परिवर्तिनी एकादशी: जानें शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा!

29 अगस्त, शनिवार को परिवर्तिनी एकादशी हैइस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन वामन देव की पूजा करने से वाजपेय यज्ञ के जितना फल मिलता है और मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। परिवर्तिनी एकादशी को पार्श्व एकादशी, वामन एकादशी, जयझूलनी एकादशी, पद्मा एकादशी, डोल ग्‍यारस और जयंती एकादशी जैसे कई नामों से जाना जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के वामन अवतार के साथ-साथ लक्ष्मी पूजन करना भी श्रेष्ठ माना गया है। 

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हिन्दू धर्म में हर महीने आने वाले एकादशी तिथि को बहुत ख़ास माना जाता है। हिंदू पंचांग की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी कहा जाता है। एकादशी का अर्थ होता है ‘ग्यारह’। वैसे तो साल में कई एकादशी आती हैं, लेकिन उन सब में परिवर्तिनी एकादशी का विशेष महत्व है। इसलिए इस दिन व्रत रखा जाता है और विधि-विधान से वामन देव की पूजा की जाती है। चलिए आज इस लेख के माध्यम से आपको इस दिन के बारे में विस्तार से बताते हैं-

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परिवर्तिनी एकादशी समय और पूजा मुहूर्त 

पार्श्व एकादशी पारणा मुहूर्त 05:58:16 से 08:31:29 तक 30, अगस्त को
अवधि 2 घंटे 33 मिनट
  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 08 बज-कर 40 मिनट 04 सेकंड से, 28 अगस्त 2020
  • एकादशी तिथि समाप्त: 08 बज-कर19 मिनट 18 सेकंड तक, 29 अगस्त 2020

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इस एकादशी का नाम क्यों पड़ा परिवर्तिनी एकादशी?

मान्यता है कि चौमास यानी आषाढ़, श्रावण, भादो व् अश्विन के महीनों में भगवान विष्‍णु सोए रहते हैं, तभी कोई भी शुभ कार्य इन महीनों में करने की मनाही होती है। भगवान विष्‍णु सीधे देवउठनी एकादशी के दिन ही उठते हैं, लेकिन चौमास में एक समय ऐसा भी आता है जब श्री हरि विष्‍णु सोते हुए ही अपनी करवट बदलते हैं। यह समय भादो(भाद्रपद) महीने के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तिथि का होता है। भगवान विष्‍णु के इसी परिवर्तन के कारण इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मृत्‍यु के बाद स्‍वर्गलोक की प्राप्‍ति होती है और व्यक्ति के जीवन से सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। परिवर्तिनी एकादशी की कथा में इतना असर है कि इसे पढ़ने या सुनने मात्र से हजार अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिल जाता है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत का महत्व 

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि कोई परिवर्तिनी एकादशी का व्रत सच्चे  मन से रखता है तो उस व्यक्ति से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद उसपर बनाए रखते हैं। परिवर्तिनी एकादशी व्रत का प्रमाण पुराणों में भी मिलता है, जिसके अनुसार इस दिन व्रत रखने वाले जातक को वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को नियमपूर्वक करना बेहद आवश्यक माना जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के  दिन खासतौर पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने से जातक के मान-सम्मान और यश में भी वृद्धि होती है। साथ ही साथ उसके सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती है। श्रद्धापूर्वक यह व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो भी इस व्रत को सच्‍चे मन और श्रद्धा भाव से रखता है, उसके द्वारा  जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। 

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत सच्चे मन और पूरे विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है। एकादशी व्रत की शुरुआत एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही हो जाती है। इसीलिए इस व्रत की पूजा बहुत ही ध्यान से करनी चाहिए। चलिए जानते हैं इस व्रत की सम्पूर्ण पूजा-विधि :

  • एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि यानि व्रत से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद से भोजन नहीं करना चाहिए। दशमी के दिन भी सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए और रात में श्री हरी का ध्यान कर के सोना चाहिए।
  • व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें। अब साफ़ वस्त्र धारण कर लें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। 
  • पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करने के बाद विष्णु जी की प्रतिमा या चित्र को स्‍नान करा कर और वस्‍त्र पहनाकर स्थापित करें।
  • अब भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं।
  • भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें जिसमें उन्हें अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं। पूजा में तुलसी के पत्ते का उपयोग अवश्य करें। 
  • इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्‍णु की आरती उतार लें और परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनें या सुनाए।
  • व्रत वाले दिन दूसरों की बुराई करने और झूठ बोलने से बचना चाहिए। इसके अलावा तांबा, चावल और दही का दान करना कल्याणकारी माना गया है।
  • व्रत रखने वाले जातक अन्न ग्रहण ना करें। शाम को पूजा करने के बाद फलहार कर सकते हैं।
  • एकादशी के अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद विधिपूर्वक पूजा करने के बाद  किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दक्षिणा दे और उसके बाद अन्न-जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें। 

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परिवर्तिनी एकादशी व्रत की कथा

परिवर्तनी एकादशी के दिन व्रत रखने वालों को भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा को अवश्य पढ़ना या सुनना चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले महाभारत काल के समय पांडव पुत्र अर्जुन के आग्रह करने पर भगवान कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी के महत्व के विषय में बताया था। कथा अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था,जो कि भगवान् विष्णु का परम भक्त था। बलि बहुत ही दानी,सत्यवादी और ब्राह्मणों की सेवा करता था। वह हमेशा यज्ञ, तप आदि भी किया करता था।

अपनी भक्ति के प्रभाव से राजा बलि बेहद शक्तिशाली हो गया था। उसे देवराज इंद्र से द्वेष था, जिसके चलते उसने इंद्रलोक पर विजय पायी और स्वर्ग में देवराज इंद्र के स्थान और सभी देवताओं पर राज्य करने लगा। बलि से भयभीत और परेशान होकर देवराज इंद्र और सभी देवतागण मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गए और भगवान से रक्षा की प्रार्थना की। देवताओं की परेशानी को दूर करने के लिए विष्णु जी ने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि के पास गए और अपने तेजस्वी रूप से उसपर विजय प्राप्त की।

वामन रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली।  बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था। लेकिन उसके अंदर एक गुण था कि वह कभी किसी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं लौटने देता था। वह  ब्राह्मण को दान में मांगी वस्तु अवश्य देता था। वामन देव ने बलि से तीन पग भूमि की मांग की। वहां मौजूद दैत्य गुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की चाल को समझ गए और बलि को आगाह भी किया। लेकिन बावजूद उसके बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और उन्हें  तीन पग जमीन देने का वचन दे दिया। 

वचन मिलते ही विष्णु जी ने विराट रूप धारण कर लिया और एक पांव से पृथ्वी तो दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब तीसरे पांव के लिए राजा बलि के पास कुछ भी नहीं बचा था। इसलिए बलि ने वचन पूरा करते हुए अपना सिर उनके पैरों के नीचे कर दिया और भगवान वामन ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया। राजा बलि की वचन प्रतिबद्धता से खुश होकर भगवान वामन ने उसे पाताल लोक का स्वामी बना दिया और कहा कि, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।

परिवर्तिनी एकादशी के दिन श्री विष्णु की एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और दूसरी क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी के दिन ही विष्णु भगवान सोते हुए करवट बदलते हैं। 

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आशा करते हैं परिवर्तिनी एकादशी के बारे में इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
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