कब मनाई जाएगी होलिका दहन/छोटी होली? क्या है इस दिन का महत्व?

हिंदुओं का प्रमुख त्योहार होली 2 दिन मनाया जाने वाला बेहद ही रंगीन और खुशियों भरा त्यौहार है। इस त्यौहार के पहले दिन को छोटी होलिका/होलिका दहन के नाम से जाना जाता है और दूसरे दिन रंगों वाली होली खेली जाती है। इस वर्ष होलिका दहन या छोटी होली 28 मार्च को मनाई जाएगी। आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि, छोटी होलिका/होलिका दहन के दिन क्या किया जाता है और इस दिन का महत्व क्या है? 

कब है छोटी होली और क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त? 

छोटी होली/ होलिका दहन -28 मार्च  2021- रविवार 

होलिका दहन मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है।
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होलिका दहन मुहूर्त :18:36:38 से 20:56:23 तक

अवधि :2 घंटे 19 मिनट

भद्रा पुँछा :10:27:50 से 11:30:34 तक

भद्रा मुखा :11:30:34 से 13:15:08 तक

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होलिका दहन पूजन विधि 

  • फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और होलिका व्रत का संकल्प लें। 
  • दोपहर के समय होलिका दहन वाली जगह को साफ पानी से साफ करें और वहां होलिका का सभी सामान जैसे सूखी लकड़ी, गोबर के उपले, सूखे कांटे इत्यादि एकत्रित करें। 
  • गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाएँ। 
  • इस दिन नरसिंह भगवान की पूजा अवश्य करें। पूजा में भगवान नरसिंह को सभी चीजें अर्पित करें। 
  • शाम के समय दोबारा पूजा करें और होलिका जलाएं और इस होलिका की तीन परिक्रमा करें। 
  • भगवान नरसिंह का मन में नाम ले और फिर पांचो अनाज को अग्नि में डाल दें। 
  • परिक्रमा करते हुए अर्घ्य दे और कच्चे सूत से होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें। 
  • इसके बाद गोबर के बड़कुले,चने की बालों, जौ, गेहूं इत्यादि होलिका में डालें। 
  • गुलाल डालें और जल चढ़ाएं।
  • अंत में होलिका की राख अपने घर में लेकर आए और उसे मंदिर वाली जहां पर रख दें।

क्यों मनाते हैं होलिका दहन? 

होलिका दहन का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन अग्नि की पूजा की जाती है और इस उसमें अनाज और धान डाला जाता है। इस अनाज से इस दिन हवन भी की जाती है और फिर होलिका की राख को पवित्र मानकर मंदिरों में घरों में रखे जाने का विधान भी बताया गया है। होलिका दहन की तैयारियां लगभग महीने पर पहले से ही शुरु कर दी जाती है। जहां लोग लकड़ियां, सूखी टहनी, उपले, इत्यादि इकट्ठा करने लग जाते हैं। इसके बाद फाल्गुन मास की पूर्णिमा की पूर्व संध्या को होलिका दहन किया जाता है जिसके बाद लोग रंगों वाली होली खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं।

होलिका दहन का महत्व 

घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए होलिका दहन के दिन महिलाएं होली की पूजा करती है। होलिका दहन की पूजा काफी लंबे समय से शुरू की जाती है। होलिका दहन के लिए बहुत दिनों पहले से ही लोग लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। इन लकड़ियों को इकट्ठा करके एक गट्ठर के रूप में रखा जाता है और फिर होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में इसे जलाया जाता है। होलिका दहन का यह दिन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। 

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होली का त्योहार मुख्य रूप से हिरणकश्यप, उनकी बहन होलिका और उनके पुत्र प्रहलाद से संबंधित माना जाता है।अपनी शक्तियों के घमंड में चूर हिरणकश्यप अत्याचारी और घमंडी बन गया था। ऐसे में वह अपनी प्रजा को परेशान करने लगा था और खुद को भगवान समझने लगा था। इसके अलावा उसने अपनी प्रजा के लोगों से खुद को भगवान का दर्जा देने की भी बात मनवानी शुरू कर दी। उधर हिरणकश्यप की बहन होलिका में हमेशा अपने भाई का साथ बुरे काम में दिया था। जब हिरणकश्यप ने देखा की पूरी प्रजा तो उसे भगवान के रूप में मान रही है लेकिन उनका खुद का बेटा प्रहलाद उनकी पूजा, भक्ति, इज़्ज़त नहीं करता है इस पर वह क्रोधित हो उठे। 

