हिन्दू धर्म में यूँ तो कई त्यौहार मनाये जाते हैं लेकिन होली और दिवाली, इन दो त्योहारों की जो धूम देश में होती है वो शायद ही किसी अन्य त्यौहार में देखने को मिले। सभी गिले-शिक़वे भूलकर जिस तरह से लोग इन त्योहारों में साथ मिलकर मज़ा करते हैं यकीनन ही ये भारत देश की ख़ूबसूरती और विविधता को दर्शाता है।
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वैसे तो रंगों का ये त्यौहार होली सभी को खेलना और मनाना बेहद पसंद होता है लेकिन फिर भी कई ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें इस त्यौहार को खेलने से ज़्यादा इस त्यौहार को सिर्फ देखना पसंद होता है।
ऐसे में आज अपने इस ख़ास ‘होली-विशेष’ आर्टिकल में हम आपको भारत की ऐसी अलग-अलग जगहों के बारे में बताएँगे जहाँ की होली इतनी भव्य और खूबसूरत होती है कि उसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि इन जगहों की होली विदेशी सैलानियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होती हैं। तो आइये हम आपको बताते हैं भारत के अलग-अलग हिस्सों में खेली जाने वाली ऐसी होली के बारे में जिनकी खूबसूरती का आनंद उठाने के लिए जीवन में कम से कम एक बार तो वहां अवश्य ही जाना चाहिए।
जानें होलिका दहन और होली का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त New Delhi, India के लिए, जानें अपने शहर का होलिका मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त :18:36:38 से 20:56:23 तक
अवधि :2 घंटे 19 मिनट
भद्रा पुँछा :10:27:50 से 11:30:34 तक
भद्रा मुखा :11:30:34 से 13:15:08 तक
होली 2021 की तारीख व मुहूर्त
देशभर में इस साल होली, 29 मार्च, 2021, (सोमवार) को मनाई जाएगी।
आप भी जीवन में एक बार ज़रूर देखें देश के इन जगहों की होली
बरसाने की लठमार होली
ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है कि ज़िक्र होली का हो और बरसाने की लठमार होली की बात ना आये। तो आइये सबसे पहले बात करते हैं देश की सबसे ज़्यादा फेमस बरसाने की लठमार होली की। बरसाने की ये अनोखी होली सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सुप्रसिद्ध है। इस होली में महिलाएं पुरुषों पर लठ बरसाती हैं और पुरुष एक ढाल से खुद को बचाते हैं। ये नज़ारा बेहद ही खूबसूरत प्रतीत होता है जब रंगो और गुलाल के बीच महिलाएं और पुरुष इस अनोखे ढंग से होली का आनंद उठाते हैं। बरसाने की लठ मार होली की ये परंपरा एक हफ्ता पहले ही शुरू कर दी जाती है। लठमार होली की शुरूआत बरसाना के राधा रानी मंदिर से होती है और रंग रंगीली गली में पहुंचकर खत्म होती है।
इस होली की परम्परा के पीछे की वजह भी बेहद ही खूबसूरत है। मान्यता के अनुसार फाल्गुन की नवमी को महिलाएं लट्ठ अपने हाथ में रखती हैं और यहाँ के पुरुष राधा रानी के मन्दिर लाड़लीजी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं। इस दौरान महिलाएं उन्हें लठ मारती हैं लेकिन पुरुष इसका विरोध नहीं कर सकते हैं। वो सिर्फ गुलाल उड़ा कर महिलाओं का ध्यान भटका सकते हैं। लेकिन अगर वो लोग महिलाओं द्वारा पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनकर, श्रृंगार करके नाचना होता है। ये दृश्य वाकई खूबसूरत होता है।
मथुरा-वृन्दावन की फूलों वाली होली
रंगों और गुलाल वाली होली तो आपने बहुत खेली और देखी होगी लेकिन क्या आप जानते हैं कि मथुरा में फूलों वाली होली खेलने की भी एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है? मथुरा-वृन्दावन देश की एक ऐसी जगह हैं जहाँ होली के त्यौहार की एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। बरसाने की लठ-मार होली की ही तरह मथुरा की फूलों वाली होली भी काफी लोकप्रिय है। फूलों वाली ये होली भी पूरे एक सप्ताह तक मनाई जाती है। ये होली बाकें बिहारी मंदिर से होते हुए पूरे देश में फैल जाती है।
पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन की बसंत-उत्सव होली
