होलिका दहन यानि होली के त्योहार का पहला दिन। यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस साल होलिका दहन 9 मार्च 2020 को सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। इसके अगले दिन रंग खेलने की परंपरा निभाई जाती है। होली को अलग-अलग राज्यों में अलग नाम से जानते हैं।
किसी समस्या से हैं परेशान, समाधान पाने के लिए प्रश्न पूछें
जैसे बिहार और यूपी में होली को ‘फगुआ, फाग और लठमार होली’ कहते हैं। वहीं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होली वाले दिन ‘होलिका दहन’ होता है, दूसरे दिन ‘धुलैंडी’ मनाते हैं। महाराष्ट्र में होली को ‘फाल्गुन पूर्णिमा’ और ‘रंग पंचमी’ के नाम से जानते हैं। हरियाणा में होली को ‘दुलंडी’ या ‘धुलैंडी’ के नाम से जानते हैं। इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, और इस दिन पूजा पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। तो आइए जानते हैं होलिका दहन के पूजा महत्व और पूजा विधि के बारे में लेकिन उससे पहले नजर डालते हैं होलिक दहन 2020 के शुभ मुहूर्त पर,
होलिका दहन मुहूर्त 2020 |
|
होलिका दहन मुहूर्त: |
18:26:20 से 20:52:17 तक |
अवधि: |
2 घंटे 25 मिनट |
भद्रा पुँछा: |
09:50:36 से 10:51:24 तक |
भद्रा मुखा: |
10:51:24 से 12:32:44 तक |
होलाष्टक में शुभ कार्य होते हैं वर्जित
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक ‘होलाष्टक’ माना जाता है, यानी होलिका उत्सव की शुरुआत होली के आठ दिन पहले होती है। यह दिन ‘होलाष्टक ‘ से शुरू होता है और होलाष्टक के आखिरी दिन ही होलिका दहन किया जाता है। बता दें होलाष्टक के दौरान सारे शुभ कार्य वर्जित होते है, जैसे- गृह प्रवेश, विवाह , मुंडन और अन्य मांगलिक कार्य न करने की सलाह दी जाती है। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है जिससे सारे शुभ कामों की शुरुआत होती है।
23 जून से होगी अमरनाथ यात्रा शुरु, जानें यात्रा से जुड़ी जानकारी!
साल की अंतिम पूर्णिमा
फाल्गुन को जहां हिंदू के नए साल का अंतिम महीना माना जाता है तो फाल्गुन पूर्णिमा साल की अंतिम पूर्णिमा के साथ-साथ साल का आखिरी दिन भी होता है। होलाष्टक की समाप्ति के साथ ही फाल्गुन पूर्णिमा मनाई जाती है। हिंदू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक के साथ सांस्कृतिक महत्व भी है। इस दिन उपवास किया जाता है जो सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है इसलिए फाल्गुन पूर्णिमा व्रत रखने से मनुष्य के सभी दुखों का नाश तो होता ही साथ ही भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। इसलिए इस शुभ दिन पर होली का त्योहार मनाया जाता है और लकड़ियों को इकट्ठा कर सभी तरह की नकारात्मकताओं की होली जलाई जाती है।
होलिका दहन का महत्व
हिंदू धर्म की मानें तो यहां हर त्योहार का अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है। माना जाता है कि होलिका दहन की लपटें बहुत शुभ होती है। होलिका दहन की आग में हर दुख का नाश हो जाता है और इच्छाओं के पूरा होने का आशीर्वाद मिलता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का होता है उतना ही होलिक दहन का होता है। मान्यता है कि होलिका दहन की पूजा अगर विधि-विधान से की जाए तो सारी मुश्किलें खत्म हो जाती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। बता दें होलिका पूजा के दौरान परिक्रमा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। कहते हैं अगर परिक्रमा के वक्त अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है। बस अपनी मनोकामना के अनुसार परिक्रमा करना जरूरी होता है। परिक्रमा के अलावा होलिका दहन में उपलों का जलाना भी बेहद जरूरी होता है ।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन के पीछे एक पौराणिक कथा है। पुराणों के मुताबिक असुर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से बेहद नफरत करता था। उसे अपनी शक्ति का इस प्रकार घमंड था कि वह खुद को ईश्वर मानने लगा था और घोषणा कर दी थी राज्य में कोई भी उसके अलावा किसी और भगवान की पूजा-अर्चना नहीं करेगा। यहां तक उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुती बंद करवा दी और जो भी शख्स भगवान की पूजा करता उसे सताना शुरू कर दिया था। लेकिन संयोग ऐसा हुआ कि खुद को भगवान मानने वाले हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति करता रहा। जिसके बाद असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की कई बार कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाया क्योंकि भगवान विष्णु उसकी खुद रक्षा करते थे। जिसके बाद परेशान होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि कोई नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। लेकिन सब कुछ इसके विपरीत हो गया- होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है।
होलिका दहन के आवश्यक नियम और पूजा
घर की सुख-शांति और समृद्धि के लिए दहन से पहले होलिका पूजा का विशेष महत्व होता है। हिंदू शास्त्र के मुताबिक होलिका दहन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाला समय) में पूर्णिमा तिथि के प्रबल होने पर किया जाना चाहिए।
आईये जानते हैं कि कैसे करें होलिका पूजन की शुरुआत और इस दौरान किन बातों का रखें ध्यान
- होलिका पूजन के वक्त अपना मुंह पूर्व या उत्तर की ओर करके बैठे।
- ध्यान रखें कि पूजन की थाली में रोली, पुष्प, माला, नारियल, कच्चा सूत, साबूत हल्दी, मूंग, गुलाल और पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां व एक लोटा जल ज़रूर रखें।
- इसके अलावा होलिका की परिक्रमा पूरे परिवार के साथ करते हुए कच्चा सूत बांधना शुभ मानते हैं।
- इसके बाद पूरे विधि-विधान से पूजन करके होलिका को जल का अर्घ्य दें।
- सूर्योस्त के बाद प्रदोष काल में होलिका का दहन करें।
होलिका दहन की राख बेहद पवित्र मानी जाती है। कहते हैं कि होलिका दहन के अगले दिन सुबह के समय इस राख को शरीर पर मलने से समस्त रोग और दुखों का नाश हो सकता है।
कॉग्निएस्ट्रो आपके भविष्य की सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक
इसी तरह, 10 वीं कक्षा के छात्रों के लिए कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट उच्च अध्ययन के लिए अधिक उपयुक्त स्ट्रीम के बारे में एक त्वरित जानकारी देती है।