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प्रहलाद भगवान विष्णु के परम भक्त हुआ करते थे। ऐसे में जब हिरणकश्यप ने उन्हें खुद की पूजा करने के लिए कहा तो इस बात को प्रह्लाद ने नहीं माना। क्रोधित होकर हिरणकश्यप में अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर अपने बेटे को मारने की कई जतन किये। हालांकि वो हर प्रयास में असफल रहे। अंत में हिरणकश्यप और होलिका ने एक छल के तहत प्रहलाद को अग्नि में जलाने का प्रयास किया। इस तरह होलिका जिन्हें भगवान के आशीर्वाद से अग्नि में जलने का वरदान प्राप्त था वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयीं। 

हालांकि इस वक्त भी प्रहलाद अपनी भक्ति से नहीं छूटे और उन्होंने निरंतर भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे। परिणाम स्वरूप इस अग्नि में होलिका जल-कर राख हो गई और प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसी घटना की याद में होलिका दहन का विधान की परंपरा शुरू हुई है। होली का यह शुभ पर्व इस बात का संदेश देता है कि, भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए हमेशा उपस्थित रहते हैं। 

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घर में होलिका की राख के साथ अवश्य करें ये उपाय 

हिंदू धर्म शास्त्रों में होलिका दहन की रात को सिद्धि की रात कहा जाता है क्योंकि, इस रात को महाशिवरात्रि, दीपावली, नवरात्रि की तरह महा रात्रि माना गया है। ऐसे में आइए जानते हैं होलिका दहन की राख के साथ किए जाने वाले कुछ बेहद सरल उपाय जिनसे आप को मां लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी। 

  • होलिका दहन की राख के साथ थोड़ी सी राई और थोड़ा सा नमक मिलाकर किसी साफ़ बर्तन में रखें। ऐसा करने से आपके घर में मौजूद किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा अवश्य खत्म हो जाएगी। साथ ही अगर आपके जीवन में कुछ भी बुरा चल रहा है तो वह भी अवश्य ही खत्म हो जाएगा।
  • होलिका दहन की रात सरसों के दाने को पीसकर उसमें हल्दी, दही, शहद मिलाकर एक उबटन तैयार करें। इस उबटन को अपने शरीर पर लगाएं। इस उबटन से आपके शरीर से जो भी मेल निकले उसे होली की आग में डाल दें। कहां जाता है कि, ऐसा करने से व्यक्ति का शरीर निरोगी हो जाता है।
  • आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए होलिका की राख अपने घर में लेकर आयें और उसे घर के कोने-कोने में छिड़क दें। इससे ना सिर्फ केवल घर से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव दूर होता है बल्कि ऐसी मान्यता है कि, ऐसा करने से घर में मौजूद किसी भी प्रकार का वास्तु दोष भी दूर होता है। इसके अलावा अगर घर में कलह क्लेश या आर्थिक बाधाएं हैं तो वह भी इस उपाय को करने से दूर हो जाती हैं।
  • होलिका दहन की राख को बेहद ही पवित्र माना गया है। ऐसे में इस राख को माथे पर लगाने से 27 देवता संतुष्ट होते हैं। हालांकि इस राख को लगाने का एक नियम है जिसे आपको अवश्य अपनाना चाहिए। नियम यह है कि, इस राख को हमेशा जाएं से दाएँ और लगाएं। इस रेखा को त्रिपुंड कहा जाता है जिसके स्वामी स्वयं महादेव हैं। ऐसा करने से इंसान के जीवन के सभी रोग, शोक, भय इत्यादि दूर होते हैं।
  • इसके अलावा एक और छोटा सा उपाय जो आप होलिका की राख के साथ कर सकते हैं वह यह कि, होली की राख को एक पोटली में भरकर उसे अपनी तिजोरी में रख लीजिये। कहा जाता है कि इससे संचित धन अवश्य बढ़ता है। इसके अलावा अगर किसी इंसान को टोने-टोटके की समस्या है या टोने टोटके का भय है तो इस राख का तिलक लगाने से भी आपको इस भय से मुक्ति मिलती है और आपके अंदर आत्मबल की वृद्धि होती है।

होलिका दहन और होलाष्टक 

होली से 8 दिन पूर्व होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस दौरान कोई भी धार्मिक संस्कार भी करने वर्जित माने गए हैं। हां अगर इस दौरान जन्म और मृत्यु से जुड़ा कोई काम करना हो तो उसके पहले आपको शांति पूजा का प्रावधान बताया गया है।

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