हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इस सारे संसार को चलाने वाले शक्ति के रूप में दुर्गा माँ की पूजा अर्चना की जाती है। इसी शक्ति को प्रसन्न करने के लिए विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि का पावन त्यौहार मनाया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार के आखिरी दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। आज हम आपको इस दौरान किये जाने वाली पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। वैसे तो दोनों ही पर्व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं लेकिन इनकी पूजा विधि एक दूसरे से बिल्कुल अलग है। आइये जानते हैं क्या अंतर इस दौरान किये जाने वाले पूजा विधि में।
नवरात्रि के दौरान किस प्रकार से करें देवी माँ की उपासना
ऐसी मान्यता है कि, नवरात्रि के दौरान दुर्गा माँ की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के सांसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है। इस दौरान विधि विधान के साथ माँ की पूजा अर्चना और व्रत रखने का विशेष महत्व है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है और नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक माँ की पूजा अर्चना का संकल्प लिया जाता है। इस दिन विशेष रूप से पूजा स्थल के एक कोने में गोबर से उस जगह को लीपकर वहां लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके बाद नौ दिनों तक विधि पूर्वक देवी माँ की पंचोपचार विधि से पूजा अर्चना की जाती है। सुबह-शाम देवी माँ की पूजा अर्चना के बाद उनकी आरती की जाती है और देवी माँ के विभिन्न मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
देवी माँ की पूजा के दौरान इन बातों का रखें ख्याल
नवरात्रि के दौरान दुर्गा माँ की पूजा आराधना के समय विशेष रूप से लाल रंग के फूलों का इस्तेमाल करें। बता दें कि, देवी माँ को भूलकर भी दूर्बा, आंवला, आक या मदार के फूल अर्पित ना करें। पूजा के समय हमेशा लाल रंग के आसन का ही चुनाव करें। देवी माँ की पूजा के दौरान लाल रंग का वस्त्र धारण करना और लाल कुमकुम का तिलक करना आवश्यक माना जाता है। इसके साथ ही साथ देवी माँ के विभिन्न मंत्रों का जाप करना भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि के दौरान माँ के निम्नलिखित मंत्रों का जाप अवश्य किया जाना चाहिए।
- ॐ दुं दुर्गायै नमः
- हीं श्रीं क्लिं दुं दुर्गायै नमः
- हीं दुं दुर्गायै नमः
- ऐं हीं क्लिं चामुण्डाये विच्छो
विजयादशमी पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को सांझ तारा उदय काल को विजय काल कहा जाता है और इस दिन को विजयदशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से दुर्गा माँ का विसर्जन किया जाता है और साथ ही स्थापित किये गए कलश को विसर्जित किया जाता है। सुबह के समय देवी की विधि अनुसार पूजा अर्चना की जाती है। शाम के वक़्त भगवान् श्री राम सहित देवी सीता और लक्ष्मण की भी पूजा की जाती है। इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। शाम के वक़्त अमूमन हर जगह रावण जलाया जाता है और रामलीला का आयोजन किया जाता है।
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