हिन्दू धर्म में 33 करोड़ से भी अधिक देवी-देवता हैं, और उन सभी से जुड़े अनेकों किस्से-कहानियां प्रसिद्ध है। हमने अक्सर अपने बड़े-बुजुर्गों से देवी-देवतों की कहानियां सुनी हैं। आज हम इस लेख में आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं, जिसका संबंध महाभारत से है। यह तो हम सबने सुना है कि प्यार और जंग में सब जायज़ होता है, और यह चीज़ हमें महाभारत के युद्ध में भी देखने को मिली। पांडवों को युद्ध में जीत दिलाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने कई छल भी रचे थे। लेकिन इन सभी छलों में एक छल ऐसा था, जो अगर भगवान कृष्ण ने नहीं किया होता, तो शायद महाभारत का परिणाम कुछ और होता। चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं, आखिर वह कौन सा छल था, जिसने महाभारत के अंत को बदल दिया।
बर्बरीक ने दिया मां को वचन
बात उस समय की है जब पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत के युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। जब यह खबर भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को मिली, तो उनकी भी इस युद्ध का हिस्सा बनने की इच्छा जागी। बर्बरीक अपनी मां से इस युद्ध में भाग लेने की अनुमति मांगने गए। तब बर्बरीक की मां ने कहा कि मैं तुम्हें युद्ध में भाग लेने की अनुमति दे रही हुं, लेकिन तुम उसी पक्ष का साथ दोगे जो निर्बल होगा। बर्बरीक ने कमज़ोर पक्ष की मदद का वचन दिया और अपनी माता से आज्ञा लेकर युद्ध के लिए निकल गए।
ब्राह्मण का वेश धर मिले भगवान कृष्ण
उस समय बर्बरीक की तरकश में केवल तीन ही बाण थे, जो उन्हें भगवान शिव से वरदान स्वरूप मिले थे। तीनों बाणों में इतनी ताकत थी, कि वे उससे तीनों लोक जीत सकते थे। जब बर्बरीक युद्ध के लिए जा रहे थे, तब उन्हें रास्ते में ब्राह्मण का वेश धरे भगवान कृष्ण मिले। यह जानकर कि बर्बरीक केवल तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है , उनकी हँसी उड़ायी। कृष्ण ने यह सवाल किया कि सिर्फ तीन बाण लेकर युद्ध में तुम क्या करोगे। इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि वे इन तीन बाणों से ही पूरे ब्रह्मांड को हिलाने का हौसला रखते हैं। तब भगवान कृष्ण ने परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर तुम सच कह रहे हो, तो इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक ही बाण से भेद कर दिखाओ।
बर्बरीक ने दान में दे दिया अपना शीश
बर्बरीक ने अपने तरकश से एक बाण निकाल, उसे पेड़ के पत्तों की ओर चलाया और सभी पत्तों को भेद दिया। पेड़ के सभी पत्तों को भेदने के बाद वह बाण कृष्ण के पैर के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। बर्बरीक ने कृष्ण से कहा कि आपके पैर के नीचे पत्ता पड़ा है, आप अपना पैर हटा लीजिए, नहीं तो ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। भगवान कृष्ण बर्बरीक की वीरता को देखकर प्रसन्न हुए और पूछा कि वे इस युद्ध में किसकी ओर से भाग लेने जा रहे। बर्बरीक ने अपने माता को दिए वचन के विषय में बताया और कहा कि जो पक्ष निर्बल होगा, वह उसी का साथ देगा। भगवान श्रीकृष्ण को यह पता था कि उस समय कौरव युद्ध में हार रहे थे। कृष्ण यह सोचकर चिंता में पड़ गए कि अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा। इसीलिए ब्राह्मण का भेष धरे श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की और उन्होंने बिना समय गंवाए उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने हंसते हुए अपना शीश काट कर कृष्ण को दे दिया।
शीश देने से पहले बर्बरीक ने कृष्ण को कहा कि वे इस युद्ध को पूरा देखना चाहते हैं। तब कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को युद्ध स्थल के पास सबसे ऊंचे स्थान पर रख दिया और उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में खाटू श्याम के नाम से उनकी पूजा की जाएगी। इस प्रकार श्रीकृष्ण के एक छल ने महाभारत के अंत को बदल कर रख दिया।
जयपुर से 80 किलोमीटर दूर सीकर जिले में स्थित “खाटू श्याम मंदिर” लोगों की आस्था का एक केंद्र है। खाटूश्याम का मंदिर इसी वीर बर्बरीक का है, जहां दूर-दूर से भक्त आकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मन्नत मांगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने युद्ध देखने के लिए बर्बरीक का शीश इसी स्थान पर रखा था।
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