वैदिक ज्योतिष पर इस देश और दुनिया में अनेकों लोग विश्वास करते हैं और उनके विश्वास का आधार भी है क्योंकि यह एक ऐसा विज्ञान है, जो आपके भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है। ज्योतिष के अंतर्गत ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों की विशेष परिस्थितियों और संयोजन के कारण बनने वाले विभिन्न योग एवं दोष हमारे जीवन पर नाना प्रकार से प्रभाव डालते हैं, जिनका असर हमें अपने जीवन में अनेक रूपों में देखने को मिलता है। चाहे वह हमारे रिश्ते पर असर डालें, हमारे करियर, व्यापार या हमारे स्वास्थ्य पर, लेकिन वे हमारे जीवन को प्रभावित तो करते ही हैं।
अक्सर लोगों की कुंडली देखते समय यह प्रश्न मन में आता है कि यदि जुड़वाँ बच्चों की कुंडली देखी जाए तो उनका जन्म समय लगभग आसपास ही होता है और उनकी कुंडली भी देखने में लगभग एक समान होती है फिर भी उनके भाग्य, उनकी जीवनशैली में बदलाव देखा जा सकता है। आज हम आपको इस लेख में यही बताएंगे कि जुड़वाँ बच्चों की कुंडली किस प्रकार देखी जा सकती है या उनकी कुंडली एक जैसी होने पर भी उनका जीवन अलग अलग क्यों होता है।
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वास्तव में जुड़वा बच्चों की कुंडली एक महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह आसान कार्य नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से सामने देखने पर दोनों ही जन्म कुंडलियां एक समान प्रतीत होती हैं क्योंकि दोनों के जन्म समय में अधिक अंतर नहीं होता। अब ऐसे में दोनों का भाग्य एक समान नहीं हो पाता तो क्या वजह हो सकती है कि एक जैसी जन्मकुंडली होने के बावजूद भी उनके भाग्य और जीवन की दशा और दिशा में बहुत बड़ा अंतर पाया जाता है। एक बहुत ज्यादा तरक्की करता है तो दूसरा इतनी तरक्की नहीं कर पाता है। दोनों का करियर की दिशा भी अलग-अलग होती है और सोचने समझने का तरीका भी। इस सब को जानने के लिए कुछ विशेष तरीके हैं, जिनके आधार पर जुड़वाँ बच्चों की कुंडली का अध्ययन किया जा सकता है।
जुड़वाँ बच्चों की कुंडली की मुख्य बातें
जुड़वाँ बच्चों का जन्म समय जन्म तिथि जन्म स्थान और जन्म का दिन लगभग एक ही होता है। इसके बावजूद उनकी शक्ल सूरत, उनकी विचारधाराएं, इच्छाएं और उनके चारों तरफ घटने वाली घटनाएं भी लगभग एक समान हो सकती हैँ फिर भी क्यों उनके जीवन में बड़ा अंतर पाया जाता है? क्यों उनका व्यक्तित्व एक दूसरे से भिन्न होता है? क्यों उनके कर्म की दिशाएं एक दूसरे से अलग हो सकती हैं? यह सभी हमने यहां जानने का प्रयास किया है।
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वैदिक ज्योतिष और कर्म सिद्धांत
वैदिक ज्योतिष में कर्म के सिद्धांत को काफी महत्व दिया गया है और यही माना जाता है कि व्यक्ति जिस प्रकार के कर्म करता है, उसी प्रकार का फल उसे उसी जन्म और अगले जन्म में भुगतना पड़ता है इसलिए कई बार ऐसा होता है कि एक साथ जन्म लेने के बाद भी व्यक्ति के अलग-अलग कर्म उसके जीवन में अलग-अलग मार्ग अपनाने का कारण बनते हैं और यही वजह है कि सूक्ष्म से सूक्ष्म वर्ग कुंडलियों से यह पहचाना जा सकता है कि व्यक्ति की दशा और दिशा क्या होगी। यही बात जुड़वा बालकों की कुंडली पर भी लागू होती है भले ही वह कुछ मिनटों के अंतर पर जन्म ले लेकिन उनके भी कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाने में सक्षम होते हैं। ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न है कि वास्तव में ऐसा क्या हुआ की कुंडली एक जैसी होने के बावजूद भी उनकी जीवन की गति अलग अलग है। यह समझने के लिए आइए अब हम यह जानते हैं कि किस तरीके से हम उनकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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जुड़वाँ बच्चों की कुंडली कैसे देखें
