गीता जयंती पर जानें क्या कहता हैं श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश !

गीता जयंती का पावन दिवस, देशभर में श्रीमद्भगवद् गीता की प्रतीकात्मक जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। मान्यता अनुसार इस विशेष दिन श्रीमद्भगवद् गीता के दर्शन मात्र करने से ही, किसी भी व्यक्ति के समस्त दुखों का नाश हो जाता है और वो व्यक्ति अपने जीवन में केवल और केवल सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए, हर सफलता प्राप्त करता हैं। इसके साथ ही इस दिन श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों का वाचन करना भी शुभ होता है, क्योंकि इससे व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म के सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है। शायद इसलिए ही गीता जयंती का महत्व सनातन धर्म में विशेष बताया गया है। 

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गीता जयंती : महत्व

द्वापर युग में गीता जयंती का ही वो शुभ दिन था, जब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने अपने मित्र और साथी, महान धनुर्धर अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने धर्म और कर्म से भटकने पर, गीता का ज्ञान देते हुए उन्हें वापस अपने मार्ग पर लाने का कार्य किया था। तभी से हिंदू समुदाय में श्रीमद्भगवद् गीता को सर्वोच्च, सबसे पवित्र ग्रंथ का दर्जा मिला। शायद इसलिए आज दुनियाभर में सनातन धर्म के अनुयायियों में श्रीमद्भगवद् गीता का विशेष स्थान है।

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यह लाल कपड़े में लिपटी वह पवित्र पुस्तक हैं, जिसमें आपको ब्रह्मांड की प्रत्येक चीज का उल्लेख मिल जाएगा। इसका पाठ करने से, न केवल व्यक्ति के जीवन से अज्ञानता के अंधेरे दूर होते हैं, बल्कि जीवन की सच्चाई ज्ञात करने में भी मदद मिलती है। गीता के इस अमोल ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ही, हर वर्ष गीता जयंती मनाए जाने का विधान है। यह पवित्र दिन मोक्षदा एकादशी के साथ पड़ता है, ऐसे में इस दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत भी किए जाने की परंपरा है। जिसके चलते लोग गीता जयंती के दिन गीता के पाठ के साथ-साथ, भगवान कृष्ण और व्यास ऋषि की भी पूजा कर व्रत रखते हैं। 

गीता जयंती के दिन इन बातों का रखें विशेष ध्यान: 

गीता जयंती के दिन हर किसी को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:-

  • गीता जयंती के दिन स्वच्छ मन से श्रीमद भगवद्गीता के दर्शन कर, भगवान श्रीकृष्ण के भी दर्शन करने चाहिए। 
  • इसके बाद उनसे सद्बुद्धि की प्राप्ति हेतु, प्रार्थना करें। 
  • अगर संभव हो तो, गीता के कुछ श्लोकों को भी पढ़कर उनका अर्थ समझते हुए, उन्हें अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करें। क्योंकि गीता में ऐसे अनेकों श्लोक आपको मिल जाएंगे, जिनका अर्थ समझकर उन्हें अपने जीवन में अपनाने से, आपके समस्त कष्टों का निवारण किया जा सकता है।
  • मान्यता अनुसार, गीता जयंती के दिन मोक्षदा एकादशी व्रत रखने के साथ-साथ, शंख पूजन करना भी बेहद लाभकारी होता है। क्योंकि इस पूजन के उपरांत शंख की ध्वनि से निकलने वाली ऊर्जा बुरी शक्तियों का नाश कर, माता लक्ष्मी का आगमन करने में मदद करती हैं। इससे भगवान विष्णु भी अत्यंत प्रसन्न होकर कृपा करते हैं। 
  • इस दिन कई लोग, श्री कृष्ण के विराट स्वरूप का पूजन भी करन शुभ मानते हैं। इससे उनके सभी अधूरे पड़े या बिगड़े काम बनते हैं, एवं व्यक्ति को शांति का आभास होता है। 
  • जिस भी परिवार में कलह, क्लेश या झगड़े होते हैं, उन्हें तो विशेष रूप से गीता जयंती के दिन गीता का पाठ करना प्रारंभ करना चाहिए। 
  • अगर आपके घर पर श्रीमद्भगवद्गीता नही है तो, गीता जयंती के दिन इस पवित्र धार्मिक ग्रंथ को घर लेकर आना बेहद शुभ माना गया है। कहा जाता हैं कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी सालभर के लिए आपके घर में विराजमान हो जाती है। 

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गीता जयंती मुहूर्त 2020

हिंदू पंचांग के अनुसार गीता जयंती का पर्व, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने का विधान है। और इस वर्ष 2020 में गीता जयंती 25 दिसंबर को मनाई जाएगी। चूंकि इस वर्ष इस दिन मोक्षदा एकादशी भी मनाई जाएगी, इसलिये इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। 

मोक्षदा एकादशी को मोह का नाश करने वाली एकादशी कहा गया है। श्रीमद्भगवद् गीता अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन, मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश श्री कृष्ण द्वारा दिया गया था। अत: मोक्षदा एकादशी के दिन ही, हर वर्ष गीता जयंती भी मनाई जाती है। आइए अब हम वर्ष 2020 के, इस पर्व के शुभ मुहूर्त पर डालते हैं एक नज़र:-

