कुंभ विशेष: क्या होता है शाही स्नान और इस वर्ष किस-किस दिन होगा इसका आयोजन?

कुंभ शब्द का अर्थ होता है अमृत, वहीं इस शब्द का एक और अर्थ होता है मटका। यानी देखा जाए तो इस शब्द का अर्थ हुआ ‘अमृत का मटका’। बात करें अगर कुंभ मेले के इतिहास के बारे में तो, इसे लगभग 800 साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है। अब सवाल उठता है कि, कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई और किसने की कुंभ मेले की शुरुआत? हिंदू पौराणिक ग्रंथों में इस बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती है। हालाँकि जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है, उसके अनुसार कुंभ मेले की शुरुआत सम्राट हर्षवर्धन के समय की मानी जाती है। 

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वहीं कुछ मत यह भी कहते हैं कि, कुंभ की शुरुआत आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। इसके अलावा कुंभ के बारे में एक मत यह भी है जिसके अनुसार कहा जाता है कि, कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी। कहा जाता है कि, हर 12 साल में कुंभ मेले का आयोजन होता है। हालांकि इस बार कुंभ मेले का आयोजन 1 साल पहले ही यानी वर्ष 2021 में हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्ष 2022 में गुरु कुंभ राशि में नहीं होंगे। इसलिए इस बार 11 साल में ही कुंभ मेले का आयोजन किया जा रहा है। 

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इस साल कुंभ मेले की शुरुआत 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से हो जाएगी। कुंभ मेले का पहला शाही स्नान 11 मार्च को किया जाएगा, दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को किया जाएगा, तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल और चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को किया जाएगा। आइए अब जानते हैं कुंभ मेले और कुंभ के शाही स्नान का महत्व। 

  • मान्यता है की संगम स्थल पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी। ऐसे में यहां स्नान का बेहद महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि, जो कोई भी व्यक्ति कुंभ मेले में स्नान करता है उसका शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। यही वजह है कि, बहुत से लोग यहां पर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने भी आते हैं क्योंकि ऐसा करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, जो कोई भी व्यक्ति कुंभ स्नान करता है उसे पितृ दोष कैसे कुंडली के बड़े दोषों से मुक्ति मिलती है। साथ ही ऐसे व्यक्तियों को उनके पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। 
  • यूं तो कुंभ मेले का के दौरान किया जाने वाला स्नान विशेष फलदाई होता है लेकिन, अगर कोई इंसान शाही स्नान के दिन स्नान करता है तो उसे अमरत्व की प्राप्ति होती है। \

कुंभ मेले का शाही स्नान 

जैसा कि, नाम से ही साफ है कि यह स्नान शाही अंदाज़ में किया जाता है। इस दौरान साधु संत अपने हाथी, घोड़े और सोने चाँदी से सजी पालकी में बैठकर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। इस दिन शाही स्नान में पहले साधु संत स्नान करते हैं और उसके बाद आम जनता को स्नान का मौका मिलता है। शाही स्नान के दिन कुंभ मेले की खूबसूरती अलग ही नजर आती है। शाही स्नान के लिए शुभ मुहूर्त निर्धारित किया जाता है और मान्यता है कि, इस शुभ मुहूर्त में जो कोई भी व्यक्ति स्नान करता है उसके अनजाने में भी किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। शाही स्नान के दिन का शुभ मुहूर्त सुबह करीब 4:00 बजे से शुरू हो जाता है। मान्यता है कि शाही स्नान की परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई है।

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