कालाष्टमी पर जानें इस दिन का महत्व, पूजन विधि और काल भैरव मन्त्र

जुलाई का यह महीना व्रत-त्योहारों से भरा जा रहा है। हालाँकि अगर आपका मन किसी सवाल के जवाब ना मिल पाने की स्थिति में अशांत हैं, जिससे आपका पूजा-पाठ में मन नहीं लग पा रहा है तो, अभी हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषियों से प्रश्न पूछकर उनसे उचित परामर्श लें और अपने सवालों का हल जानें। क्योंकि जबतक मन नहीं शांत होगा तबतक आप भगवान की पूजा में भी ध्यान नहीं दे पाएंगे। 

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अपने इस आर्टिकल में हम आपको कालाष्टमी पूजा के बारे में सारी जानकारी देंगे। इस दिन किस भगवान की पूजा का विधान बताया गया है? पूजन विधि और इसका महत्व, सभी महत्वपूर्ण जानकारी जानने के लिए आगे पढ़ें। 

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी पूजा की जाती है। इस वर्ष कालाष्टमी 12-जुलाई, 2020 को मनायी जाएगी। इस दिन भगवान शिव के ही एक अवतार काल भैरव की पूजा का विधान बताया गया है। इस दिन के बारे में प्रचलित मान्यता के अनुसार इस दिन पूजा करने से घर में फैली हुई सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार कालाष्टमी के दिन ही भगवान शिव ने बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए रौद्र रुप धारण किया था और काल भैरव भगवान शिव का ही एक स्वरूप है। इसके अलावा देश के कई हिस्सों में इस दिन माँ दुर्गा की पूजा का भी विधान भी है।

कालाष्टमी पूजा मुहूर्त 

  • कालाष्टमी तारीख़ : 12 जुलाई 2020, रविवार
  • अष्टमी शुरुआत : 12 जुलाई, 15:50:17 से लेकर 
  • अष्टमी समाप्त : 13 जुलाई,  18:11:51 तक

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कालाष्टमी व्रत का महत्व 

काल-भैरव भगवान शिव का ही एक रूप हैं, ऐसे में कहा जाता है कि जो कोई भी भक्त इस दिन सच्ची निष्ठा और भक्ति से कालभैरव की पूजा अर्चना करता है, भगवान शिव उस इंसान के जीवन से सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालकर उसको सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।  

कालाष्टमी पूजन विधि 

कालाष्टमी के दिन भैरव देव की पूजा मुख्य रूप से रात के समय ही की जाती है क्योंकि भैरव को तांत्रिकों के देवता माना गया है। रात के समय भैरव देव की पूजा के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना भी की जानी चाहिए।

  • इस दिन सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें, साफ़ कपड़े पहनें और उसके बाद  भैरव देव की पूजा करें।
  • इस दिन की पूजा में मुख्य रूप से भैरव देव को शमशान घाट से लायी गयी राख चढ़ाएं जानें का विधान है।
  • क्योंकि काले कुत्ते को भैरव देव की सवारी माना गया है, ऐसे में कालाष्टमी के दिन भैरव देव के साथ ही काले कुत्ते की भी पूजा का विधान बताया गया है।
  • पूजा के बाद काल भैरव की कथा कहने या सुनने से भी इंसान को लाभ मिलता है।
  • इस दिन खासतौर से काल भैरव के मंत्र “ॐ काल भैरवाय नमः” का जाप करना भी फलदायी और बेहद शुभ माना जाता है।
  • इसके साथ ही इस दिन माँ बंगलामुखी का अनुष्ठान भी करना बेहद शुभ माना गया है।
  • इस दिन अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार गरीबों को अन्न और वस्त्र दान करने से पुण्य मिलता है।
  • इसके अलावा अगर मुमकिन हो तो कालाष्टमी के दिन मंदिर में जाकर कालभैरव के समक्ष तेल का एक दीपक ज़रूर जलाएं। 

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काल भैरव मंत्र 

काल भैराव की पूजा में काल भैरव मंत्र का बेहद महात्मय बताया गया है। (काल भैरव मंत्र- मंत्र जप विधि और उसका विस्तृत महत्व जानने के लिए यहाँ क्लिक करें)। आइये अब संक्षिप्त में जानते हैं  काल भैरव की पूजा और उनके मंत्र का महत्व।

  • ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के रूद्र स्वरूप काल भैरव की उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली हर प्रकार की समस्या और बाधा अवश्य ही दूर हो जाती है।
  • यही वजह है कि भैरवाष्टमी के शुभ दिन बाबा भैरवनाथ के सही मंत्रों का प्रयोग करने का विधान बताया गया है। ऐसा करके आप अपने व्यापार, जीवन में आने वाली किसी भी तरह की कठिनाइयों, अपने शत्रु पर विजय, कार्य में बाधा, हर प्रकार के मुकदमे में जीत, आदि में लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • इसके अलावा, काल भैरव के मन्त्रों से मिलने वाले लाभ का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है। काल भैरव की उपासना करने से जीवन की हर तरह की मुश्किल आसान हो जाती है।

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जानें क्या है भैरव देव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा 

यह बात तो हमनें आपको बता ही दी है कि काल भैराव को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है। मान्यता है कि शिव शंकर के क्रोध से ही भैरव देव का जन्म हुआ था। इसके पीछे प्रचिलित एक पौराणिक कथा के अनुसार, ‘एक समय की बात है जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देवों में इस बात को लेकर बहस छिड़ गयी कि उनमें से सबसे पूज्य कौन है?

उनके इस विवाद का कोई निष्कर्ष निकले, ऐसा सोचकर इस बहस के निवारण के लिए उन्होंने स्वर्ग लोक के देवताओं को बुला लिया और उनसे ही इस बात का फ़ैसला करने को कहा। इसी बीच भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा में कहासुनी हो गयी। इसी बहस में शिव जी को इस कदर गुस्सा आ गया कि उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। माना जाता है कि उसी रौद्र रूप से ही भैरव देव का जन्म हुआ था।

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अपने इसी रौद्र रूप, भैरव देव के रूप में शिव जी ने ब्रह्मा जी के पांच सिरों में से एक सर को काट दिया और तभी से ब्रह्मा जी के केवल चार ही सिर हैं।’

भैरव देव पर लगा ब्रह्मा-हत्या का आरोप 

ब्रह्मा जी का सर काटने के कारण भैरव देव पर ब्रह्मा-हत्या का दोष चढ़ गया, जिसके निवारण के लिए कुछ वर्षों तक भैरव देव को बनारस में एक गरीब ब्राह्मण के रूप में रहना भी पड़ा था। क्योंकि भगवान शिव ने भैरव देव के रूप में कालाष्टमी के दिन ही ब्रह्मा जी को दंड दिया था इसलिए इस दिन को कुछ जगहों पर दंडपाणि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

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इस महीने का अगला व्रत/त्यौहार है श्रावण सोमवार है, जो 13 जुलाई 2020, सोमवार के दिन मनाया जायेगा। सावन सोमवार के बारे में अधिक जानने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।

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