कोकिला व्रत: जानिए क्यों रखा जाता है ये व्रत और क्या है इसका महत्व !

हिन्दू धर्म में ऐसे बहुत से व्रत और त्यौहार हैं जिनका अपना अलग महत्व है। उन्हीं महत्वपूर्ण व्रत-त्यौहारों में से एक व्रत है कोकिला व्रत जिसे मुख्य रुप से सुहागिन महिलाएं रखती हैं। ये व्रत मुख्य रूप से आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। आने वाले 19 जुलाई को पूर्णिमा के दिन इस व्रत को सुहागिन और कुंवारी महिलाएं रख सकती हैं। यहाँ हम आपको इस व्रत से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों और इसे रखने के पीछे के महत्वों के बारे में बताने जा रहे हैं।

कोकिला व्रत का महत्व

हिन्दू सभ्यता में 84 लाख देवी देवताओं के साथ ही विभिन्न पेड़-पौधे और पशु पक्षियों की पूजा भी की जाती है। इसी श्रेणी में कोकिला व्रत भी आता है, ऐसी मान्यता है कि कोकिला व्रत के दिन व्रती महिलाओं के द्वारा कोयल का दर्शन करना शुभ होता है। पौराणिक हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन यदि व्रती महिलाओं को कोयल की आवाज भी सुनायी दे जाए तो उसे अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है।

इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

एक पौराणिक हिन्दू कथा के अनुसार कोकिला व्रत मुख्य रूप से देवी सती और शिव जी से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया और शिव जी को छोड़कर बाकि सभी देवताओं को शामिल होने का निमंत्रण दिया। ये बात जब देवी सती को पता चली तो उन्होनें शिव जी से अपने मायके जाने की ज़िद की, शिव जी ने उन्हें मना भी किया लेकिन उन्होनें एक ना सुनी और अपने मायके चली गयी। माता सती जब मायके पहुंची तो उन्होनें वहां शिव जी का घोर अपमान देख खुद को अग्नि में भस्म कर लिया। सती के भस्म होने की खबर सुन शिव जी रौद्र अवतार में आ गये और उन्होनें सभी देवताओं को तहस नहस कर दिया। ऐसा देख भगवान विष्णु ने शिव जी से निवेदन किया कि वो सभी देवताओं को पुनः जीवित कर दें। शिव जी ने सभी देवताओं को तो जीवित कर दिया लेकिन वो माता सती को उनकी बात ना मानने की वजह से माफ़ ना कर पाए और उन्हें दस हज़ार वर्षों तक कोयल बनकर विचरण करने का श्राप दे दिया। ऐसी मान्यता है कि माता सती ने शिव जी को वापस पति के रूप में पाने के लिए आषाढ़ माह की पूर्णिमा को व्रत रखा था जिसके बाद पार्वती के रूप में उनका जन्म हुआ।

महिलाओं के लिए क्या अहमियत है इस व्रत की

बता दें कि हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार कुंवारी महिलाओं का कोकिला व्रत रखने से उन्हें सुयोग्य और मनवांछित वर की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सुहागिन महिलाएं इस दिन व्रत रखकर अपने पति के साथ को सात जन्मों के लिए सुनिश्चित कर लेती हैं। इस दिन व्रती महिलाओं को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद नए वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव और देवी पार्वती की विधिवत रूप से पूजा अर्चना करनी चाहिए। कोकिला व्रत के दिन निराधार व्रत रखने से अच्छे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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