जानकी जयंती: जानें क्या है इस दिन का महत्व, पूजन विधि, और इस दिन की पौराणिक कथा

प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर सीता जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन को कई जगह पर जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है। जानकी नवमी या जानकी जयंती के दिन माता सीता और प्रभु श्री राम की पूजा किए जाने का विधान है।

इस वर्ष यह पर्व 6 मार्च यानी यानी शनिवार के दिन मनाया जाएगा। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह वही दिन है जिस दिन धरती पर माता सीता का प्राकट्य हुआ था। कहा जाता है कि, प्रभु श्री राम और माता सीता का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ था। तो आइए इस आर्टिकल में जानते हैं जानकी जयंती का महत्व क्या है। इस दिन का सही पूजन और विधि क्या है। 

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जानकी जयंती महत्व 

हिंदू पुराण में माता सीता को देवी लक्ष्मी का ही एक स्वरूप माना गया है। ऐसे में स्वाभाविक है कि, उनकी पूजा भी विधिवत तरीके से ही करने का नियम बताया गया है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में महाराजा जनक को पृथ्वी से संतान की प्राप्ति हुई थी। ऐसे में ग्रंथों में दिए गए उल्लेख के अनुसार इस दिन माता सीता और भगवान श्री राम की विधिवत पूजा करने के साथ-साथ व्रत भी रखने का महत्व बताया गया है। ऐसा करने से पृथ्वी दान सहित सोलह तरह के महत्वपूर्ण दान का फल व्यक्ति को प्राप्त होता है। 

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माता सीता के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा

पृथ्वी पर लगातार बढ़ रहे अत्याचारों को खत्म करने और धरती पर राम-राज्य स्थापित करने के लिए भगवान विष्णु ने जब मानव रूप में अवतरित होने का निर्णय लिया तब, उनकी पत्नी मां लक्ष्मी ने भी उनके साथ चलने की जिद ठान ली। बताया जाता है कि, जब भगवान विष्णु ने प्रभु श्री राम के रूप में नरेश दशरथ के घर जन्म लिया तब देवी लक्ष्मी माता सीता के रूप में मिथिला नरेश राजा जनक के घर पर जन्म लिया। 

वाल्मीकि रामायण के अनुसार बताया जाता है कि, राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का संकल्प लिया। इसके लिए उन्हें जमीन तैयार करनी थी। इसके लिए राजा जनक वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जमीन जोत रहे थे। उसी समय उनका हल जमीन में जा फंसा। जब काफी देर तक और ढेरों मेहनत-मशक्कत के बाद भी हल नहीं निकल सकता, तो उस जगह की खुदाई करनी पड़ी। खुदाई करने पर पता चला कि, मिट्टी के भीतर एक बर्तन दबा है जिसकी वजह से हाल वहीं अटक गया है। 

जब उस बर्तन को बाहर निकाला गया तो उसमें से उन्हें कन्या मिली। क्योंकि उस समय राजा जनक जमीन जोत रहे थे ऐसे में जुती हुई भूमि और हल की नोक को सीत कहा जाता है और इसी के चलते उन्होंने उस पुत्री का नाम सीता रख दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार लिया। बताया जाता है कि, सीता के आते ही मिथिला में ख़ुशियाँ वापिस लौट आईं और लोगों का जीवन सुख पूर्वक बीतने लगा। जिस दिन राजा जनक को खेत में सीता मिलीं उस दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का दिन था। इस तिथि को ही माता सीता का प्राकट्य दिवस माना जाता है और हर साल इस तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है। 

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जानकी जयंती पूजा विधि 

  • सीता नवमी या जानकी जयंती के दिन व्रत करने वाले लोगों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। 
  • इसके बाद माता जानकी को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। 
  • स्नान आदि के बाद एक साथ चौकी पर माता सीता और प्रभु श्री राम की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करना चाहिए। 
  • लाल कपड़े के ऊपर माता सीता और भगवान राम की प्रतिमा को स्थापित कर रोली, अक्षत, चंदन और सफेद फूल अर्पित किए जाते हैं।
  • राजा जनक और माता सुनयना को भी इस दिन की पूजा में अवश्य शामिल करना चाहिए। 
  • इसके बाद अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य आदि देने का संकल्प करना चाहिए। 
  • जानकी जयंती के दिन बहुत से लोग मिट्टी के बर्तन में धान, जल और अन्न आदि भरकर ज़रूरतमंदों को दान देते हैं।
  • इस दिन शाम के समय कन्‍याभोज और ब्राह्मण भोज कराने की भी परंपरा है। ऐसा करने से माता सीता साधक महिला को अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं और उसके दुखों को दूर कर देती है।

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शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो कोई भी महिला व्रत रखती है और पूजा करती है माता सीता की कृपा से उस स्त्री के पति को लंबी आयु का वरदान प्राप्त होता है और साथ ही उनका दांपत्य जीवन भी सुगम और मधुर हो जाता है। इसके अलावा इस दिन जो कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ इस दिन का व्रत रखता है उसके जीवन से दुःख दूर होता है और उनके जीवन में ख़ुशियों का वास होता है। निसंतान दम्पत्तियों के लिए भी यह व्रत आशीर्वाद माना गया है, क्योंकि इस व्रत को करने से संतान रत्न की भी प्राप्ति होती है। देश के कई हिस्से में किसान इस दिन माता सीता की पूजा करते हैं ताकि उनके खेत सदा हरे भरे रहें। दक्षिण भारत, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इस दिन हल और बैलों को स्‍नान कराने से माता सीता का आशीर्वाद मिलने कथााएं सुनाई जाती हैं।

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