Gupt Navratri 2021: आज है गुप्त नवरात्रि का पांचवां दिन, पढ़ें इस दिन की कथा

प्रत्येक वर्ष में माघ माह में आने वाले नवरात्रि को माघ नवरात्रि (Magh Navratri) या गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 12 फरवरी को शुरू हुए गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri 2021) का आज यानी 16 फरवरी 2021 के दिन पांचवा दिन है। आज के दिन मां छिन्नमस्ता (Maa Chinnamasta) की पूजा का विधान बताया गया है। मां छिन्नमस्ता को चिंतपूरनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। 

जो कोई भी भक्त इस दिन सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ मां छिन्नमस्ता की पूजा करता है मां उनके सभी कष्ट और परेशानियां दूर कर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। बात करें अगर मां छिन्नमस्ता के स्वरूप की तो देवी ने अपने ही एक हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर लिया है और दूसरे हाथ में कटार धारण की है। मां छिन्नमस्ता को भगवती त्रिपुर सुंदरी का रौद्र रूप माना जाता है। 

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गुप्त नवरात्रि महत्व (Gupt Navratri Mahatva)

गुप्त नवरात्रि मां सरस्वती की पूजा के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में जिन भी जातकों को शिक्षा के संदर्भ में कोई बाधा या कठिनाई आ रही हो उन्हें गुप्त नवरात्रि के दौरान व्रत और पूजा करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा गुप्त नवरात्रि के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि, जो कोई भी लोग गुप्त नवरात्रि का व्रत और उपवास करते हैं उन्हें अपने इस व्रत उपवास के बारे में बातें अन्य लोगों से गुप्त रखनी होती है। ऐसा करने से व्यक्ति को व्रत और पूजा का फल शीघ्र और ज्यादा प्राप्त होता है। 

गुप्त नवरात्रि के दौरान मां कालीके, त्रिपुर सुंदरी, तारा देवी, माता चित्रमस्ता, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, माता बगलामुखी, मां धूमावती, मातंगी, कमला देवी की पूजा का विधान बताया गया है। 

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मां छिन्नमस्ता से जुड़ी पौराणिक कथा (Maa Chinnamasta Katha)

ऐसी मान्यता है कि, गुप्त नवरात्रि के दौरान जो कोई भी भक्त मां छिन्नमस्ता की इस पौराणिक कथा का पाठ करता है, खुद सुनता है और दूसरों को सुनाता है उससे मां अवश्य प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती है। 

तो जानते हैं देवी छिन्नमस्ता से संबंधित पौराणिक कथा। 

प्राचीन समय में नागपुर में राज नाम के एक राजा हुआ करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। एक बार पूर्णिमा की रात में राजा शिकार खेलने निकल पड़े। रात हो गई तो थक कर विश्राम करने के लिए राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर रुक गए। सोते समय उन्हें अपने सपने में लाल रंग के वस्त्र पहने एक कन्या नज़र आई। 

सपने में आई उस कन्या ने राजा से कहा कि, ‘तुम्हारे जीवन में सब कुछ होने के बावजूद संतान ना होने की वजह से तुम्हारा जीवन सूना लगता है। ऐसे में अगर तुम मेरी आज्ञा मानोगे तो तुम्हें जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी।’ इतना देखते ही राजा अचानक ही नींद से उठ गए और इधर उधर भटकने लगे। तभी उन्हें जल के भीतर वही कन्या दोबारा नजर आई। 

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उस कन्या का रूप बेहद ही अलौकिक था। राजा को देख उस कन्या ने कहा, ‘हे राजन! मुझसे डरो मत। मैं छिन्नमस्ता देवी हूँ। कलयुग में लोग मुझे नहीं जानते हैं। मैं काफी समय से गुप्त रूप से यहां निवास कर रही हूं। आज मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौ महीने के भीतर तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी।’ 

आगे उस कन्या ने कहा कि, ‘मिलन स्थल के पास ही तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। यहां मेरी एक प्रतिमा है। तुम सुबह उठकर मेरी पूजा करना। इतना कहते हुए वो कन्या (छिन्नमस्ता देवी) अंतर्ध्यान हो गई। बताया जाता है कि, इसके बाद से ही इस पवित्र तीर्थ को रजरप्पा के रूप में जाने जाने लगा।

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