जानिए काल भैरव पर क्यों लगा था भगवान ब्रह्मा की हत्या का पाप?

19 नवंबर 2019 को काल भैरव की अष्टमी मनाई जाएगी। काल भैरव को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है। भगवान काल भैरव के बारे में कहा जाता है कि इनकी पूजा उपासना करने वाले हर इंसान की मनोकामना अवश्य पूरी होती है।  साथ ही अगर किसी भी व्यक्ति पर तंत्र-मंत्र की क्रिया का असर हो तो काल भैरव की उपासना से इन क्रियाओं से भी पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है। हालाँकि शास्त्रों में काल भैरव की पूजा को काफी कठिन माना गया है। 

काल भैरव की पूजा करने से भय का नाश होता है और ऐसा माना जाता है कि इनमें त्रिशक्तियों का मेल होता है। हिंदू देवताओं में काल भैरव जी का बहुत ही महत्व होता है. भगवान काल भैरव दिशाओं के रक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं। 

काल भैरव की पूजा का महत्व 

भगवान काल भैरव की आराधना से शनि का प्रकोप शांत होता है।  रविवार और मंगलवार के दिन काल भैरव की पूजा बहुत फलदायी मानी गयी है। काल भैरव की पूजा और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहते हैं। काल भैरव भगवान की पूजा हमेशा नहा-धोकर और पवित्र होकर ही करनी चाहिए। ये पूजा तभी फलदायी होती है नहीं तो इसका फल नहीं मिलता। काल भैरव की पूजा करने से सभी तरह के गृह-नक्षत्र और क्रूर ग्रहों का अशुभ प्रभाव ख़त्म हो जाता है। 

यहाँ पढ़ें : जानें कैसे करें भगवान शिव के रूद्र अवतार की पूजा!

जानें क्यों भगवान शिव के रूप भैरव पर लगा ब्रह्मा जी के वध का पाप?

शास्त्रों के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में इस बात को लेकर विवाद चल रहा था कि  दोनों में श्रेष्ठ कौन हैं ? काफी समय तक कोई निष्कर्ष ना निकलने के बाद दोनों देवता और अन्य सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनियों के साथ मिलकर भगवान शिव के पास पहुँच जाते हैं।  भगवान शिव ने सभी देवी-देवताओं से पूछा कि आप लोग बताइये कि दोनों में से सबसे श्रेष्ठ कौन है। सभी देवी-देवता और ऋषि मुनियों ने कुछ देर विचार-विमर्श करने के बाद ये फैसला किया कि सबसे श्रेष्ठ तो भगवान शिव ही हैं।  

इस बात से भगवान विष्णु ने तो सहमति रखी लेकिन भगवान ब्रह्मा को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आयी और वो गुस्सा हो गए।  इसी गुस्से में उन्होंने भगवान शिव को कुछ अप-शब्द कह दिया। भगवान ब्रह्मा के मुख से अपने लिए ऐसी बात सुनकर भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और इसी क्रोध से उत्पत्ति हुई उनके एक और अवतार की जिन्हे हम भैरव के रूप में जानते हैं।  शिव-जी के क्रोधित रूप को देखकर वहां मौजूद सभी देवी-देवता डर गए।  

भगवान भैरव जिन्हे उनके रौद्र रूप के लिए ही जाना जाता है उन्होंने गुस्से में ब्रह्मा जी के पांच मुख में से एक मुख को काट डाला।  तभी से ब्रह्मा जी पंचमुखी से चतुर्मुख हो गए। ब्रह्मा जी का एक मुख काटने की वजह से भैरव पर ब्रह्महत्या का इलज़ाम आ गया। इस इलज़ाम के बाद भगवान शिव ने भगवान भैरव से कहा कि तुम त्रिलोक में तब तक भटकते रहोगे जब तक तुम इस ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त न हो जाओ। 

इसके बाद ब्रह्मा जी का वह कटा हुआ शीश अपने आप ही काशी में गिर गया और इसके बाद भगवान शिव ने भैरव जी को काशी का कोतवाल बना दियाजिसके बाद अपने ऊपर लगे ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त होने के लिए भैरव ब्रह्माजी के कटे कपाल को धारण कर तीनों लोक में घूमने लगे। काशी का कोतवाल बनकर ही काल भैरव को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली

नवंबर में काल भैरव अष्टमी 19 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। अष्टमी तिथि प्रारंभ : शाम 3 बज-कर 45 मिनट से (19 नवंबर 2019) अष्टमी तिथि समाप्त : दोपहर 1 बज-कर 45 मिनट  (20 नवंबर) 

काल भैरव मन्त्र: 

यहाँ हम आपको काल भैरव भगवान के कुछ मंत्र बता रहे हैं जिनका उनकी पूजा में इस्तेमाल करना बेहद ही फ़लदायी बताया गया है। 

ॐ कालभैरवाय नम:।’

ॐ भयहरणं च भैरव:।’

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।

Dharma

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