मोक्षदा एकादशी मुहूर्त 2020

                           मोक्षदा एकादशी पारणा मुहूर्त शुरु         08:32:00 से, 26 दिसंबर, 2020
                मोक्षदा एकादशी पारणा मुहूर्त समाप्ति         09:16:03 तक, 26 दिसंबर, 2020
                          समयकाल 0 घंटे 44 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय08:32:00 पर 26, दिसंबर को

नोट: यह मुहूर्त नई दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों के लिये ही प्रभावी है। अपने शहर या कस्बे के लिये सही मुहूर्त की जानकारी के लिये यहां क्लिक करें।  

गीता जयंती: मोक्षदा एकादशी 2020 पारणा मुहूर्त 

पंचांग अनुसार व्रत रखने वाले को एकादशी के अगले दिन, सूर्योदय के बाद पारण कर लेना चाहिए। ऐसे में मोक्षदा एकादशी की पारण भी द्वादशी तिथि के समापन होने से पूर्व ही करना आवश्यक होगा। क्योंकि पारणा मुहूर्त अनुसार न करने से व्रती, पाप का भागी बनता है। 

इसी अनुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत रखने वाले को 25 दिसंबर 2020, शुक्रवार को सूर्योदय के बाद से ही अन्न त्यागकर व्रत करना चाहिए और फिर अगले दिन 26 दिसंबर 2020, शनिवार के दिन सुबह  08 बजकर 32 मिनट से 09 बजकर 16 मिनट के मध्य ही पारण करनी है। व्रती के पास पारण के लिए इस वर्ष मात्र 44 मिनट का समय ​होगा। 

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मोक्षदा एकादशी 2020 व्रत की पूजा विधि

शास्त्रों अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वेद व्यास और श्रीमद् भागवत गीता का सच्चे मन से पूजन कर व्रत किया जाता है। ऐसे में इस दिन व्रत और पूजा करने के भी कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक बताया गया है। आइये जानते हैं मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजा विधि:-

1.  इस एकादशी के व्रत से ठीक एक दिन पूर्व दशमी तिथि को केवल दोपहर में एक बार ही भोजन करें। ध्यान रहे दशमी के दिन रात्रि भोजन न करते हुए व्रत करने का संकल्प लेना होता है। 

2.  फिर एकादशी के दिन सूर्योदय से ही पूर्व उठकर स्नान कर और व्रत का अच्छे मन से पुनः संकल्प लें।

3.  एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लेने के पश्चात, भगवान श्री कृष्ण की पूजा कर उन्हें नमन करें। इसके साथ ही उन्हें इस दौरान धूप ,दीप और नैवेद्य आदि अर्पित करें। 

4. एकादशी के दिन रात्रि में भी, भगवान श्री कृष्ण की पूजा और जागरण करने का विधान है। 

5. फिर एकादशी के अगले दिन, द्वादशी को व्रत पारणा के मुहूर्त से पूर्व ही पूजन कर, ज़रूरतमंदों को भोजन व दान-दक्षिणा दें। फिर उसके बाद ही मुहूर्त अनुसार, भोजन ग्रहण करते हुए व्रत की पारणा करें/ व्रत खोलें। 

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मोक्षदा एकादशी का पौराणिक महत्व 

पौराणिक मान्यता अनुसार, प्राचीन काल में गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा का शासन हुआ करता था। एक दिन जब राजा निंद्रा में थे, तो उन्हें सपना आया कि उनके पिता मरने के बाद से ही नर्कलोक में दुख भोग रहे हैं और राजा वैखानस से अपने उद्धार की प्रार्थना कर रहे हैं। अपने पिता की यह दशा देख, राजा व्याकुल हो गए। 

राजा ने तुरंत अपने दरबार में राज्य के विद्वान को बुलाकर, उनसे अपने स्वप्न का भेद पूछा। तब ब्राह्मणों ने राजा को, उनकी समस्या का समाधान बताते हुए कहा कि, “हे राजन! यदि आप अपने पिता का उद्धार करना चाहते हैं तो, तुरंत पर्वत नामक मुनि के आश्रम में जाकर उनसे ही अपनी इस समस्या का उपाय पूछे।”

विद्वानों के कहे अनुसार, राजा ने ऐसा ही किया और वो पर्वत मुनि के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचने। जहाँ मुनि ने राजा से कहा कि, “हे राजन! आपके पिता के पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण ही, उन्हें नर्कलोक प्राप्त हुआ है। ऐसे में यदि आप उन्हें नर्क लोक से मुक्ति दिलाना चाहते हैं तो, मोक्षदा एकादशी का व्रत करें और उसका फल अपने पिता को अर्पण करें। तभी आपके पिता को मुक्ति मिलेगी।”

 राजा ने मुनि के निर्देशानुसार पूरे विधि विधान अनुसार, मोक्षदा एकादशी का व्रत कर, ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि, अर्पित किये। जिसके परिणामस्वरूप ही एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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