जुड़वा बच्चों की कुंडली देखना एक कठिन कार्य है क्योंकि यहां पर विशेषज्ञ के सामने यह चुनौती होती है कि दोनों का जन्म तिथि जन्म स्थान आदि एक समान होने के कारण जन्म कुंडली में एक जैसी प्रतीत होती है इसलिए जुड़वा बच्चों की कुंडली के मामले में कुछ विशेष बातें ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि गर्भ कुंडली का निर्माण किया जाए तो जुड़वा बच्चों के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है गर्व कुंडली आमतौर पर बनने वाली जन्मकुंडली से अलग होती है। यह जन्म कुंडली के आधार पर भी बनाई जा सकती है और गर्भधारण के समय को ध्यान में रखते हुए भी बनाई जा सकती है हालांकि यह एक मुश्किल कार्य है जिसमें काफी समय लगता है लेकिन यदि इसका प्रयोग किया जाए तो इसके आधार पर जुड़वा बच्चों के बारे में बहुत ही सरलता से जाना जा सकता है और उनके जीवन में आने वाले परिवर्तनों का कारण भी समझा जा सकता है।
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वैदिक ज्योतिष
वास्तविक रूप में यह सत्य है कि जुड़वाँ बच्चों के जन्म के मध्य 3 मिनट से लेकर 12 मिनट तक का फर्क होता है। इसके फलस्वरूप लग्न के अंशों और ग्रहों के अंशों में भी थोड़ा बहुत बदलाव अवश्य आता है और ज्योतिष के अंतर्गत वर्ग कुंडलियां इसमें महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। जुड़वां बच्चों के जन्म की स्थिति में उनकी जन्म कुंडली देखने में लगभग एक समान प्रतीत होगी लेकिन यदि वर्ग कुंडलियों का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो वर्ग कुंडलियों के आधार पर और विशेषकर षष्टयांश कुंडली के आधार पर जुड़वाँ बच्चों के बीच के फर्क को समझा जा सकता है।
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कृष्णमूर्ति पद्धति (के पी एस्ट्रोलॉजी)
वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर कृष्णमूर्ति पद्धति का निर्माण हुआ जिसमें नक्षत्र और उप नक्षत्र के आधार पर ग्रहों द्वारा मिलने वाले फल की गणना की जाती है। इस पद्धति के आधार पर भी जुड़वा बच्चों के भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है और यह ज्योतिष पद्धति काफी सटीक परिणाम देने में सक्षम है। जैसा कि ऊपर बताया है कि बच्चों के बीच 3 से 12 मिनट का अंतर होने के कारण भले ही उनका जन्म नक्षत्र एक हो लेकिन नक्षत्र के स्वामी और स्वामियों के मध्य अंतर आ सकता है और इसी सूक्ष्म गणना के आधार पर जुड़वा बच्चों का फल कथन किया जा सकता है।
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हस्तरेखा शास्त्र
हस्त सामुद्रिक शास्त्र का एक प्रमुख अंग है हस्तरेखा विज्ञान जिसमें जातक की हथेलियों पर पाई जाने वाली विभिन्न रेखाओं, पर्वतों तथा विशेष चिन्हों, आदि के माध्यम से दोनों जुड़वा बच्चों के भाग्य और उनके जीवन में आने वाली घटनाओं का सही आकलन किया जा सकता है और उनके जीवन की दिशा को जानने में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
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