पश्चिम बंगाल के शांति-निकेतन में होली को बसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ये होली बंगाल की विश्व भारती यूनिवर्सिटी में बीते काफी समय से खेली जाती है। बताया जाता है कि इस अनोखी होली की शुरुआत रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी और बंगाल की संस्कृति में इसका काफी महत्व माना जाता है। यूनिवर्सिटी के छात्र होली के दिन खास सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहाँ इकठ्ठा होते हैं। इस होली की एक खासियत ये भी है कि ये होली पारम्परिक तरह से सिर्फ अबीर और गुलाल से ही खेली जाती है।
पंजाब की होला-मोहल्ला होली
होली वैसे तो अपने आप में एक रंगो से सराबोर रंगीन त्यौहार है लेकिन इस त्यौहार के और हसीन रंग देखने हैं तो आपको एक बार पंजाब की होला-मोहल्ला वाली होली ज़रूर देखने जाना चाहिए। पंजाब में होली के त्यौहार को एक अलग ढंग से मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस दिन एक जगह पर इकठ्ठा होकर लोग तलवारबाज़ी, कुश्ती, मार्शल आर्ट्स जैसे करतबों का आयोजन करते हैं और इसमें सबसे ख़ास आकर्षण का केंद्र ये होता है कि ये सब रंगों और गुलालों के बीच किया जाता है। खूबसूरत रंगों के बीच अपने युद्ध कौशल को दिखाने का ये त्यौहार पंजाबी समुदाय के बीच काफी लोकप्रिय है।
उदयपुर की शाही होली
जहाँ बात देश की अनोखे ढंग और खूबसूरती से मनाई जाने वाली होली की हो रही है वहां रजवाड़ों के शहर उदयपुर की शाही होली का ज़िक्र तो अवश्य ही बनता है। नाम से ही स्पष्ट है कि उदयपुर की ये होली शाही ढंग से मनाई जाने के लिए विश्व-विख्यात है। इस अनोखी, ख़ास, और भव्य होली में सिटी पैलेस में शाही निवास से मानेक चौक तक शाही जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में घोड़े, हाथी से लेकर रॉयल बैंड शामिल होता है। इस त्यौहार की कई गुना खूबसूरती तो राजस्थानी गीत-संगीत बढ़ा देते हैं।
जयपुर की शाही होली
उदयपुर के अलावा देश में जयपुर में मनाई जाने वाली होली को भी शाही होली का नाम दिया जाता है। जयपुर के शाही परिवार इस शाही होली के आयोजन का हिस्सा बनते हैं और इस दिन धूमधाम से इस त्यौहार का आनंद लेते हैं। इस शाही होली में होलिका दहन के बाद से ही रंगों से खेलने का रिवाज़ है। इस शाही होली का आयोजन सिटी पैलेस में किया जाता है। इस जश्न में शरीक होने के लिए यहाँ टूरिस्ट का भी जमावड़ा सिटी पैलेस में लगा रहता है। इस दिन सिटी पैलेस में कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है जिसे देखने का सुख सबको जीवन में एकबार तो अवश्य उठाना चाहिए।
गोवा की शिगमोत्सव होली
वैसे तो आजतक आपने गोवा को घूमने की जगह और उसके शानदार बीच के लिए जाना और सुना होगा लेकिन आपको जानकर ताज्जुब होगा कि गोवा की होली भी काफी लोकप्रिय होती है। बात ताज्जुब करने वाली इसलिए भी है क्योंकि गोवा में अमूमन पुर्तगाली और क्रिश्चयन कम्युनिटी के लोग ज़्यादा हैं। ऐसे में यहाँ की होली काफी अनोखी मानी जाती है। गोवा की होली को शिगमोत्सव के नाम से जाना जाता है और इसे तकरीबन दो हफ़्तों तक मनाया जाता है। गोवा की इस होली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें फागोत्सव और होली दोनों ही संस्कृतियों का मिश्रण होता है।
राधा-कृष्ण और होली: जानें पौराणिक कथा
राधा-कृष्ण और होली के त्यौहार से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार बताते हैं कि बचपन में पूतना द्वारा पिलाये गए दूध की वजह से कृष्ण के शरीर का रंग नीला पड़ गया था जिसके चलते वो खुद को अन्य सभी से अलग समझने लगे थे। अपने इस विचित्र रंग की वजह से भगवान कृष्ण को ऐसा लगने लगा था कि अब ना ही राधा उनसे प्रेम करेंगी और ना ही गोपियाँ। ऐसे में दुखी कृष्णा ने अपनी माँ को अपनी दुविधा बताई। तब माता यशोदा ने मासूम कान्हा की बात सुनकर उन्हें ये सुझाव दिया कि, ‘वो राधा को जाकर अपनी पसंद के रंग में रंग दें।’
अपनी माता की सलाह मानकर भगवान कृष्ण ने राधा के ऊपर रंग डाल दिया और तबसे ही भगवान श्रीकृष्ण और राधा न केवल अलौकिक प्रेम में डूब गए बल्कि रंग के त्यौहार होली को भी उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा।