कौन थी रानी पद्मिनी? जानिये उनका इतिहास

निर्देशक संजय लीला भंसाली ने अपनी आने वाली फिल्म पद्मावत के माध्यम से चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी की जीवन कथा को दर्शाने का प्रयास किया है। विवादों में घिरे रहने के कारण हर तरफ इस फिल्म की चर्चा हो रही है।   कई लोगों ने तो रानी पद्मिनी के होने न होने पर भी सवाल उठा रहे है और अगर इतिहासकारो की माने तो वह सूफी कवि जायसी का गढा किरदार थी।

आज हम आपको अपने इस लेख के द्वारा रानी पद्मिनी के इतिहास के बारे में बताएंगे, आइये जानते है कौन थी वह।

किसकी पुत्री थी पद्मिनी

सिंघल प्रदेश के राजा गंधर्वसेन और रानी चम्पावती की पुत्री थी राजकुमारी पद्मिनी। वह बहुत ही सुन्दर थी और उनके रूप की चर्चा चारों तरफ थी। पद्मिनी के पास हीरामणि नामक एक तोता था जो उन्हें अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय था। वह अपना ज़्यादा तर समय अपने उस तोते के साथ ही  बिताती थी।

रानी पद्मिनी का विवाह किससे और कैसे हुआ

जब राजकुमारी बड़ी हुई तो उनके पिता गंधर्वसेन ने उनके स्वयंवर का आयोजन किया और सभी राजाओं को आमंत्रित किया जिसमे राजा मलखान सिंह भी था। यूँ तो वह एक छोटे से राज्य का शाशक था लेकिन स्वयम्वर को जीतने का प्रबल दावेदार भी माना जा रहा था। उस स्वयंवर में चित्तौड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह ने भी हिस्सा लिया था जिनकी पहले से ही एक पत्नी थी।

रतन सिंह ने मलखान सिंह को पराजित कर रानी पद्मिनी से विवाह कर लिया और इस तरह वह चित्तौड़गढ़ की महारानी बन गयी।

एक अच्छे राजा होने के साथ साथ रतन सिंह एक कला प्रेमी भी थे। उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिन में से एक था राघव चेतन जो की एक संगीतकार था और उनके दरबार की शोभा बढ़ाता था। परन्तु संगीत के अलावा उसकी रूचि काली शक्तियों में भी थी।

चेतन अपनी बुरी शक्तियों का प्रयोग दुश्मनों को पराजित करने में करता था। एक दिन रतन सिंह ने उसे रंगे हाथों जादू टोना करते हुए पकड़ लिया। उसके काले सत्य का रहस्य खुलने पर महाराज ने उसे कड़ी सजा देने का एलान किया।

क्रोधित रतन सिंह ने चेतन का मुंह काला कर उसे गधे पर बैठाया और पूरे राज्य में घुमाया। अपने अपमान से आहत होकर वह राज्य छोड़ कर जंगलों में चला गया और रतन सिंह को अपना दुश्मन मानकर उनसे प्रतिशोध लेने की ठान ली।

रतन सिंह से बदला लेने क लिए राघव चेतन पहुंचा अल्लाउद्दीन खिलज़ी के पास

बदले की भावना में चेतन दिल्ली के शासक अल्लाउद्दीन खिलज़ी से जा मिला।

एक बार अलाउद्दीन खिलजी अपने दल के साथ उसी जंगल में शिकार करने गया जहां चेतन रहता था। जब चेतन को  यह पता चला कि सुल्तान भी उसी जंगल में है तो उसने तो उसने अपनी बांसुरी की तान लगाई काले जादू की वजह से खिलजी सम्मोहित होकर उसके पास चला आया।

सुल्तान से मिलने के पश्चात राघव चेतन उसके समक्ष राजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी के सौंदर्य का बखान करने लगा। उसकी बातें सुनकर रसिक मिजाज़ सुल्तान के मन में रानी पद्मिनी को देखने की  उत्पन्न इच्छा होने लगी।

रानी पद्मिनी की झलक पाने की लिए चित्तौड़गढ़ पहुंचा खिलजी

रानी पद्मिनी की सुंदरता के विषय में जानकर खिलजी उन्हें देखने के लिए काफी उत्सुक था। इसलिए वह चित्तौड़गढ़ जा पहुंचा और रतन सिंह से रानी को यह कह कर देखने की गुज़ारिश करने लगा कि वह उसकी बहन के समान है।

सुल्तान की बातों में आकर रतन सिंह ने रानी की छवि उसे एक आईने में दिखा दी जिसे देखते ही वह मंत्रमुग्ध हो गया और प्रण ले लिया कि वह पद्मिनी को हासिल करके ही रहेगा।

खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर कर दिया आक्रमण

अल्लाउद्दीन खिलज़ी ने धोखे से रतन सिंह को बंदी बना लिया और रानी को मांगने लगा। चौहान राजपूत गोरा और सेनापति बादल एक चाल चलकर राजा को किसी तरह आजाद करा लेते है।

जब सुल्तान को पता चला कि उसकी योजना नाकाम हो गयी ,तो उसने गुस्से में आकर चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया। खिलजी की सेना ने रतन सिंह के किले में प्रवेश करने की कड़ी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। इसके बाद उसने किले की घेराबंदी करने का फैसला किया ये घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि किले में खाद्य आपूर्ति धीरे धीरे समाप्त हो गयी। विवश होकर रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दे दिया और सुल्तान के सैनिको से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।

रानी पद्मिनी ने कर लिया जौहर

जब रानी पद्मिनी को इस बारे में पता चला तब उन्होंने एक विशाल चिता सजाई और सभी स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया। जब सभी को मार कर अल्लाउद्दीन खिलज़ी किले में पहुंचा तो उसे रानी तो नहीं मिली बल्कि उनकी चिता की राख मिली।

उस समय राजपूतों की स्त्रियाँ अपनी इज़्ज़त और मान सम्मान की रक्षा करने के लिए जौहर करती थी ताकि उनके पति के अलावा उन्हें कोई भी पराया मर्द हाथ न लगा सके।

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