प्रथम माता शैलपुत्री : जानें देवी के इस रूप की महिमा और पूजा विधि !

आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और आज के दिन विशेष रूप से दुर्गा माँ के नौ रूपों में से उनके शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। इस बार नवरात्रि पर बनने वाले ख़ास संयोग की वजह से नवरात्रि कई सालों के बाद पूरे नौ दिनों की पड़ रही है। इस दौरान माता के नौ रूपों की पूजा अर्चना को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको प्रथम पूज्य माता शैलपुत्री की महिमा और पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं माता के इस रूप के बारे में विस्तार से। 

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माता शैलपुत्री का स्वरुप 

नवरात्रि के पहले दिन दुर्गा माँ के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री की पूजा जाती है। माता शैलपुत्री ने पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया था। यही कारण है की, उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना गया। माता के इस स्वरुप का अगर वर्णन करें तो उनका वाहन बैल यानि की वृषभ है। माँ के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है। माता के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना जाता है। 

नवरात्रि के पहले दिन क्यों की जाती है शैलपुत्री की पूजा 

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन देवी माँ की पूजा अर्चना के लिए ख़ासा महत्वपूर्ण माना जाता है। सबसे पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि माता शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वत को पर्वतों का राजा माना जाता है, जो हमेशा अपनी जगह पर कायम रहता है। ऐसी मान्यता है कि, भक्तों के मन में भी यदि अपने आराध्य देव या देवी के लिए ऐसी ही अडिग भावना रहे तो उन्हें इसका फल भी भरपूर मिलता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 

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नवरात्रि के पहले दिन इस विधि से करें माता की पूजा 

नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद देवी माँ के लिए नौ  दिनों के व्रत का संकल्प किया जाता है। हालाँकि यदि आप नौ दिनों का व्रत नहीं रख सकते हैं तो आज पहली पूजा के दिन माता शैलपुत्री की विधि पूर्वक पूजा अर्चना कर पूरे नौ दिनों के व्रत का लाभ उठा सकते हैं। आज के दिन कलश स्थापना की विधि के साथ ही माता की पूजा अर्चना भी शुरू हो जाती है। आज सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि के बाद नए वस्त्र धारण करें। इसके बाद सबसे पहले विधि पूर्वक कलश स्थापित करें और पूजा स्थल पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसके ऊपर माता की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद माँ को धुप दीप दिखाएं, लाल रंग के फूल अर्पित करें। प्रसाद के रूप में देवी माँ को आप फल और मिठाई अर्पित कर सकते हैं। अंत में माता शैलपुत्री के मंत्र “वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥” का जाप करें। 

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