जानें मृत्यु के बाद पितरों की आत्मा कहाँ जाती है, हैरान कर देगी ये जानकारी !

हिन्दू धर्म में हर साल भादो माह की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। इस दौरान मुख्य रूप से सभी हिन्दू परिवारों में पितरों के आत्मा की शांति के लिए विभिन्न प्रकार के कर्मकांड किये जाते हैं। इनमें से पिंडदान और तर्पण की क्रिया को प्रमुख माना जाता है। आपने भी अपने पितर के लिए कभी ना कभी पिंडदान जरूर किया होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृत्यु के बाद पितरों की आत्मा कहाँ जाती है। आज हम आपको इसी बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं की मौत के बाद हमारे पितर कहाँ जाते हैं।

मृत्यु के दौरान गति को बेहद आवश्यक माना जाता है 

गरुड़ पुराण के अनुसार व्यक्ति की मृत्यु के समय उसकी जैसी गति होती है उसके अनुसार ही उसकी आत्मा को विभिन्न जगहों पर वास मिलता है। मृत्यु गति मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है, गति और अगति।  ऐसा माना जाता है की जिस व्यक्ति की मृत्यु अगति में होती है उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती और उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। अगति के भी चार पड़ाव होते हैं, क्षीणदर्क, भूमोदर्क, अगति और गति। इन सभी पड़ावों के बारे में विस्तार से जान लें। 

क्षीणदर्क : इस पड़ाव पर आने वाली मृत आत्मा एक पुण्यआत्मा के रूप में मृत्यु लोक में प्रवेश करती है और ऋषि संतों जैसा जीवन व्यतीत करती है। 

भूमोदर्क : इस पड़ाव पर आने वाले मृत आत्मा का जीवन बेहद खुशनुमा और ऐश्वर्य पूर्ण होता है। 

अगति : इस पड़ाव पर जाने वाले मृत पितर का जन्म पुनः किसी नीच पशु योनि में होता है। 

गति : इस पड़ाव पर पहुंचने वाले मृत आत्मा का बाकी का जीवन कीड़े मौकोड़ों जैसा बीतता है। 

बता दें कि, गति के अंतर्गत भी चार लोक आते हैं जिनमें ब्रह्मलोक, देवलोक, पितृलोक और नर्कलोक आते हैं।  ऐसा माना जाता है कि, इस गति में जिसकी मृत्यु होती है उन्हें इन विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरना पड़ सकता है। आइये विस्तार से जानते हैं गति के इन विभिन्न पड़ावों के बारे में। 

ब्रह्मलोक : गरुड़ पुराण में वर्णित जानकारी के अनुसार यहाँ केवल वहीँ व्यक्ति पहुंच सकता है जिसने कठोर योग और तप के बल पर मोक्ष प्राप्त किया हो। ऐसे व्यक्तियों को ही ब्रह्मलोक में स्थान मिलता है।

देवलोक : मृत्यु के बाद यहाँ केवल वहीं व्यक्ति पहुंचते हैं जिन्होनें अपने जीवन में अच्छे कर्म किये होते हैं। यहाँ आने वाली मृत आत्मा कुछ समय यहाँ रूकती है और उसके बाद पुनः मनुष्य योनि में ही उनका जन्म होता है।

पितृलोक : यहाँ मृत्यु के बाद सभी पुण्य आत्माओं को स्थान मिलता है। कहते हैं मृत आत्माएं यहाँ पहुंचने के बाद अपने पितरों से मिलती है और उनके साथ समय बिताने के बाद फिर से उनका जन्म होता इस संसार में किसी अन्य रूप में होता है।

नर्कलोक : यहाँ आने वाले आत्माएं अपने जीवन काल में पापकर्मों में लिप्त रहते हैं इसलिए उन्हें नर्कलोक में स्थान मिलता है। इन आत्माओं को यहाँ कुछ समय गुजारने के बाद किसी अन्य योनि में उनके कर्मों के अनुसार जन्म होता है। 

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