होलाष्टक शुरू, आठ दिन भूल से भी ना करें ये काम

होलाष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। होली और अष्टक, अर्थात होली से पहले के आठ दिन।

सबसे पहले समझिये क्या है होलाष्टक…. देश भर में होली की तैयारी की शुरुआत हो चुकी है। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक के समय को होलाष्टक कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार होली के पहले आठ दिनों में कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है। इस बार होलाष्टक 3 मार्च से शुरू हो कर 9 मार्च तक रहेगा। 

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होलाष्टक की शुरुआत में क्या करें?

होलाष्टक के दिनों में ही होलिका दहन की लकड़ी और बाकी ज़रूरी सामान जुटाने शुरू कर देने की परंपरा है। इस दौरान भगवान कृष्ण और भगवान शिव की पूजा की जाती है। होलाष्टक के दौरान अलग-अलग दिनों में अलग-अलग चीज़ों से होली खेले जाने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दौरान प्रेम और ख़ुशियों के लिए अगर हम कुछ भी प्रयास करें तो वो सफल अवश्य होता है।

होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक मान्यता

होलाष्टक से जुड़ी मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि होली के पहले के इन आठ दिनों में प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थी। जानकारी के लिए बता दें कि जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बंदी बनाया था वो दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी का ही दिन था। उसी दिन से प्रह्लाद को यातनाएं देनी शुरू कर दी गयी थीं। 

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हालाँकि प्रह्लाद विष्णु भक्त थे जिसके चलते उन्होंने हर तरह के कष्ट और परेशानियाँ झेले और अंत में भगवान की कृपा से बच भी गए। तब अपने भाई हिरणकश्यप की परेशानी देखकर उसकी बहन होलिका मदद करने के लिए आई। होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। 

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ऐसे में वो प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गयी। तब भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो आग से बच गए लेकिन होलिका इस अग्नि में जल गयी। इन आठ दिनों में प्रह्लाद के साथ जो यातनाएं हुईं उसी के चलते होलाष्टक के समय को अशुभ माना जाने लग गया।

होलाष्टक के आठ दिनों में भूल से भी ना करें ये काम 

होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ काम को करने की मनाही होती है। इस बात के पीछे की मान्यता के अनुसार होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। होलाष्टक के इन आठ दिनों में हर एक दिन ग्रह उग्र रूप में होते हैं इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ काम टाल दिया जाता है। 

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हाँ लेकिन जहाँ इस दौरान मांगलिक काम वर्जित माने गए हैं वहीं इस दौरान जन्म-और-मृत्यु के बाद किये जाने वाले काम करने की कोई मनाही नहीं होती है। अब विस्तार से समझिये इन आठ दिनों में आपको क्या काम नहीं करने हैं :

  • सबसे पहले तो इस दौरान किसी भी तरह का कोई भी मांगलिक काम, जैसे शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, या कोई नया व्यवसाय शुरू करना वर्जित माना गया है।
  • होलाष्टक काल में नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार, इत्यादि शुभ संस्कार भी नहीं किये जाने चाहिए।
  • इस दौरान किसी भी तरह का यज्ञ, हवन इत्यादि भी नहीं करना चाहिए।
  • होलाष्टक के दौरान नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके में ही रहने की सलाह दी जाती है।

होलाष्टक के दौरान ज़रूर करें ये काम

होलाष्टक में जहाँ मांगलिक कार्य वर्जित बताये गए हैं वहीं इस दौरान किये जाने वाले कुछ ऐसे भी काम बताये गए हैं जिन्हें करने से आपको शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है। जानिए क्या हैं वो काम,

  • मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान किये गए व्रत और दान से इंसान को भगवान का आशीर्वाद मिलता है और उनके सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
  • इस दौरान दान-पुण्य का विशेष लाभ बताया गया है। इन दिनों में आप अपनी इच्छानुसार किसी ज़रूरतमंद को कुछ भी दान दे सकते हैं।

होलाष्टक का महत्व 

ये आठ दिनों का समय जिसे होलाष्टक कहते हैं वो भक्ति की शक्ति का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि इस समय के दौरान यदि तप किया जाये तो बहुत शुभ होता है। होलाष्टक पर पेड़ की एक शाखा काटकर उसे जमीन में लगाने का रिवाज़ हैं। उसके बाद इस शाखा पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं। बता दें कि इसी शाखा को प्रह्लाद का रूप माना जाता है।

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होलाष्टक का वैज्ञानिक महत्व 

  1. होलाष्टक के पीछे एक वैज्ञानिक महत्व भी बताया जाता है जिसके अनुसार ये वो समय होता है जब मौसम में परिवर्तन हो रहा होता है। मौसम परिवर्तन के चलते हमारा मन कभी अशांत, कभी उदास तो कभी चंचल होता है। ऐसे में इस समय में किये हुए किसी भी काम का परिणाम शुभ नहीं हो सकता है , इसलिए अगर इस दौरान शुभ काम ना ही किये जाये तो बेहतर होगा। इस समय में अगर वो काम किये जाएं जो इंसान के मन को ख़ुशी देते हैं तो ज़्यादा बेहतर होगा, इसलिए होलाष्टक के ख़त्म होते ही रंग खेलकर खुशियाँ मनाने का रिवाज़ है।  
  2. होलाष्टक के पीछे एक और वैज्ञानिक महत्व यह भी बताया जाता है जिसके अनुसार होलाष्टक के पहले दिन यानि कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा अपने उग्र रूप में रहता है। इसके बाद नवमी को सूर्य उग्र रूप में रहता है, इसी तरह दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है। 

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बताया जाता है कि इसी वजह से इन आठ दिनों में इंसान के दिमाग में अजीबोगरीब विकार, शंका, इत्यादि उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसे में मुमकिन है कि इस दौरान शुरू किये गए काम बनने से पहले ही बिगड़ जाएं इसलिए बेहतर होता है यदि हम इस दौरान कोई नया या शुभ काम शुरू ही ना करें। 

होलाष्टक के समाप्त होने पर लोग रंग-अबीर उड़ा कर इस बुरे समय बीत जाने का जश्न मनाते हैं और खुशियों में डूब जाते हैं। 

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