रोहिणी व्रत आज : जानें महत्व और पूजा विधि !

आज 21 सितंबर को जैन धर्म का प्रमुख व्रत रोहिणी व्रत रखा जाएगा। इस दिन मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। रोहिणी नक्षत्र में आने वाले इस व्रत को महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए हर महीने रखती हैं। इस दिन मुख्य रूप से महिलाएं भगवान् वासुपूज्य की पूजा अर्चना करती हैं। आज हम आपको विशेष रूप से रोहिणी व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं क्यों रखा जाता है ये व्रत और क्या है इसका विशेष महत्व।

रोहिणी व्रत का महत्व

जैन समुदाय के प्रमुख व्रतों में से एक रोहिणी व्रत भी है। ये व्रत मुख्य रूप से रोहिणी नक्षत्र के दौरान ही रखा जाता है। बता दें कि, जिस माह में किसी भी दिन सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र लगता है उस दिन रोहिणी व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं के परिवार में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहती और साथ ही पति की आयु भी दीर्घायु होती है। इस दिन महिलाएं मुख्य रूप से निर्जला व्रत रखकर दूसरे दिन मार्गशीर्ष नक्षत्र में पारण करती हैं। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही साथ पुरुष भी रखते हैं। रोहिणी व्रत के दिन रोहिणी देवी और वासुपूज्य देवता की पूजा अर्चना की जाती है। पुरुष इस दिन व्रत रखकर अपने सभी पापों से मुक्ति पा सकते हैं। इस व्रत को रखने से मुख्य रूप से धन धान्य में भी वृद्धि होती है।

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रोहिणी व्रत पूजा विधि

  • आज महिलाएं सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि नित्य कार्यों से निवृत होने के बाद नया वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद भगवान् वासुपूज्य की पंचरत्न निर्मित मूर्ति की स्थापना करें।
  • अब हाथ जोड़कर भगवान् के सामने व्रत का आह्वान करें।
  • अब सबसे पहले भगवान वासुपूज्य को फूल अर्पित करें और उनके सामने धुप और अगरबत्ती जलाएं।
    भगवान् वासुपूज्य के साथ ही साथ रोहिणी देवी की भी पूजा अर्चना करें।
  • इसके बाद भगवान को प्रसाद के रूप में फल और मिठाई अर्पित करें।
  • बता दें कि, रोहिणी व्रत मुख्य रूप से रोहिणी नक्षत्र में आरंभ होकर मार्गशीर्ष नक्षत्र में समाप्त होती है।
  • आज पूजा आदि के बाद गरीब ब्राह्मणों को भोजन कराना और उन्हें दान दक्षिणा देना भी ख़ासा फलदायी माना जाता है।
  • इस व्रत को तीन साल, पांच साल और सात साल तक रखना अनिवार्य माना जाता है।

रोहिणी व्रत कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में धनमित्रा नाम के एक राजा हुआ करते थे। उनकी एक बेटी थी जिसका नाम दुर्गंधा था, उसके शरीर से जन्म से बाद से ही काफी दुर्गंध आती थी। राज को हमेशा इस बात की चिंता सताती थी की आखिर उसकी बेटी से कौन विवाह करेगा। राजा धनमित्रा का वस्तुपाल नाम का एक मित्र था, उन्होनें ने किसी प्रकार से अपना सारा धन उसे देकर उसके बेटे से अपनी बेटी दुर्गंधा का विवाह संपन्न करवा दिया। विवाह तो हो गया लेकिन कुछ समय के बाद ही दुर्गंधा के शरीर की बदबू से उसके पति की मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद राजा धनमित्रा और भी ज्यादा व्याकुल हो उठे की आखिर अपनी बेटी को इस दुःख की घड़ी से कैसे बाहर निकालें। अंत में राजा ने एक ऋषि के कहने पर अपनी बेटी दुर्गंधा से पूरी श्रद्धापूर्वक पांच सालों तक रोहिणी व्रत रखने का निर्देश दिया। दुर्गंधा ने अपने पिता की बात मानते हुए पांच साल तक लगातार रोहिणी व्रत का पालन किया। तब जाकर उसका शरीर दुर्गंध मुक्त हुआ और अगले जन्म में उसका विवाह हस्तिनापुर के राजा अशोक के साथ हुआ।

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