इन दिनों बाज़ार में दिवाली की रौनक दिखने लगी है। बाजार में लोग जमकर दिवाली की शॉपिंग कर रहे हैं। वहीं घरों की दीवारों में रंगाई पुताई भी होने लगी है। ये सारी चीज़ें दर्शाती हैं कि दिवाली का त्यौहार कितना बड़ा पर्व है। यह त्यौहार रौशनी का पर्व कहलाता है।
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दीवाली में सदियों से रही है दीये जलाने की परंपरा
इस त्यौहार में दीपक, झालरें और मोबत्तियाँ जलाई जाती हैं। क्योंकि यह त्यौहार सदियों से मनाया जा रहा है इसलिए समय के साथ इसको मनाने के स्वरूप में भी बदलाव आया है। त्रेता युग में भगवान श्री राम के अयोध्या वापस लौटने पर अयोध्या वासियों ने दीये जलाए थे। यानि दीवाली के दिन युगों से ही दीये जलाने का महत्व है।
दिवाली में दीपक जलाने का महत्व
पुुराणों के अनुसार दीपावली के दिन केवल महालक्ष्मी के लिए ही नहीं बल्कि पितरों के निमित्त भी दीये जलाए जाते हैं। दीपक के साथ आतिशबाजी, आकाशदीप, कैंडल आदि जलाने की प्रथा के पीछे यह धारणा है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरंभ होती है। हमारे पूर्वज कहीं मार्ग से भटक न जाएंं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है।
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ख़ुशियों और प्रकाश का प्रतीक होता है दीपक
पर्व-त्यौहार ख़ुशियों का प्रतीक होते हैं। इसमें घर-परिवार, रिश्तेदारों, यार-दोस्तों से मिलना होता है। सभी लोगों का साथ जीवन में ख़ुशियों को लाता है। जिस प्रकार भगवान श्री राम के आगमन पर अयोध्या के लोगों ने घी के दीये जलाए थे। यह उनकी ख़ुशी को दर्शाने का एक तरीका था। क्योंकि अयोध्या वासी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम बेहद प्रेम करते थे।
वहीं दीपक जलाने का महत्व इसलिये भी है कि यह हमारे जीवन से अंधकार को दूर करता है। प्रकाश शब्द अपने आप में ही एक सकारात्मक शब्द है। दीपक जलाने का तात्पर्य ये है कि इससे हमारे मन का अंधकार दूर हो। यदि हमारे मन में कोई पाप या किसी के प्रति घृणा है तो वह दूर हो। इसलिए दीवाली में गले मिलकर एक-दूसरे को मिठाई देकर सारे शिकवे गिले भुलाए जाते हैं।
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