देश भर में माता भगवती के करोड़ों भक्त हैं और उन भक्तों की आस्था की वजह से भारत में देवी माँ के हजारों मंदिर भी मौजूद हैं। वैसे तो भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो माता भगवती की सेवा में अपना पूरा जीवन न्योछावर देते हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे बेहद ही खास मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां माता भगवती की सेवा में कोई मनुष्य नहीं बल्कि चूहों की पूरी सेना लगी है। इस मंदिर में एक या दो नहीं बल्कि बीस हजार से ऊपर चूहे मौजूद हैं और यहां आने वाले भक्तों को इन्हीं चूहों का जूठन प्रसाद के तौर पर दिया जाता है।
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जी हाँ! सही पढ़ा आपने। हमें पता है कि आप क्या सोच रहे होंगे कि चूहे तो गंदगी फैलाते हैं, उनसे बीमारियां होती हैं लेकिन इसलिए ही तो हम इस मंदिर को विशेष कह रहे हैं क्योंकि अभी तक ऐसा कुछ यहाँ देखने को मिला नहीं है। न तो इस मंदिर में चूहों की वजह से गंदगी दिखती है, न ही किसी प्रकार की कोई बदबू है और यहाँ के प्रसाद से कोई भक्त बीमार भी नहीं होता है। है न रोचक? तो फिर आइये विस्तार से इस मंदिर के बारे में जानते हैं।
करणी माता मंदिर
राजस्थान के बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक नामक जगह पर मौजूद है माता करणी का प्रसिद्ध मंदिर। मंदिर में करणी देवी की पूजा होती है जिन्हें माँ दुर्गा का रूप माना जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार साल 1387 में माँ दुर्गा ने चारण जाति में पुत्री रूप में जन्म लिया और उनका नाम रखा गया रिघुबाई। रिघुबाई जब ब्याह लायक हुईं तो उनका विवाह साठिका गाँव के किपोजी चारण से कर दिया गया। लेकिन रिघुबाई को सांसारिक जीवन रास नहीं आया और उन्होंने उसका त्याग कर दिया।
इसके बाद रिघुबाई ने अपनी छोटी बहन गुलाब से किपोजी चारण का विवाह करवा दिया और स्वयं लोगों की सेवा में जुट गईं। कहते हैं कि उनके सेवा भाव और चमत्कारी शक्तियों की वजह से ही रिघुबाई को आम लोग करणी माता के नाम से बुलाने और पूजने लगे। मान्यता है कि करणी माता 151 साल तक जीवित रहीं और फिर 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हो गईं। माता करणी के ज्योतिर्लिन होने के बाद उनके भक्तों ने उनकी मूर्ति स्थापित की और उनका पूजन शुरू हो गया। मान्यता है कि माता करणी का जहां आज मंदिर मौजूद है वहाँ पहले एक गुफा हुआ करती थी जहां माता करणी अपने इष्ट की पूजा करती थीं।
करणी माता को बीकानेर रियासत की कुलदेवी माना जाता है। मान्यता है कि माता करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर रियासत अस्तित्व में आई थी। 20 वीं शताब्दी में बीकानेर रियासत के महराज गंगा सिंह ने माता करणी का यह भव्य मंदिर बनवाया जो आज भी अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के दरवाजे चांदी से बने हैं और माता का छत्र स्वर्ण निर्मित है। इसके अलावा चूहों के लिए यहाँ मौजूद चांदी की थाली भी आकर्षण का केंद्र है।
करणी माता मंदिर और चूहे
करणी माता के मंदिर की सबसे खास बात हैं यहाँ के चूहे। यहाँ इतने चूहे हैं कि आपको मंदिर में चलने के लिए अपने कदम घसीट के चलने होंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि आप अगर अपने पैर उठाते हुए चलेंगे तो हो सकता है कि कोई चूहा आपके पैरों के नीचे आ जाये और ऐसा होना यहाँ अशुभ माना गया है। इतनी संख्या में मौजूद चूहों की वजह से ही इसे चूहों वाला मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर में मौजूद चूहों को लेकर एक नहीं बल्कि दो कथाएँ सुनने को मिलती हैं।
पहली कथा माता करणी के सौतेले पुत्र लक्ष्मण से जुड़ी है। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने एक बार कोलायल स्थित कपिल सरोवर का पानी पी लिया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। तब माता करणी ने मृत्यु के देवता यमराज से अपने पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया। ऐसे में यमराज ने लक्ष्मण को चूहे के रूप में जीवित कर दिया। इस कथा के अनुसार मंदिर में मौजूद सभी चूहे माता करणी के पुत्र हैं।
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वहीं दूसरी कथा के अनुसार एक बार देशनोक पर 20 हजार सैनिकों का हमला हुआ था। ऐसे में देशनोक की रक्षा करने के लिए माता करणी ने उन सभी सैनिकों को चूहा बना दिया और उन्हें अपनी सेवा में रख लिया।
यहाँ मौजूद चूहों की एक खास बात है। मंदिर में शाम और सुबह की आरती के दौरान सभी चूहे अपने बिल से बाहर आ जाते हैं। यहाँ मौजूद चूहों को मंदिर के पुजारी और भक्त ‘काबा’ बुलाते हैं। ज़्यादातर चूहों का रंग काला है लेकिन कहा जाता है कि यहाँ कुछ सफ़ेद चूहे भी मौजूद हैं जिनका दर्शन काफी दुर्लभ माना गया है। भक्तों के अनुसार वो भक्त जो कोई मनोकामना लेकर मंदिर आते हैं और उन्हें अगर सफ़ेद चूहे दिख जाते हैं तो उन भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। नवरात्रि के दौरान माता करणी मंदिर में बहुत भीड़ होती है।
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