कश्मीर का प्रसिद्ध क्षीरभवानी मेला रद्द! जानें इस मेले और मंदिर से जुड़ी खास बातें! 

कश्मीर का प्रसिद्ध क्षीर भवानी मेला हर साल 30 मई को लगता है, लेकिन इस साल यह मेला देश में फैली महामारी को ध्यान में रखते हुए रद्द कर दिया गया है, क्योंकि कश्मीर घाटी के अधिकतर जिले कोरोना के कारण रेड जोन में हैं। यह मेला हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन उत्तरी कश्मीर के गंदरबल जिले के तुलमुला गांव में स्थित क्षीर भवानी मंदिर में लगता है। कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों का क्षीर भवानी माता के प्रति विशेष आस्था है। इसे कुछ लोग खीर भवानी मंदिर भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में एक कुंड भी है, जो होने वाली आपदाओं की पहले से ही जानकारी दे देता है। 

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कश्मीर में आतंक का साया होने के बाद भी हर साल हज़ारों की संख्या में देश और दुनिया में बसे कश्मीरी पंडित मेले में शामिल होने के लिए आते हैं। इस यात्रा के लिए सरकार की तरफ से भी यात्रियों की सुविधा के लिए पर्याप्त इंतज़ाम किए जाते हैं और उन्हें हरसंभव सहायता दी जाती है। लेकिन दुर्भाग्य से लोग इस साल मेले का आनंद नहीं ले पाएंगे। क्षीर भवानी माता के लिए लोगों की आस्था के कारण आज क्षीर भवानी मेले में न सिर्फ कश्मीरी पंडित बल्कि अन्य राज्य के लोग भी भाग लेते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता क्षीर भवानी कौन थी और आखिर मंदिर में मौजूद कुंड कैसे अपना रंग बदल लेता है? अगर नहीं जानते तो आज इस लेख में आपको क्षीर भवानी के विषय में पूरी जानकारी दी जाएगी। उम्मीद करते हैं कि इस लेख में चमत्कारी क्षीर भवानी मंदिर और मेले के बारे में बताई गयी बातों को पढ़ने के बाद मेले के आयोजित न होने की निराशा में थोड़ी कमी आएगी

कौन हैं माता क्षीरभवानी? 

श्रीनगर से 24 किलोमीटर दूर कश्मीर घाटी में स्थित खीर भवानी मंदिर हिंदू देवी रगन्या को समर्पित है। क्षीरभवानी माता, को शामा नाम से भी जाना जाता था। दंतकथाओं के अनुसार माता रगन्या पहले श्रीलंका में विराजमान थीं, लेकिन रावण के शासनकाल के दौरान वे श्रीलंका से कश्मीर आ गईं। ऐसा कहा जाता है कि वैष्णवी प्रवृत्ति होने के चलते माता रगन्या राक्षसों के तौर-तरीकों और उनकी गलत कर्मों से नाराज़ हो गईं। रावण के पाप का घड़ा जब भर गया तो भगवान श्रीराम का आगमन वहां हुआ और उन्होंने रावण का वध कर दिया। 

रावण की मृत्यु के बाद श्रीराम ने हनुमानजी को आदेश दिया कि वे मां को उनके मनचाहे स्थान पर छोड़ आएं। माता क्षीर भवानी ने सतीसर (कश्मीर भूमि) जाने की इच्छा ज़ाहिर की। तब देवी रगन्या की आज्ञा का पालन करते हुए हनुमानजी उन्हें 360 नागों के साथ श्रीनगर ले आए। कश्मीर में गंदरबल जिले के तुलमुला क्षेत्र में माता क्षीरभवानी का प्रमुख मंदिर स्थापित है, जिसकी स्थापना महाराजा प्रताप सिंह ने की थी। इस मंदिर में पानी का एक कुंड भी है, जिसे चमत्कारिक माना जाता है। 

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हज़ारों दीये और विशेष खीर से होती है माँ की पूजा 

