बृहस्पति ग्रह को सभी ग्रहों के बीच गुरु का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में जिस भी जातक पर बृहस्पति देवता की कृपा हो जाती है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। हंस पंच महापुरुष योग एक ऐसा दुर्लभ योग है जो भगवान बृहस्पति की विशेष कृपा से किसी जातक की कुंडली में बनता है।
जिस भी जातक की कुंडली में हंस पंच महापुरुष योग बनता है वह जातक व्यक्तित्व का धनी यानी कि बेहद आकर्षक होता है। उसका रंग साफ़ और माथा चौड़ा होता है। न सिर्फ व्यक्तित्व से बल्कि जिस भी जातक की कुंडली में यह दुर्लभ योग बनता है, सुखी दांपत्य जीवन, उत्तम संतान, उत्तम शिक्षा, धन से परिपूर्णता तथा लोगों के प्रति सहज भावना ऐसे व्यक्ति की खासियत होती है। आपको बता दें कि भगवान रामचंद्र और भगवान कृष्ण की कुंडली में भी हंस पंच महापुरुष योग था।
जीवन में कब होगा भाग्योदय? कुंडली आधारित राजयोग रिपोर्ट देगा उत्तर!
पंच महापुरुष योगों को वैदिक ज्योतिष में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है और इन्हीं पंच महापुरुष योगों में से एक योग है हंस पंच महापुरुष योग। इसके प्रभाव से व्यक्ति की गणना समाज के गणमान्य और विद्वान जनों में होती है जिससे उसकी सामाजिक स्थिति मजबूत होती है और लोगों द्वारा सम्मान मिलता है। लोग अपने काम में उचित सलाह लेने के लिए उसके पास आते हैं और इससे दिन प्रतिदिन व्यक्ति उन्नति करता है। इस योग में जन्मा जातक जीवन भर इसी प्रयास में रहता है कि वह स्वयं एक अच्छा व्यक्ति बना रहे और दूसरों की भलाई करे। वह अपने ज्ञान और बुद्धि के बल पर जीवन में तरक्की की सीढ़ी चढ़ता चला जाता है और अंततः अपने मुकाम को हासिल कर लेता है।
आज इस लेख के माध्यम से हम इसी हंस पंच महापुरुष योग के बारे में सभी जानकारी आपको प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन इस राज योग के बारे में जानने से पहले यह जान लेना परम आवश्यक है कि देव गुरु ग्रह कहा जाने वाला बृहस्पति ग्रह स्वयं कितना महान फल देने में सक्षम है और क्यों उसे नैसर्गिक रूप से सर्वाधिक शुभ ग्रह होने का दर्जा प्राप्त है।
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बृहस्पति ग्रह और ज्ञान
आज हम जिस हंस पंच महापुरुष योग के बारे में बात करने जा रहे हैं उसका निर्माता ग्रह बृहस्पति है, जिनको देव गुरु के नाम से भी ख्याति मिली हुई है। बृहस्पति की खासियत यह है कि नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रहों में यह सर्वाधिक शुभ ग्रह की श्रेणी में आते हैं और एक वृद्धि कारक ग्रह हैं। इनकी दृष्टि अमृत के समान मानी जाती है। यह धनु राशि और मीन राशि के स्वामी हैं तथा कर्क राशि में अपनी उच्च अवस्था में और मकर राशि में अपनी नीच अवस्था में माने जाते हैं। इनके मुख्य नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद आते हैं।
देव गुरु बृहस्पति ज्ञान के देवता हैं इसलिये जिस व्यक्ति पर देव गुरु बृहस्पति की कृपा हो जाए वह व्यक्ति बुद्धिमान होता है। अपने सहज ज्ञान के आधार पर वह जीवन में उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होता है। बृहस्पति देव संतान के कारक ग्रह कहे जाते हैं और इतना ही नहीं, विवाह के लिए भी बृहस्पति देव की प्रमुख भूमिका मानी जाती ।है इस प्रकार दांपत्य सुख प्रदान करने में देव गुरु बृहस्पति का कोई सानी नहीं है। यह धन प्रदाता ग्रह भी माने जाते हैं इसलिए बृहस्पति देव की कृपा से व्यक्ति को जीवन में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती। उसका ज्ञान विस्तृत होता है जिससे बड़े से बड़े लोग भी उसके सामने नतमस्तक होते हैं और वह जीवन में तरक्की के शिखर पर पहुंच जाता है।
सूर्य, मंगल और चंद्रमा बृहस्पति देव के परम मित्र ग्रह कहलाते हैं। राहु के साथ स्थित होकर बृहस्पति देव गुरु चांडाल जैसा दुर्योग निर्मित करते हैं तो चंद्रमा के साथ स्थित होने पर गजकेसरी जैसा महान और शक्तिशाली शुभ योग बनाते हैं। जिस व्यक्ति पर देव गुरु बृहस्पति की कृपा हो जाए उसके जीवन में सुखों की कोई कमी नहीं होती। वह ज्ञान का दीपक बन जाता है और ऐसा व्यक्ति कोई टीचर, प्रोफेसर, शैक्षणिक कार्य में सिद्धहस्त हो जाता है। उसे खूब मान सम्मान मिलता है और उसकी गणना समाज के विद्वान लोगों में होती हैं। वह अपने ज्ञान के बल पर चारों दिशाओं में अपना नाम कमाता है और उच्च पद पर आसीन होता है।
आपकी व्यक्तिगत राज योग रिपोर्ट से आपको अपने जीवन में गुरु बृहस्पति के प्रभाव और उससे बनने वाले हंस पंच महापुरुष योग के विषय में पता लगता है।
ग्रहों से बनने वाले राजयोग
ग्रहों द्वारा विशेष प्रकार के योगों का निर्माण कुंडली में किया जाता है जिन्हें राजयोग कहा जाता है। वास्तव में राज योग क्या होते हैं और यह कब बनते हैं, इसे जानने के लिए वैदिक ज्योतिष के एक महान ग्रंथ सारावली, जिसकी रचना श्री कल्याण वर्मा जी ने की थी, उसी ग्रंथ का का यह श्लोक पूरी तरह से हमारी मदद करता है:
स्वक्षेत्रे च चतुष्टये च बलिभिः स्वोच्चस्थितैर्वा ग्रहैः
शुक्राअंगारकमन्दजीवशशिजैरेतैर्यथानुक्रमम्।
मालव्यो रुचकः शशोऽथ कथितो हंसश्च भद्रस्तथा
सर्वेषामपि विस्तरं मतिमतां संक्षिप्यते लक्षणम्॥२॥
इसके अनुसार यदि जन्म कुंडली में शुक्र, अंगारक अर्थात् मंगल, मंद अर्थात् शनि, जीव अर्थात गुरु बृहस्पति और बुध अपनी राशि में या अपनी उच्च राशि में बली होकर कुंडली के केंद्र भाव अर्थात प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव अथवा दशम भाव में स्थित हों तो शुक्र से मालव्य योग, मंगल से रूचक योग, शनि से शश योग, बृहस्पति से हंस योग और बुध से भद्र नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण होता है।
इसके अतिरिक्त, वैदिक ज्योतिष के अन्य महान ग्रंथों जैसे फलदीपिका, जातकाभरण, मानसागरी तथा जातक परिजात में भी पंच महापुरुष योग की महिमा के बारे में बताया गया है। यह श्लोक देखिए:
मूलत्रिकोणनिजतुंगगृहोपयाता
भौमज्ञजीवसितभानुसुता बलिष्ठाः।
केन्द्रस्थिता यदि तदा रुचभद्रहंस-
मालव्यचारुशशयोगकरा भवन्ति ॥५६॥
यदि इस श्लोक के अर्थ को भी देखें तो यह भी यही कहता है कि यदि मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र या शनि अपनी उच्च राशि या मूलत्रिकोण या स्वराशि में स्थित होकर लग्न से केंद्र में स्थित हों तो महापुरुष योग निर्मित होता है। यदि उपयुक्त योग मंगल से बने तो रुचक, बुध से बने तो भद्र, बृहस्पति से बने तो हंस, शुक्र से उत्पन्न हो तो मालव्य और शनि अपनी राशि, मूल त्रिकोण राशि, अथवा उच्च राशि में स्थित हो तो शश योग का निर्माण करता है।
इस लेख के माध्यम से आप बृहस्पति ग्रह द्वारा बनने वाले हंस पंच महापुरुष योग के बारे में आसानी से सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप जानना चाहते हैं कि क्या आपकी कुंडली में यह योग बन रहा है अथवा अगर बन रहा है तो उस योग का आपको क्या फल मिलेगा और यह योग कब फलीभूत होगा तो इस सब के बारे में जानकारी पाने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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हंस पंच महापुरुष योग क्या है?
हंस पंच महापुरुष योग देव गुरु बृहस्पति की विशेष कृपा का द्योतक है। यह योग देव गुरु बृहस्पति की कुंडली के केंद्र भावों में विशेष परिस्थिति में स्थित होने पर बनता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति समस्त प्रकार के सुखों का आनंद लेता है और उसका ज्ञान भी विकसित होता है। वह जीवन में सही रास्ते पर चलने में सक्षम होता है और अपने चारों ओर के लोगों को प्रभावित करने में सक्षम होता है। ऐसे योग वाले व्यक्ति दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और लोग उनकी बात सर झुका कर भी मान सकते हैं। ऐसे लोगों को अपने गुरु का सानिध्य मिलता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में अनेक कामों में सफलता मिलती है। ऐसे व्यक्ति स्वयं भी अच्छे गुरू या मार्गदर्शक साबित हो सकते हैं। यही वजह है कि अनेक लोगों का आना-जाना इनके पास लगा रहता है, जो अपने कामों में इनसे महत्वपूर्ण सलाह लेते हैं और इन सलाहों के आधार पर अपने कामों को करते हैं।
इस महान राज योग का कुंडली में उपस्थित होना मानो आपके जीवन में सफलता, समृद्धि और प्रगति का द्योतक है। इस योग के प्रभाव से आपको उत्तम जीवन साथी और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। आप धनवान बनते हैं। आप समाज के माननीय लोगों में शामिल होते हैं और आपका दांपत्य जीवन भी प्रेम और अपनेपन से परिपूर्ण रहता है।
वास्तव में हंस पंच महापुरुष योग आपको हंस के समान क्षमताएं प्रदान करता है जो कि बहुत ही सौम्य होता है। अपने उद्देश्य के प्रति पूरी तरह समर्पित होता है। उसकी एकाग्रता बहुत अच्छी होती है तथा वह सही और गलत में भेद करना जानता है। ये सभी गुण हंस पंच महापुरुष योग वाली कुंडली के जातक के व्यवहार में भी परिलक्षित होते हैं। यदि आपकी कुंडली में यह योग बनता है तो आप बहुत ही भाग्यशाली होंगे और आपके जीवन में किसी भी सुख की कमी नहीं होगी, इसलिए कहा जा सकता है कि हंस पंच महापुरुष योग वाला व्यक्ति काफी भाग्यशाली होता है।
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हंस पंच महापुरुष योग का महत्व
यदि आपका जन्म हंस नामक पंच महापुरुष योग में हुआ है तो इस योग में जन्म लेने के कारण आपका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक होगा और दूसरे लोग आपकी ओर आकर्षित रहेंगे। आपको सदैव ही स्वादिष्ट और अलग-अलग प्रकार के व्यंजनों का आनंद लेने का मौका मिलेगा और आप नैतिक रूप से भी चरित्रवान होंगे। समाज के बुद्धिमान और सम्माननीय लोग और शिक्षाविद आपकी सराहना करेंगे। आप की गणना समाज के गणमान्य विभूतियों में होगी। आप की छवि एक उदारवादी और परोपकारी व्यक्ति की होगी क्योंकि आप सदैव दूसरों के काम आना पसंद करते हैं। आप विपुल धन अर्जित करने में समर्थ होंगे और स्वार्थी ना होकर मिलजुल कर उस धन का आनंद लेने में आपको अच्छा महसूस होगा। आपको सरकारी तंत्र का लाभ मिलेगा तथा सरकार अथवा सरकारी संस्थाओं से भी आपको सराहना और प्रशंसा प्राप्त होगी और समय-समय पर आपको उनके द्वारा पुरस्कृत भी किया जा सकता है। जीवन में राजयोग का बहुत महत्व होता है क्योंकि यदि यह योग हमारी कुंडली में निर्मित होते हैं और इनसे संबंधित ग्रह की दशा हमें प्राप्त होती है तो हमारे जीवन में सुख और समृद्धि के द्वार खुल जाते हैं तथा हम ज्ञानवान बनते हैं। यही वजह है कि हंस पंच महापुरुष योग वाले व्यक्ति को अपने जीवन में किसी समस्या का समाधान पाने में ज्यादा परेशानी नहीं होती और वह अपने ज्ञान और निपुणता के बल पर हर चुनौती का समाधान निकालने में सक्षम होते हैं और जीवन में प्रगति के पथ पर उत्तरोत्तर वृद्धि करते रहते हैं।
कैसे बनता है हंस पंच महापुरुष योग
रक्तास्योन्नतनासिकः सुचरणो हंसस्वरः श्लेष्मको
गौराङ्गः सुकुमारदारसहितः कन्दर्पतुल्यः सुखी।
शास्त्रज्ञानपरायणोऽतिनिपुणः श्री हंसयोगे गुणी
जातोऽशीतिकमायुरेति सयुगं ८४ साधुक्रियाचारवान।।
हंस पंच महापुरुष योग बृहस्पति ग्रह के कारण बनता है। जब बृहस्पति कुंडली के केंद्र भावों में अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा स्वराशि में से किसी भी राशि में स्थित होता है तो इस योग का निर्माण होता है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि यदि किसी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में अर्थात केंद्र भावों में अपनी उच्च अवस्था वाली राशि अर्थात् कर्क राशि में स्थित हों अथवा अपनी मूल त्रिकोण राशि धनु में विद्यमान हों या फिर अपनी स्वराशि मीन राशि में स्थित हों तो बृहस्पति द्वारा हंस पंच महापुरुष योग का निर्माण होगा।
वैदिक ज्योतिष के ग्रंथों में इस हंस योग का बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार यदि आपकी कुंडली में यह हंस योग विद्यमान है तो इसकी उपस्थिति होने के कारण आपके पैर बड़े सुंदर होते हैं और लंबी नाक होती है। मुंह पर लालिमा होती है तथा आप कफ प्रकृति वाले होते हैं। आपके रंग रूप में गौर वर्ण की स्थिति का निर्माण होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति कामदेव के समान सुंदर और सुखी होता है तथा विभिन्न प्रकार के शास्त्रों को जानने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी काम में निपुण होता है और गुणवान होता है। वह अच्छे काम करता है और उसका चित्त भी प्रसन्न रहता है और वह सभी को सुख देता है। वह स्वयं भी जीवन भर विद्वानों की श्रेणी में रहता है और खूब धन और उच्च पद प्राप्त करता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति ज्ञानी होता है तथा उसमें दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
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हंस पंच महापुरुष योग का फल
हंस पंच महापुरुष योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली होता है। उसकी मुखाकृति में उसके होंठ, तालू और जिव्हा लाल रंग के होते हैं। गौरतलब है कि होंठ, जीभ और तालु का लालिमा लिए हुए होना सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। उनकी ऊंची नाक, अच्छे पैर और स्वर हंस के समान होता है। वह व्यक्ति कफ प्रधान प्रकृति का होता है और गौर वर्ण का होता है तथा ऐसे व्यक्तियों का जीवन साथी भी सौम्य होता है। ऐसे व्यक्ति को कामदेव के समान सौंदर्य वान, सुखी, सभी प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान रखने वाला और कुशल बताया गया है। इस योग में जन्मे जातक में गुणों की अधिकता पाई जाती है और वे अति निपुण होते हैं तथा अच्छे कार्य के कारण नाम कमाते हैं। इनका आचार और विचार अच्छा होता है और ये लंबी आयु प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि हंस योग में जन्मा व्यक्ति सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता है और भाग्योदय के कारण समस्त प्रकार के कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है।
रक्तास्योन्नतनासिकः सुचरणो हंसः प्रसन्नेन्द्रियो
गौरः पीनकपोलरक्तकरजो हंसस्वरः श्लेष्मलः।
शंखाब्जांकुशदाममत्स्ययुगलः खट्वांगचापांगदश्चिह्नः
पादकरांकितो मधुनिभे नेत्रे च वृत्तं शिरः॥३७॥
सलिलाशयेषु रमते स्त्रीषु न तृप्तिं प्रयाति कामार्तः।
षोडशशतानि तुलितोऽड्गुलानि दैर्घ्येण षण्णवतिः॥३८॥
पातीह देशान्खलु शूरसेनान्गान्धारगंगायमुनान्तरालान्।
जीवेदनूनां शतवर्षसंख्या पश्चाद्वनान्ते समुपैति नाशम्॥३९॥
श्रीमान् कल्याण वर्मा जी द्वारा विरचित महान ग्रंथ सारावली के अनुसार भी हंस योग में जन्मे जातकों को लगभग इसी प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है। वे इससे आगे बढ़कर कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति का जन्म उसकी कुंडली में हंस योग के साथ होता है तो ऐसा व्यक्ति लालिमा लिए हुए मुख्य मंडल वाला ,ऊंची नाक और सुंदर पैरों वाला तथा प्रसन्नचित्त व्यक्ति होता है। ऐसा व्यक्ति शुद्ध गौर वर्ण, मोटे गालों वाला और लालिमा लिए हुए नाखूनों वाला होता है। उसके शरीर में कफ का आधिक्य होता है और हंस के समान उसके शब्द होते हैं। उसके हाथ व पैरों में शंख, कमल, अंकुश, रज्जू, दो मीन अर्थात् मछलियाँ, शैय्या, धनुष, आदि की रेखाएं होती हैं। ऐसे व्यक्ति का मस्तक गोल होता है। इन्हें जल के समीप वाले स्थान अति प्रिय होते हैं। यह काम से पीड़ित हो सकते हैं। ऐसे जातक तोल में 1600 तुला होते हैं और इनकी लंबाई 96 अंगुल होती है। जिनका जन्म इस योग में होता है, वह पुरुष शूरसेन, गांधार और गंगा जमुना के मध्य देशों के पालक होते हैं तथा सौ वर्ष की आयु प्राप्त करके वनान्त में मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वस्तुतः जो कुछ इन श्लोकों में लिखा है, यह उस समय के हिसाब से तो समुचित है जब इन ग्रन्थों की रचना की गई थी लेकिन वर्तमान समय में भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार इनके परिणाम जाने जा सकते हैं। इससे इस बात का ज्ञान होता है कि हंस योग में जन्मा व्यक्ति काफी बुद्धिमान होता है और वह हंस के समान नीर क्षीर विवेकी होता है क्योंकि जिस प्रकार एक हंस जल और दूध को मिला देने से भी उसमें से जल और दूध को अलग-अलग करने की सामर्थ्य रखता है, उसी प्रकार हंस योग में जन्मे जातक भी अच्छाई और बुराई दोनों में आसानी से भेद कर सकते हैं और सद् मार्ग को चुनने वाले होते हैं।
