संत कबीर ने कहा था :
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने। गोबिंद दियो बताय॥
अर्थात :
गुरु और गोविंद यानी कि भगवान, एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरु को अथवा गोविंद को? ऐसी स्थिति में गुरु के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह महज एक दोहा नहीं है बल्कि सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में गुरु के स्थान और महत्व का सार है। सनातन धर्म में हमेशा से गुरुओं को विशेष स्थान दिया गया है। हमने बचपन में ही एकलव्य की कहानी भी सुनी है जहां गुरु के एक आदेश पर एकलव्य अपना अंगूठा काट कर गुरु के चरणों में रख देता है, बिना ये सोचे कि इसके बाद वह तीर कैसे चलाएगा या धनुष कैसे उठाएगा। माता सीता के स्वयंवर में भगवान राम द्वारा भगवान शिव के धनुष को तोड़ देने के बाद, इसे गुरु का अपमान मानकर भगवान परशुराम तो भगवान श्री राम से युद्ध करने चले आए थे।
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ऐसे ही न जाने कितने किस्से हैं और कितने दोहे सनातन धर्म और हिन्दुस्तानी परंपरा के ताने-बाने को बुनते हुए हमारे आसपास बिखरी हुई हैं जो हमें गुरु की महत्ता बताती है। ये सारी बातें इसलिए क्योंकि जल्द ही गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व आ रहा है। ऐसे में इस पर्व की पवित्रता को देखते हुए आज हम आपको इस लेख में गुरु पूर्णिमा की तिथि, महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि की जानकारी देने वाले हैं।
आज है गुरु पूर्णिमा
प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार हिन्दू वर्ष के चौथे महीने आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। साल 2021 में गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को शनिवार के दिन यानी कि आज मनाई जाने वाली है। हिन्दू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि 23 जुलाई को शुक्रवार की सुबह 10 बजकर 45 मिनट से शुरू हो जाएगी और अगले दिन 24 जुलाई को शनिवार की सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। ऐसे में गुरु पूर्णिमा का पर्व 24 जुलाई को रखा जाएगा।
गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है?
मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है। सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु का दर्जा प्राप्त है क्योंकि सबसे पहले मनुष्य जाति को वेदों की शिक्षा उन्होंने ही दी थी। इसके अलावा महर्षि वेदव्यास को श्रीमद्भागवत, महाभारत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा के अलावा 18 पुराणों का रचियाता माना जाता है। यही वजह है कि महर्षि वेदव्यास को आदि गुरु का दर्जा प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष तौर पर महर्षि वेदव्यास की पूजा होती है।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठें और घर की साफ-सफाई करने के बाद नहा लें और फिर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा का संकल्प लें और एक साफ-सुथरी जगह पर एक सफेद वस्त्र बिछाकर व्यास पीठ का निर्माण करें। इसके बाद गुरु व्यास की प्रतिमा उस पर स्थापित करें और उन्हें रोली, चंदन, पुष्प, फल और प्रसाद अर्पित करें। गुरु व्यास के साथ-साथ शुक्रदेव और शंकराचार्य आदि गुरुओं का भी आवाहन करें और ‘गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये’ मंत्र का जाप करें।
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