जानें करतारपुर गुरुद्वारा साहिब क्यों है सिखों के लिए इतना पवित्र स्थान

पाकिस्तान कॉरिडोर मीडिया की सुर्खियों में है और हो भी क्यों न। क्योंकि अगले महीने 8 नवंबर को गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करतापुर कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में स्थित करतापुर गुरुद्वारा सिख धर्म के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। आज इस ख़बर के माध्यम से हम इस गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में जानेंगे। 

करतापुर कॉरिडोर इस कारण है सिख धर्म के लोगों के लिए पवित्र स्थान 

करतापुर कॉरिडोर का सीधा संबंध सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी से है। यहाँ पर गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन की अंतिम सासें ली थीं। सिख धर्म के इतिहास के मुताबिक श्री गुरु नानक जी जीवन का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के बाद यहाँ आए थे। 

उन्होंने इस जगह पर अपने जीवन के 18 वर्ष बिताए थे। करतापुर में ही उन्होंने लोगों को ज्ञान के माध्यम से अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया था। उन्होने अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को एकेश्वरवाद का उपदेश दिया था। उस ईश्वर को उन्होंने निराकार बताया था।

करतापुर में उन्होंने अपनी रचनाओं और उपदेशों का संकलन को कुछ पन्नों मे पोथी का रूप दिया था और उस पोथी को अगले गुरु के हाथों को सौंप दिया था। इन्हीं पन्नों में आगे के गुरुओं ने भी और रचनाएँ जोड़ीं और अंत में उसे धार्मिक ग्रंथ का रूप दिया।

नानक जी ने करतापुर में ली थी अंतिम साँस

गुरु नानक जी ने 22 सितंबर 1539 को करतापुर में अंतिम साँस ली थी। सिख मान्यता के अनुसार कहते हैं कि जब नानक जी अपने प्राण त्यागे थे तो उनका शव नहीं मिला था। शव की बजाय फूल मिले थे, जिन्हें हिन्दुओं जला दिया था और मुस्लिमों ने दफन कर दिया था। 

उनके स्मरण में वहाँ पर करतापुर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण करवा दिया। सिख धर्म के लोग यहां दर्शन के लिए आने लगे और इसकी देख-रेख करने लगे। पाकिस्तान के सिखों के लिए गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर उनके प्रथम गुरु का धार्मिक स्थल है तो वहीं यहां के मुस्लिमों के लिए यह उनके पीर की जगह है।

इतिहास के अनुसार, गुरु नानक देव की तरह भाई लहणाजी को गुरु गद्दी भी करतापुर में सौंपी गई थी। जिन्हें सिख समुदाय के दूसरे गुरु अंगद देव के नाम से जाता है। इसके बाद गुरु नानक देव जी ने यहीं पर समाधि ले ली थी।

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