जिस व्यक्ति की कुंडली में हंस योग विद्यमान होता है, वैसे तो उसके जीवन में इस योग के फल प्रारंभ में ही दिखाई देने शुरू हो जाते हैं लेकिन इन फलों में बढ़ोतरी तब होती है जब उसकी कुंडली में इस योग का निर्माण करने वाले ग्रह अर्थात बृहस्पति की महादशा आती है। इस महादशा में व्यक्ति को हंस योग के सभी फल मिलने लग जाते हैं। इसके अतिरिक्त, यदि बृहस्पति की अंतर्दशा अथवा प्रत्यंतर दशा शुभ ग्रह की महादशा के अंतर्गत आती है तो भी इस पंच महापुरुष योग के फल दिखाई देने लग जाते हैं।
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि केवल कुंडली में इस योग का निर्मित हो जाना ही सही फलों को देने में सक्षम नहीं होता बल्कि यह देखना भी आवश्यक होता है कि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति क्या है, क्या वह कारक है या फिर अकारक, क्या वह शत्रु स्थिति में है अथवा क्या इस योग के निर्माण के बावजूद वह पीड़ित अवस्था में है या पाप ग्रहों से उसका संबंध है क्योंकि यदि ऐसी स्थिति बनती है तो इस ग्रह के फलों में कमी आ जाती है। इसके अतिरिक्त, यदि नवांश कुंडली में देव गुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि में अथवा शत्रु राशि में अथवा पीड़ित अवस्था में होते हैं तो भी जन्म कुंडली में इस राज योग के बनने के बावजूद इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते बल्कि उनमें अल्पता या शून्यता आने लग जाती है। यही वजह है कि अक्सर लोग यह कहते सुने जाते हैं कि मेरी कुंडली में तो इतने राजयोग होने के बावजूद मुझे उनका फल नहीं मिल रहा और कई बार तो स्थिति ऐसी भी होती है कि उनके जीवन में इस ग्रह की महादशा आती ही नहीं है या फिर बहुत विलंब से आती है। इस वजह से भी उन्हें इसके संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाते। इसीलिए इन सभी बिंदुओं पर विचार करने के बाद ही इस राज योग के फलों के बारे में कथन करना चाहिए।
हंस पंच महापुरुष योग उदाहरण कुण्डली
ऊपर हमने जाना कि कुंडली में बृहस्पति की स्थिति के अनुसार हंस पंच महापुरुष योग का निर्माण कैसे होता है लेकिन उदाहरण कुंडलियों से इनको स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है, जो हमने आपके ध्यानार्थ और अवलोकनार्थ नीचे प्रस्तुत की हैं। इन्हें देखकर आप हंस योग के निर्माण के बारे में और आसानी से समझ सकते हैं:
(उदाहरण कुंडली – 1)
उपरोक्त उदाहरण कुंडली – 1 को देखें। यह कुंडली मिथुन लग्न की है और इस कुंडली में केंद्र भाव अर्थात सप्तम भाव में बृहस्पति ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि धनु में विराजमान हैं। इस प्रकार देव गुरु बृहस्पति इस कुंडली में हंस योग का निर्माण कर रहे हैं।
(उदाहरण कुंडली – 2)
ऊपर दी गई उदाहरण कुंडली – 2 मेष लग्न की कुंडली है जिसके चतुर्थ भाव में अपनी उच्च राशि कर्क में देव गुरु बृहस्पति विराजमान हैं। इस प्रकार इस कुंडली में गुरु बृहस्पति द्वारा निर्मित हंस पंच महापुरुष योग का निर्माण हो रहा है।
आप अपनी व्यक्तिगत राज योग रिपोर्ट के माध्यम से अपनी कुंडली में कई राज योगों के गठन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।