कल्परम्भ विशेष : इस मुहूर्त में करें कल्परम्भ का आयोजन

कल्परम्भ, या जिसे काल प्रारंभ भी कहा जाता है, की क्रिया प्रात: काल में की किये जाने का विधान बताया गया है। प्रात: काल घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद ही महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी, इन तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना-उपवास आदि का संकल्प लिया जाता है।

एस्ट्रोसेज वार्ता से दुनियाभर के विद्वान ज्योतिषियों से करें फ़ोन पर बात!

तो आइये जानते हैं कि इस वर्ष कल्परम्भ, या काल प्रारंभ किस दिन पड़ेगा। इस दिन का महत्व क्या है और इस वर्ष काल प्रारंभ का शुभ मुहूर्त क्या है।

सबसे पहले जानते हैं कि कल्परम्भ का मतलब क्या है?

नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक आराधना होती है। नवरात्रि के ही समय दुर्गा पूजा भी होती है। मान्यतानुसार षष्ठी तिथि से ही दुर्गा पूजा की विधि-विधान से पूजा-आराधना शुरू कर दी जाती है। कहा जाता है कि षष्ठी का यह दिन वहीं दिन है जब देवी दुर्गा धरती पर आती हैं। ऐसे में षष्ठी तिथि के दिन ही कल्पारंभ, बिल्व निमंत्रण पूजन और अधिवास परंपरा निभाई जाती है।

क्या आपकी कुंडली में हैं शुभ योग? जानने के लिए खरीदें एस्ट्रोसेज बृहत् कुंडली

2020 में कल्परम्भ कब है?

इस वर्ष कल्परम्भ, 21-अक्टूबर, 2020 बुधवार के दिन है। आइये अब बात करते हैं कल्परम्भ के शुभ मुहूर्त की।

दिल्ली के लिए शुभ मुहूर्त : 

अक्टूबर 21, 2020 को 09 बज-कर 09 मिनट 26 सेकंड से षष्ठी आरम्भ
अक्टूबर 22, 2020 को 07 बज-कर 41 मिनट 23 सेकंड पर षष्ठी समाप्त

(अपने शहर के अनुसार शुभ मुहूर्त जानें )

अब बात करते हैं बोधन की, बोधन भी दुर्गा पूजा से सम्बन्धित एक परंपरा है जिसका अर्थ होता है माँ दुर्गा को नींद से जगाना। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार दक्षिणायान काल ऐसा समय होता है जब सभी देवी-देवता नींद में चले जाते हैं। ऐसे में बोधन के माध्यम से उन्हें नींद से जगाया जाता है। 

(नवरात्रि के बारे में सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारा विस्तृत आर्टिकल यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं)

करियर की हो रही है टेंशन! अभी आर्डर करें कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट

हालाँकि क्योंकि इस परंपरा के दौरान माँ देवी दुर्गा को असमय ही उनकी नींद से जगा दिया जाता है इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन के बाद अगली परम्परा होती है आमंत्रण की। इसमें माँ देवी दुर्गा की वंदना की जाती है।

बताया जाता है कि सबसे पहले भगवान श्री राम ने सबसे पहले पूजा-अर्चना से देवी दुर्गा को जगाया था और देवी के नींद से जागने के बाद राक्षस ही उन्होंने रावण का वध किया था। 

जानें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता – हेल्थ इंडेक्स कैलकुलेटर

बोधन पूजन विधि :

  • बोधन की परंपरा में एक कलश या किसी पात्र में जल भरा जाता है और फिर उसे बिल्व के पेड़ के नीचे रखा जाता है। 
  • शिव पूजन में बिल्व पत्र का बेहद महत्व होता है। 
  • इसके बाद बोधन की क्रिया में माँ दुर्गा को नींद से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है।

क्या आपको चाहिए एक सफल एवं सुखद जीवन? राज योग रिपोर्ट से मिलेंगे सभी उत्तर!

बता दें कि बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना को आह्वान के नाम से भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।

सभी ज्योतिषीय समाधानों के लिए क्लिक करें: एस्ट्रोसेज ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर

हम आशा करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। एस्ट्रोसेज के साथ जुड़े रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। 

Dharma

बजरंग बाण: पाठ करने के नियम, महत्वपूर्ण तथ्य और लाभ

बजरंग बाण की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। हनुमान जी को एक ऐसे देवता के रूप में ...

51 शक्तिपीठ जो माँ सती के शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के हैं प्रतीक

भारतीय उप महाद्वीप में माँ सती के 51 शक्तिपीठ हैं। ये शक्तिपीठ माँ के भिन्न-भिन्न अंगों और उनके ...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Kunjika Stotram) से पाएँ दुर्गा जी की कृपा

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक ऐसा दुर्लभ उपाय है जिसके पाठ के द्वारा कोई भी व्यक्ति पराम्बा देवी भगवती ...

12 ज्योतिर्लिंग: शिव को समर्पित हिन्दू आस्था के प्रमुख धार्मिक केन्द्र

12 ज्योतिर्लिंग, हिन्दू आस्था के बड़े केन्द्र हैं, जो समूचे भारत में फैले हुए हैं। जहाँ उत्तर में ...

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा ...

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा.