल 9 ग्रह होते हैं जिनका हमारे जीवन पर काफी गहरा असर पड़ता है। व्यक्ति की कुंडली में अलग-अलग भावों में और अलग अलग स्थितियों में मौजूद यह ग्रह अलग-अलग (शुभ-अशुभ) प्रभाव देने के लिए जाने जाते हैं। कई बार कुंडली में ग्रहों की युति भी देखने को मिलती है, युति का अर्थ होता है दो ग्रहों का एक साथ होना। ऐसे में ग्रहों की युति भी व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव डालती है।
आज अपने इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको बताएँगे कुंडली में सूर्य-चन्द्र की युति का प्रभाव, ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों का महत्व इत्यादि बातें। जानकारी के लिए बता दें कि यह ख़ास विश्लेष्ण हमारे जाने-माने ज्योतिषी द्वारा तैयार किया गया है।
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ज्योतिष में सूर्य ग्रह-चन्द्र ग्रह
ज्योतिष में नवग्रहों में सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा कहा गया है। राजा का प्रभुत्व अपने क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका में होता है। यह व्यक्ति के पिता, अधिकार, आक्रामकता का निर्वहन करता है। सूर्य जातक पर आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है।
वहीं हम चंद्र देव ग्रह की बात करें तो उन्हें रानी का स्थान प्राप्त है। वह माता, भावनाओं, मनोदशाओं, रचनात्मकता और जातक पर भावुक भागों का प्रतिनिधित्व करता है।
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“जहाँ सूर्य अग्नि का तो वहीं चंद्रमा पानी का प्रतिनिधित्व करता है। जब आग और पानी को एक साथ संपर्क में रखा जाता है, तो वे भाप बनाते हैं अर्थात मन कि कल्पना का हास होने लगता है। इसके कई बार देखा गया है कि, जब सूर्य और चंद्रमा का संयोग बनता है, तो यह व्यक्ति को कई बार मजबूत और दृढ़ भी बनाता है और कई बार नही भी बनाता है। जब भी दोनों ग्रह एक ही जगह में मौजूद होते हैं, तो अमावस्या या शुक्ल पक्ष प्रतिपदा होती है।”
यानि की इन दोनों ही ग्रहों का कुंडली में शुभ स्थिति में होना बेहद ही अनिवार्य और महत्वपूर्ण होता है और यदि ऐसा हो जाये तो व्यक्ति के जीवन से तमाम परेशानियों का अंत होने लगता है। जहाँ सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है वहीं दूसरी तरफ चंद्रमा मन का कारक होता है और सफलता के लिए आत्मा और मन का संतुलन में होना बेहद ही आवश्यक होता है।
कुंडली में सूर्य-चंद्र युति का फल
- चन्द्र सूर्य से जितना अधिक दूरी पर रहेगा उतना बल प्राप्त करता है।
- ज्योतिष शास्त्र में यह भी कहा गया है एवम देखा गया है कि कालपुरुष की कुंडली में चतुर्थ भाव स्वामी चन्द्र एवम पंचम भाव स्वामी सूर्य कि युति केंद्र एवम त्रिकोण की युति होती है जो राजयोग का निर्माण करती है।
- सूर्य चन्द्र युति का सूक्ष्म विचार बहुत आवश्यक होता है। सूर्य चन्द्र के प्रभाव में आकर अस्त हो जाता है किंतु कई विद्वानों के कथन में पाया गया है कि चन्द्र सूर्य से प्रकाश, ऊर्जा लेकर मन को उज्ज्वलता देता है इसीलिए उसे अस्त की संज्ञा नही दी जाती है।
- सूर्य दाई आँख तो चन्द्र बाई आँख का प्रतिनिधि है। साथ ही सूर्य दायाँ एवम चन्द्र बायाँ स्वयं है। सूर्य पिता एवम चन्द्र माता है तो इन्ही से सृष्टि का संचार होता है।
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महापर्व दीपावली पर जन्मी सन्तान अधिकतर भाग्यशाली रही है एवम अन्य अमावस्या जन्म पर उसे दोष युक्त कर दिया जाता है। अमावस्या के जन्म समय नक्षत्र का आँकलन कर लेने से जातक के भाग्य के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है ।
चन्द्र सूर्य युति के फल कथन में शनि, मंगल, राहु, केतु एवम चतुर्थ, पंचम भाव का विचार किया जाना उचित होगा।
मेष एवम वृश्चिक लग्न में चन्द्र सूर्य केंद्र त्रिकोण के मालिक होते हैं। अंशात्मक विचार करने पर यह राजयोग का निर्माण करती है। साथ ही इनकी दृष्टि सम्बन्ध हो तो राजयोग बनेगा। अन्य बात करें तो हमे मात्र चन्द्र की उपस्थिति को देखना आवश्यक होता है।
सभी भावो में यह युति भाव एवम अपने कारक तत्व में अलग अलग प्रकार से अपने फल देती है, किन्तु चतुर्थ भाव मे सूर्य चन्द्र युति में चन्द्र को बल अत्यधिक मिल जाता है। जिसके फलस्वरूप सूर्य के कारकतत्व में कमी आ जाती है। एवम दशम भाव मे विपरीत परिस्थिति आकर चन्द्र बलहीन हो जाता है।
सूर्य चंद्र युति से बनता है अमावस्या योग
ज्योतिष की दुनिया में सूर्य और चंद्रमा को एक दूसरे से अलग और दूर होने की बात पर ज्यादा ज़ोर दिया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह दोनों ग्रह जितने एक दूसरे से दूर होंगे उतने ही शुभ परिणाम जातक को देंगे। चंद्रमा सूर्य से जितना दूर होगा उतना ही बलि होगा। हालांकि जब यह दोनों ग्रह मिलकर युति करते हैं तो इससे अमावस्या योग का निर्माण होता है। अमावस्या योग जातकों के लिए शुभ नहीं माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में अमावस्या योग बनता है तो उसे चंद्रमा के शुभ फल प्राप्त नहीं होते।
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सूर्य चंद्र युति के बुरे प्रभाव से बचने के उपाय
- सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करें और शिवलिंग पर जल अर्पित करें।
- जरूरतमंद लोगों को चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं का दान करें।
- कोशिश करें कि सुबह जितनी जल्दी हो सके उतने जल्दी जागे और रात को जल्दी सोए।
- मुमकिन हो अमावस्या के दिन व्रत रखें।
- मांस मदिरा का सेवन ना करें।
नोट: यह लेख मेरे (आचार्य तुषार जोशी के) सूक्ष्म ज्ञान से इतना ही बाकी अन्य विद्वान के मत सर्वोपरि है।
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