क्षीरभवानी मेले के समय क्षीर भवानी मंदिर में माहौल भक्तिमय बना रहता है। माता के मंदिर में सुबह और शाम दो समय आरती का आयोजन होता है, जिसमें एक साथ हजारों दीये जलाये जाते हैं। एक साथ इतने सारे दीयों को जलना लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र रहता है। सूरज की पहली किरण के साथ ही मंदिर में भक्तों का पहुँचना शुरू हो जाता है। 

पूजा के दौरान मां का श्रृंगार कर विभिन्न किस्म का भोग लगाया जाता है। प्रसाद के रूप में ड्राई फ्रूट, कंड(शूगर कैंडी से बना)दूध और विशेष रूप से खीर चढ़ाई जाती है। मंदिरों में फूलों से विशेष सजावट की जाती है। मेले के दौरान सड़क से लेकर मंदिर परिसर तक दर्जनों स्टाल लगाए जाते हैं। ये स्टाल वहां के स्थानीय लोग लगाते हैं। क्षीर भवानी मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा भजन कीर्तन भी किया जाता है। इस साल मेला नहीं लगने से वहां के कई स्थानीय लोग, जो मेले के आसपास दुकानें लगाते थे और जिनकी कमाई में इससे बढ़ोतरी होती थी, वो लोग मुश्किल मे आ जाएंगे।

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भविष्‍यवाणी करता है क्षीरभवानी मंदिर का कुंड 

श्रीनगर से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता क्षीरभवानी मंदिर में एक रहस्य्मयी पानी का कुंड भी है। इस कुंड के विषय में यह कहा जाता है कि दुनिया में जब भी कोई आपदा आने  वाली होती है, तो इस कुंड के पानी का रंग बदल जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार माता आज भी इस जलकुंड में वास करती हैं। कश्मीरी पंडित लोगों का कहना है कि 90 के दशक में जब कश्मीर में हालात खराब हो गए थे, तो उस समय इस जल कुंड का रंग एकदम काला हो गया था, जो कि बुरे समय का प्रतीक है। हर साल ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अष्टमी में होने वाले पूजा से पहले इस कुंड में वहाँ के पुरोहित दूध और खीर डालते हैं। इस खीर से कुंड का पानी रंग बदल जाता है। इस कुंड और मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।  

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हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे का है प्रतीक 

कश्मीर का क्षीर भवानी मेला हिन्दू-मुस्लिम भाई चारे का भी प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इस  मेले में वहां के स्थानीय मुसलमान भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, जो वहां आने वाले कश्मीरी पंडित श्रद्धालुओं की देखभाल करते हैं और पूजा सामग्री आदि का इंतज़ाम भी करते हैं। यहाँ तक कि उनकी सुविधा का पूरा ध्यान भी यही लोग रखते हैं। मंदिर में चढ़ने वाली सामग्री वहां के स्थानीय लोगों द्वारा बेचे जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ्ती तक माता क्षीरभवानी आकर पूजा कर चुके हैं। हालाँकि पिछले कुछ समय से कश्मीर के खराब माहौल के चलते प्रशासन द्वारा यहाँ सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए जाते हैं। 

राज्य प्रशासन द्वारा भी बसों का इंतज़ाम किया जाता है। प्रशासनिक अधिकारी पहले से ही श्रद्धालुओं के लिए बेहतर यातायात, सुरक्षा और अन्य सुविधाओं का जायजा लेते हैं। धारा 370 हटा लिए जाने के बाद से तो कश्मीर के हालात काफ़ी बिगड़ गए थे और अब कोरोना के संक्रमण की वजह से यह मेला रद्द कर दिया है, जिसकी वजह से बार उन्हें अपने पुराने दोस्तों, पड़ोसियों से मिलने का मौका नहीं मिलेगा।  

आशा करते हैं कि इस लेख में दी गयी जानकारी आपको पसंद आयी होगी 

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