उत्तर प्रदेश का वो गाँव जहाँ होलिका दहन की वजह से जल जाते हैं भगवान शिव के पाँव

होलिका दहन 28 मार्च को है। देश भर में इसकी तैयारी चल रही है। सनातन धर्म में इस दिन को बड़ी ही आस्था के साथ देखा जाता है। बुराई पर अच्छाई के विजय के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन के पर्व को लोग बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाते हैं। लेकिन भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है और इस देश की विविधता में चार चाँद लगाने का काम करती है सनातन धर्म की विविधता। अब होलिका दहन को ही ले लीजिये। उत्तर प्रदेश का एक गाँव है जो होलिका दहन इसलिए नहीं करता है क्योंकि वहां मान्यता है कि उनके ऐसा करने से भगवान शिव के पाँव जल जाते हैं। क्या है इस गाँव की पूरी कहानी, आइये इस लेख में जानते हैं।

क्या है मान्यता?

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद से 36 किलोमीटर ननौती गाँव के पास पड़ता है एक छोटा सा गाँव, बरसी। बरसी का इतिहास कोई हाल फिलहाल का नहीं है बल्कि, ऐसी मान्यता है कि बरसी गाँव महाभारत काल से मौजूद है। गाँव में ही भगवान शिव का एक ऐतिहासिक और बहुत ही पुराना मंदिर मौजूद है। गाँव के लोगों में भगवान् शिव को लेकर बहुत आस्था है। किवदंती है कि महाभारत काल के दौरान जब बरसी गाँव के लोगों ने एक बार होलिका दहन किया तो मंदिर में मौजूद भगवान शिव के पैर जल गए थे। तब से ही इस गाँव के लोग कभी होलिका दहन नहीं करते हैं। यहाँ तक कि दूसरे गांव से ब्याह कर बरसी गांव आयी लड़कियां भी होली के दिन इस गांव  में कोई पूजा नहीं करती हैं। जिन्हें पूजा करनी होती है वो महिलाएं पड़ोस में ही स्थित एक गांव में जाकर पूजा अर्चना करती हैं।

मंदिर का भी है महाभारत काल का इतिहास 

बरसी गांव में भगवान शिव का एक बहुत ही प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर मौजूद है। गाँव के लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत युद्ध के दौरान हुआ था। कहा जाता है कि बरसी गांव में मौजूद मंदिर के निर्माण की बात पांडवों और कौरवों की सभा में तय हुई थी। बाद में दुर्योधन ने इस मंदिर का निर्माण करवा दिया था। दुर्योधन ने जब इस मंदिर का निर्माण करवाया था तब इस मंदिर की ऊंचाई 100 फ़ीट थी लेकिन अब इसकी ऊंचाई सिर्फ 50 फ़ीट बची है। मंदिर का निर्माण जब हुआ था तब इस मंदिर के द्वार पूर्व दिशा की ओर थे लेकिन भीम ने अमोघ शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इस मंदिर को नींव सहित दक्षिण दिशा की और घुमा दिया था। तब से ही इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ है और निकास का द्वार दक्षिण की तरफ। 

गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस मंदिर की  दीवारों पर सुंदर कलाकृतियां बनी हुई थी लेकिन समय के साथ वो सब नष्ट हो गयीं। मंदिर के अंदर पहले संगमरमर की मूर्ति भी थी जो कि खंडित होने के बाद नदी में विसर्जित कर दी गयी और अब उसकी जगह नयी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गयी है।

भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार मंदिर के आसपास खुदाई में कुछ ईंट बरामद हुई थी जिस पर किसी लिपि में कुछ उकेरा हुआ था। उन ईंटों को जांच के लिए भी भेजा गया लेकिन यह पता नहीं चल सका कि उन पर क्या लिखा हुआ है। आज भी कभी कभार मंदिर क्षेत्र से पुरातन समय के अवशेष मिलते रहते हैं जो कि मंदिर के प्राचीन होने का प्रमाण देते हैं लेकिन यह कितना प्राचीन है इसकी अभी तक कोई ठोस जानकारी किसी के पास नहीं है।

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