वक्री गुरु 2021 : जानें क्या पड़ेगा धनु और मीन राशि पर प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में नौ ग्रह हैं। उन सभी नौ ग्रहों के बीच बृहस्पति को गुरु का दर्जा प्राप्त है। बृहस्पति सनातन धर्म में भी सभी देवताओं के गुरु माने गए हैं। यानी बृहस्पति न सिर्फ मनुष्यों में पूजनीय हैं बल्कि देवताओं में भी पूजनीय हैं। वैदिक ज्योतिष में सभी बारह राशियों के बीच धनु और मीन राशि के स्वामी बृहस्पति ही हैं। सभी 27 नक्षत्रों में बृहस्पति पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद के स्वामी हैं।

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अब साल 2021 में 20 जून को रविवार के दिन बृहस्पति ग्रह की कुंभ राशि में वक्री चाल शुरू हो जाएगी। इसके बाद वे 14 सितंबर 2021 को दोबारा मार्गी होंगे। इस दौरान वे लगभग तीन महीने वक्री अवस्था में रहेंगे। जाहिर है कि बृहस्पति के वक्री चाल का प्रभाव सभी बारह राशियों पर पड़ेगा लेकिन यहां यह देखना रोचक होगा कि धनु और मीन राशि पर बृहस्पति के वक्री चाल का क्या प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इन दोनों ही राशियों के स्वामी स्वयं बृहस्पति हैं।

धनु राशि

बृहस्पति धनु राशि के प्रथम और चतुर्थ भाव का स्वामी है। वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव लग्न का भाव होता है जबकि चतुर्थ भाव सुख व माता का भाव होता है। वहीं वर्तमान समय में बृहस्पति धनु राशि के त्रित्या भाव यानी कि पराक्रम और सहोदर भाव में वक्री होने जा रहा है। ऐसी स्थिति में धनु राशि के जातकों के संबंध अपने भाई-बहनों के साथ बिगड़ने की आशंका बन रही है। इस दौरान आपके और आपके भाई-बहनों के बीच वैचारिक मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं जिससे आपका मन दुखी हो सकता है। वहीं आर्थिक लिहाज से यह समय धनु राशि के जातकों के लिए शुभ रहने की संभावना है। हालांकि इसकी वजह से ऐसा संभव है कि आपके अंदर किसी प्रकार का घमंड पैदा हो सकता है जिसकी वजह से आप किसी समस्या में भी पड़ सकते हैं। वहीं दूसरी तरह वक्री गुरु की इस अवधि में सामाजिक और पेशेवर ज़िंदगी में आपको तरक्की मिलने की संभावना है। हालांकि आप ऐसा महसूस कर सकते हैं कि आप अपनी बात लोगों तक ढंग से पहुंचाने में असमर्थ रह रहे हैं। इसके साथ ही अचानक पहले से मौजूद चीजों को व्यवस्थित रखना आपको मुश्किल महसूस हो सकता है। इस दौरान आपको आत्मचिंतन करने की जरूरत है।

उपाय : धनु राशि के जातक वक्री गुरु की इस अवधि में रुद्र अभिषेकम का पाठ करेंगे तो गुरु के नकारात्मक प्रभाव से उन्हें निजात मिल सकता है।

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मीन राशि

गुरु मीन राशि के जातकों के प्रथम भाव व दशम भाव के स्वामी माने जाते हैं। प्रथम भाव लग्न भाव होता है और दशम भाव कर्म भाव होता है। वर्तमान में गुरु आपके द्वादश यानी कि व्यय भाव में वक्री होने वाला है। इस दौरान मीन राशि के जातकों के अंदर उच्च ज्ञान को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा जागृत होती दिख सकती है। प्रकृति, ध्यान और किसी प्रकार के अनुसंधान से जुड़ना मीन राशि के जातकों के लिए शुभ रहने की संभावना है। पूरी संभावना है कि वक्री गुरु की इस अवधि में स्वभाव से आप निडर होंगे और आपके शत्रु भी परास्त होंगे। हर परिस्थिति का मजबूती से सामना करने की आपके अंदर एक इच्छा शक्ति पैदा हो सकती है जिससे आपका मन प्रसन्न रहेगा। धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों की तरफ झुकाव महसूस कर सकते हैं। इस दौरान ऐसा मुमकिन है कि आप अपने लिए उम्मीद से ज्यादा की इच्छा पाल बैठें जो कि आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। ऐसे में आपको सलाह दी जाती है कि यथार्थ में जीने की कोशिश करें और कल्पनाओं में गोते न लगाएँ।

उपाय : गुरु के बीज मंत्र “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः!” का नियमित पाठ करें। गुरु के नकारात्मक प्रभाव कम होंगे।

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