हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्धपक्ष की शुरुआत होती है जो आने वाले पंद्रह दिनों तक चलता है। इस साल पितृपक्ष 13 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर तक चलने वाला है। इस दौरान पितरों के आत्मा की शांति के लिए विशेष रूप से पिंडदान की क्रिया संपन्न की जाती है। आज हम आपको खासतौर से पिंडदान के दौरान इस्तेमाल की जानें वाले उन पांच चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बिना पिंडदान की क्रिया अधूरी मानी जाती है। आइये जानते हैं कौन सी हैं वो जरूरी चीज़ें जिसके बिना पिंडदान अधूरा माना जाता है।
निम्नलिखित पांच चीज़ों के बिना पिंडदान की क्रिया अधूरी मानी जाती है
काला तिल
पिंडदान की क्रिया के दौरान मुख्य रूप से जल में काले तिल मिलाकर तर्पण की क्रिया की जाती है। हिन्दू धर्म में काले तिल को मुख्य रूप से सुख और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है। पितृपक्ष के दौरान इसका दान करना भी विशेष फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि जल में काला तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ देने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और पितृदोष से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही साथ पितृपक्ष के दौरान यदि अग्नि में काले तिल से आहुति दी जाए तो इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति को मिलती है।
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जल
जैसा की आप जानते हैं जल ही जीवन है और इसे समस्त जीव जंतुओं के जीवन का आधार माना जाता है। जल के बिना धरती पर किसी भी जीव का अस्तित्व संभव नहीं है। पिंडदान की क्रिया भी जल के बिना अधूरी मानी जाती है। बता दें कि पिंडदान के दौरान हथेली में जल लेकर पितरों का तर्पण करना बेहद लाभकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्धपक्ष के दौरान सूर्योदय के पूर्व पीपल के पेड़ में जल डालने से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
अग्नि
पिंडदान की क्रिया के लिए अग्नि तत्व का होना भी बेहद आवश्यक माना जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्र में अग्नि से ज्यादा पवित्र और किसी तत्व को नहीं माना गया है । इस बात का जीता जागता उदाहरण है रामायण में सीता माता द्वारा दी गयी अग्निपरीक्षा। शास्त्रों के अनुसार पितरों की आत्मा की शांति के लिए अगर अग्नि में आहुति दी जाए तो इससे देवताओं को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आपको बता दें कि पिंडदान की क्रिया में पितरों को अर्पित किये जाने वाले भोजन की सबसे पहली आहुति अग्नि में ही दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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कुश
बता दें कि पिंडदान की प्रक्रिया कुश के बिना अधूरी मानी जाती है। जल में कुश डालकर पितरों को अर्पित करने से उन्हें तृप्ति मिलती है। हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार कुश में भगवान् विष्णु का वास माना जाता है इसलिए उसका प्रयोग पिंडदान में करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ ही साथ पितृपक्ष के दौरान जल में कुश डालकर शिव जी को अर्पित करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। पिंडदान करने वाले जातकों के लिए पितृपक्ष के क्रम में रोजाना स्नान के दौरान पानी में कुश डालकर नहाने से आत्मा की शुद्धि होती है।
उरद दाल
पिंडदान के आवश्यक सामग्रियों में से एक उरद दाल को भी माना जाता है। श्राद्धपक्ष में उरद की दाल विशेष रूप से उन मृतकों के लिए इस्तेमाल की जाती है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। ऐसे पितरों के लिए पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के लिए बनायी गयी वस्तुओं में उरद की दाल होना अनिवार्य माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र में उरद की दाल को विशेष रूप से राहु और शनिदेव से संबंधित माना जाता है। इसके साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों को भय का आभास हो तो ऐसे में शनिवार के दिन पीपल के पेड़ में सबूत उरद की दाल के साथ दही और सिंदूर अर्पित करने से भय से मुक्ति मिलती है।