बीते 29 सितंबर से शुरु हुए शारदीय नवरात्रि की धूम देश के हर कोने में है। देश भर में स्थित देवी माँ के विभिन्न मंदिरों में इस दौरान भक्तों की अच्छी खासी भीड़ नजर आती है। आज हम आपको देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ इन दिनों भक्तों का जन सैलाब उमड़ा हुआ है। इस मंदिर की एक प्रमुख विशेषता ये भी है की इसे देश के विभिन्न शक्तिपीठों का महाशक्तिपीठ कहा जाता है। आइये जानते हैं कौन सा है ये मंदिर और क्यों है इसकी विशेष महत्ता।
असम के दिसपुर में स्थित है माता का ये ख़ास मंदिर
आज हम देवी माँ के जिस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वो असल में असम के दिसपुर में स्थित कामाख्या देवी मंदिर है। बता दें कि, देवी माँ का ये मंदिर नीलांचल पर्वत से करीबन 15 किलोमीटर की दूरी पर है। कामाख्या देवी के इस मंदिर को सभी शक्तिपीठों का महाशक्तिपीठ माना जाता है। नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से यहाँ देवी माँ के दर्शन के लिए आने वाले भक्तों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी जा सकती है। देवी माँ के इस मंदिर को बेहद चमत्कारी और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है।
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विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भक्त करते हैं ये उपाय
नवरात्रि के दौरान देश के हर कोने से भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस दौरान भक्त कामाख्या मंदिर में अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए कुंवारी कन्याओं को भोजन करवाते हैं और मंदिर में भंडारे का आयोजन करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, दुर्गा पूजा के दौरान इस मंदिर में विशेष रूप से लोग देवी माँ के निमित्त पशुओं की बलि भी देते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामाख्या देवी को विशेष रूप से शिव जी के नववधू के रूप में पूजा जाता है। देवी अपने भक्तों की मुक्ति स्वीकार कर उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं।
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ऐसा है मंदिर का स्वरुप
देवी माँ के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की, जो भी भक्त अपनी कामना लेकर यहाँ आते हैं माँ उनकी इच्छाओं को जरूर पूर्ण करती हैं। इस मंदिर में उपस्थित साधू और तांत्रिक बुरी शक्तियों से भी लोगों को निजात दिलाते हैं। कामाख्या मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बनाया गया है। इस मंदिर का पहला हिस्सा सबसे बड़ा है जिसे आम लोगों के लिए नहीं खोला जाता है। दूसरे हिस्से में माता की मूर्ति स्थापित है , जहाँ से भक्त माँ के दर्शन करते हैं। इस मंदिर के द्वार महीने में तीन बंद रखें जाते हैं, इसके पीछे धारणा ये है की महीने के तीन दिन माँ मासिक चक्र से गुजरती हैं। इसके बाद चौथे दिन मंदिर के द्वार को खोला जाता है और धूमधाम से पूजा अर्चना की जाती है।