आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन इंदिरा एकादशी मनाई जाती है। वैसे तो साल में पड़ने वाली सभी एकादशी ख़ास होती हैं, लेकिन इस एकादशी की सबसे ख़ास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिस के चलते इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
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इंदिरा एकादशी तिथि और मुहूर्त
इन्दिरा एकादशी रविवार, सितम्बर 13, 2020 को
14 सितम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:36 बजे (दोपहर) से 04:04 बजे (शाम)
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 08:49 बजे (सुबह)
एकादशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 13, 2020 को 04:13 बजे (सुबह)
एकादशी तिथि समाप्त – सितम्बर 14, 2020 को 03:16 बजे (सुबह)
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मान्यता है कि, अगर कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर के इस व्रत के पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष अवश्य मिलता है।
हिंदू धर्म में एकादशी का बेहद महत्व बताया गया है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु या उनके अवतारों की पूजा की जाती है। इंसान के जीवन में पाप को नष्ट करने और पितरों की शांति के लिए आश्विन मास में की जाने वाली इंदिरा एकादशी सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन पूजा करके आप जाने अनजाने में हुए अपने पापों से छुटकारा पा सकते हैं। साथ ही अपने पूर्वजों को भी मुक्ति दिला सकते हैं। इसके अलावा कर्ज निवारण के लिए भी इस एकादशी का विशेष महत्व माना गया है।
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कैसे करें एकादशी व्रत
- इस दिन सबसे पहले उठकर स्नानादि करके सूर्य देवता को जल चढ़ाएं।
- इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें।
- इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल, पंचामृत और तुलसी अवश्य चढ़ाएं।
- भगवान को फल आदि चढ़ाएं।
- इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
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एकादशी के व्रत में इस बात का रखें ख़ास ख्याल
- एकादशी व्रत में पूर्ण रूप से केवल जलीय आहार या फलाहार लें तो इससे श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं। इसके अलावा हो सके तो फलाहार का ही दान भी करें और गाय को भी खाना खिलाएं।
- एकादशी के अगले दिन जरूरतमंदों को भोजन कराएं। उन्हें दान दें।
- इसके बाद ही खुद भोजन ग्रहण करके व्रत का समापन करें।
- जितना हो सके एकादशी के दिन अपना ध्यान भगवान की भक्ति में लगाए और क्रोध और आलस्य बिल्कुल भी ना दिखाएं।
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इंदिरा एकादशी के दिन कैसे करें पूजा?
कहा जाता है कि जब किसी भी इंसान का श्राद्ध कोई व्यक्ति दबाव में या बिना मन के या सिर्फ यूँ ही करता है तो श्राद्ध के बावजूद भी मृत इंसान की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसे में पितृ पक्ष की एकादशी के दिन महा प्रयोग करके आप उस इंसान को मुक्ति दिला सकते हैं।
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इंदिरा एकादशी के दिन उड़द की दाल, उड़द के बड़े और पूरियां बनाएं। इस दिन चावल प्रयोग बिल्कुल भी ना करें। इसके बाद एक कंडा जलाएं और उस पर पूरी को रखकर उड़द की दाल और उड़द के बड़े की आहुति दे। इसके साथ पास में ही एक जल से भरा बर्तन भी रखें। भगवत गीता का पाठ करें। जरूरतमंदों और गरीबों को भोजन कराएं और उनसे आशीर्वाद लें।
पितरों की आत्मा की शांति और क़र्ज़ निवारण के लिए क्या करें?
इस दिन भगवान को तुलसी इत्यादि अर्पित करें। भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर भगवत गीता का सच्चे मन से पाठ करें। इस दिन ज़रुरतमंदों को फलाहार खाने की चीजें दान में दें। इस दिन हो सके तो तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं। इसके अलावा किसी सार्वजनिक स्थान पर जाकर एक पीपल का पौधा अवश्य लगाएं।
अगर आप क़र्ज़ की समस्या से परेशान चल रहे हैं तो इस दिन पीपल के वृक्ष पर जल अवश्य चढ़ाएं। पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना गया है। ऐसे में इस दिन पीपल पर जल चढ़ाने से क़र्ज़ की समस्या से मुक्ति मिलती है साथ ही आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है।
इंदिरा एकादशी महत्व
एकादशी महत्वपूर्ण मानी जाती है लेकिन इंदिरा एकादशी को पितृ शांति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन सही ढंग से पूजा पाठ करके ना ही केवल आप अपने पितरों को शांति प्रदान कर सकते हैं बल्कि खुद के लिए भी स्वर्ग लोग के मार्ग खोल सकते हैं।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
महिष्मतिपुर के राजा इंद्रसेन एक बेहद ही धर्म प्रिय राजा हुआ करते थे। साथ ही वह भगवान विष्णु के भी बहुत बड़े भक्त थे। एक दिन नारद मुनि उनके दरबार में आए। राजा ने पूरी खुशी से उनकी सेवा की और फिर उनके आने का कारण पूछा। देवर्षि नारद ने बताया कि, ‘मैं यमलोक गया था जहां पर मैंने आपके पिता को देखा।’ नारद जी ने आगे बताया कि, व्रत भंग होने के दोष के चलते आपके पिता को यमलोक में यातनाएं झेलने पड़ रही हैं, इसलिए उन्होंने आपके लिए संदेश भेजा है कि, आप इंदिरा एकादशी का व्रत करें। ताकि वह स्वर्ग लोक को प्राप्त कर सकें।
तब राजा ने पूछा कि यह व्रत कैसे किया जा सकता है? नारद मुनि ने उन्हें बताया कि आश्विन मास की एकादशी में पितरों के लिए एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए सच्चे मन से पूजा अर्चना करनी चाहिए। पितरों को भोजन और गायों को भोजन कराना चाहिए। फिर भाई, बंधु, नाती, पोते, पुत्र, को भोजन कराकर मौन धारण करके भोजन करना चाहिए। इससे आपके पूर्वजों को शांति मिलती है। इसके बाद आश्विन कृष्ण एकादशी को इंद्रसेन ने बताई गई विधि के अनुसार एकादशी व्रत का पालन किया जिससे उनके पिता की आत्मा को शांति मिली और मृत्यु के बाद उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
कहा जाता है कि इंदिरा एकादशी की जो कथा हमने आपको बताई है इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मण को फलाहार का भोजन करवायें और फिर अपनी यथाशक्ति से उन्हें दक्षिणादि से प्रसन्न करें। धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान ऋषिकेश की पूजा करें। रात्रि में प्रभु का जागरण करें व द्वादशी के दिन प्रात:काल भगवान की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन करवाकर सपरिवार भोजन करें।
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