साल 2021 में गुड़ी पड़वा का पर्व 13 मार्च को पड़ रहा है। पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नए साल की शुरुआत होती है और इसी दिन यह पर्व मनाया जाता है। यह पर्व देश के कई हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ख़ास कर के महाराष्ट्र में इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है। गुड़ी पड़वा दो शब्दों से मिल कर बना है, गुड़ी और पड़वा। इसमें ‘गुड़ी’ का अर्थ है ‘पताका’ और ‘पड़वा’ का अर्थ होता है ‘प्रतिपदा’।
इस दिन महाराष्ट्र में लोग सुबह उठ कर तेल का उबटन लगाकर स्नान करते हैं। घरों में इस दिन ‘पूरन पोली’ बनाई जाती है। पूरन पोली एक प्रकार की मीठी रोटी होती है जिसे गुड़, नमक, इमली, नीम, कच्चा आम आदि डाल कर बनाया जाता है। कई घरों में इस दिन श्रीखंड भी बनाया जाता है। इस दिन बेहतर स्वास्थ्य के लिए गुड़ के साथ नीम के कोपलों को खाने की भी परंपरा है। लोग इस दिन घर के सामने या छत पर पताका लहराते हैं और आम के पत्तों को रस्सी में गूँथ कर घर के सामने लगाते हैं। इस दिन लोग अपने घर के आंगन में रंगोली भी बनाते हैं। इस दिन विशेषकर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इसके साथ साथ इस दिन भगवान श्री राम, माँ दुर्गा और हनुमान जी की भी पूजा होती है।
लेकिन गुड़ी पड़वा सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सिमित नहीं है बल्कि इसे देश के और हिस्सों में भी अलग-अलग नामों के साथ मनाया जाता है। जैसे कि कर्नाटक में स्थानीय लोग इसे युगाड़ी पर्व कहते हैं जबकि कश्मीर में नवरेह के नाम से इस पर्व को जाना जाता है। महाराष्ट्र के अलावा यह पर्व गोवा और केरल जैसे राज्यों में भी मनाया जाता है।
गुड़ी पड़वा तिथि, दिन और शुभ मुहूर्त
तिथि: 13 अप्रैल 2021
दिन: मंगलवार
प्रतिपदा तिथि आरंभ: 12 अप्रैल, सोमवार की सुबह 08 बजे से.
प्रतिपदा तिथि समाप्त: 13 अप्रैल, मंगलवार की सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक.
क्या है गुड़ी पड़वा की कथा?
गुड़ी पड़वा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इसमें से एक कथा के अनुसार यह पर्व भगवान राम से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि त्रेता युग में भारत के दक्षिणी राज्यों पर सुग्रीव के भाई बालि का राज हुआ करता था। बालि ने सुग्रीव से छल कर के उसका राज्य हड़प लिया था और उसकी पत्नी का भी अपहरण कर लिए था। ऐसे में जब भगवान राम माता सीता की तलाश में दक्षिण में पहुंचे तो सुग्रीव ने उनसे मदद मांगी जिसके फलस्वरूप भगवान राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव की सहायता की थी। माना जाता है कि जिस दिन बालि का वध हुआ था उस दिन गुड़ी पड़वा का दिन था।
एक और कथा के अनुसार राजा शालिवाहन ने इसी दिन अपना राज्य वापस लिया था। राजा शालिवाहन के पिता का राज्य छल से हड़प लिया गया था और उनकी परवरिश बचपन से ही एक कुम्हार के घर हुई। उन्हें एक विशेष वरदान प्राप्त था जिसके अनुसार वह किसी भी मिट्टी की वस्तु में प्राण फूंक सकते थे। ऐसे में उन्होंने अपनी ख़ुद की मिट्टी की सेना बनाकर उसमें प्राण फूंक दिए थे।
एक मान्यता यह भी है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण किया था। यही वजह है कि कई लोग गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी मानते हैं और वहीं कुछ लोग इसे इन्द्रध्वज भी कहते हैं।
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