माँ सिद्धिदात्री देवी को समर्पित इस दिन का सही पूजन मुहूर्त-महत्व और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ

नवदुर्गा का नौवां स्वरूप माँ सिद्धिदात्री

नवरात्रि का नौवां और आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है। इस नौवें दिन को नवमी भी कहते हैं और बहुत से लोग नवमी तिथि के दिन ही नवरात्रि व्रत का पारणा करते हैं। मां सिद्धिदात्री देवी को सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली माना गया है। मान्यता है कि जो कोई भी व्यक्ति सिद्धिदात्री माँ की पूजा करता है ऐसे व्यक्तियों को जीवन में हर तरह का ज्ञान प्राप्त होता है और उनके जीवन में कोई भी कष्ट नहीं रहता है।

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नवरात्रि तिथि के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। तो अपने इस विशेष आर्टिकल में जानते हैं मां सिद्धिदात्री की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है? कन्या पूजन की सही विधि क्या होती है? नवरात्रि व्रत पारणा का मुहूर्त क्या है? और साथ ही इस दिन का महत्व क्या होता है?

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नवमी तिथि 2021 और पूजा का शुभ मुहूर्त 

नवमी तिथि प्रारम्भ – 13 अक्टूबर 2021 – 20:09

समाप्ति काल – 14 अक्टूबर 2021 – 18:54

नवमी पूजन मानने वाले लोग गुरुवार, 14 अक्टूबर को 

अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। 

अमृत काल सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक है 

ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 49 मिनट से  5 बजकर 37 मिनट तक है।  

देवी सिद्धिदात्री का महत्व और प्रभाव  

देवी दुर्गा माँ की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं। नवदुर्गा पूजन में नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि |

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||

अर्चन – पूजन से हर आम व्यक्ति को देवी माँ की कृपा से अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो माँ की कृपा के पात्र बनते ही हैं। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है।

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या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

रत्न को क्रियाशील करके पाएं माँ सिद्धिदात्री देवी की विशेष कृपा

नवरात्री की नवमी तिथि मां सिद्धिदात्री को समर्पित होती है। इसके अलावा ग्रहों में केतु ग्रह पर मां सिद्धिदात्री का आधिपत्य माना गया है। ऐसे में नवरात्रि की नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की विधिवत पूजा करने से कुंडली में मौजूद केतु ग्रह के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने में मदद मिलती है। इसके अलावा जिन लोगों की कुंडली में केतु ग्रह शुभ स्थिति में ना हो या उसके नकारात्मक प्रभाव जीवन में मिल रहे हैं उन्हें किसी जानकार ज्योतिषी से परामर्श करके इस दिन लहसुनिया रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। 

लहसुनिया रत्न धारण करने से आपको केतु ग्रह के शुभ परिणाम तो मिलेंगे ही साथ ही आप जो कोई भी कार्य करेंगे उसमें आपको सफलता हासिल होगी। 

नौवें दिन का विशेष भोग 

नवमी तिथि पर माँ को तिल का भोग लगाने से शुभ परिणाम हासिल होते हैं। इसके अलावा इस दिन की पूजा में माँ को पूड़ी और हलवे का भोग लगाना भी फलदायी रहता है।

माँ सिद्धिदात्री मंत्र 

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा से मिलने वाला फल

माँ सिद्धिदात्री की कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर हर आम व्यक्ति सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम यानि नौवीं देवी स्वररूपा है। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। 

सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त की सभी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। 

माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम बताया गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए उपरोक्त दिये श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।

नवरात्रि नवमी: कन्या पूजन महत्व-विधि 

हिंदू धर्म में मां दुर्गा को शक्ति, सुख और समृद्धि देने वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है। कहते हैं छोटी बच्चियों में मां दुर्गा साक्षात वास करती हैं और यही वजह है कि नवरात्रि की नवमी और अष्टमी तिथि के दिन कई लोग कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन में 2 वर्ष से 10 वर्ष के बीच की कन्याओं को घर बुलाया जाता है, उनके चरण छुए जाते हैं, आरती उतारी जाती है, और फिर उन्हें सम्मान के साथ भोजन कराया जाता है। अंत में दोबारा उनके हाथ और पैर धोये  जाते हैं और उन्हें उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। कहते हैं ऐसा करने से मां दुर्गा बेहद ही प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

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कन्या पूजन विधि

  • सबसे पहले कन्याओं को 1 दिन पूर्व या समय से निमंत्रण कर लें। 
  • घर आने के बाद कन्याओं को एक साफ़ स्थान पर बैठा दें और उनके चरण धोएं। 
  • कन्याओं को लाल रंग की चुनरी ओढ़ा दें।
  • इसके बाद कन्याओं की पंचोपचार विधि से पूजा करें और उन्हें और भोजन कराएं। 
  • इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भोजन में कुछ मीठा अवश्य शामिल करें। 
  • भोजन कर लेने के बाद कन्याओं के पैर और हाथ वापस धुल कर उनका तिलक करें और अपनी श्रद्धा से उन्हें उपहार भेंट करें। 
  • अंत में चरण छूकर कन्याओं का आशीर्वाद लें।

मान्यता है कि, कन्या पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है और दुख दरिद्रता दूर होती है। साथ ही मां को प्रसन्न करने के लिए भी कन्या पूजन बेहद ही उपयुक्त साधन बताया गया है। हालांकि कन्या पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जिन कन्याओं को आप घर पर निमंत्रण दे रहे हैं या जिन्हें भोजन करा रहे हैं उनकी उम्र 2 से 10 वर्षों के बीच होनी चाहिए और मुमकिन हो तो कम से कम 9 कन्याओं को भोजन अवश्य कराएं। साथ ही कन्या पूजन में हमेशा एक बालक भी अवश्य शामिल करें। कहा जाता है बालक बटुक भैरव का रूप होते हैं और इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

नोट: ज़रूरी नहीं है कि आप घर पर ही बुलाकर कन्याओं को भोजन कराएं, आप चाहें तो किसी मंदिर या ज़रुरतमंदों को भी भोजन दान में दे सकते हैं।

महानवमी के महा-उपाय जगा देंगे किस्मत 

  • महा नवमी के दिन भोजपत्र पर केसर की स्याही से दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम लिखकर मां के 108 नामों का स्पष्ट उच्चारण करते हुए हवन करें। हवन के बाद भोजपत्र चांदी में जड़वा कर अपने शरीर में ताबीज या माले की तरह धारण कर लें। इसके अलावा आप चाहे तो इस भोजपत्र को डिब्बी में सुरक्षित करके धन रखने वाली जगह पर भी रख सकते हैं। इस उपाय को करने से आपके जीवन में धन की कमी दूर होगी और धन प्राप्ति के योग बनने लगेंगे।
  • इसके अलावा यदि महा नवमी के दिन आम की संविदा से हवन करते हैं और उसमें गाय के शुद्ध घी में कमलगट्टे डुबोकर सप्तशती का पाठ करते हुए आहुति देते हैं तो इससे कर्ज की समस्या दूर होने लगेगी। साथ ही यदि आपका धन कहीं अटका हुआ है तो वह भी आपको पुनः मिल जाएगा।
  • कर्ज से छुटकारा पाने के लिए एक अन्य उपाय आप यह भी कर सकते हैं कि हवन पूरा होने के बाद घर पर नौ कन्याओं को बुलाकर उनकी पूजा करके उन्हें भोजन कराएं और उन्हें खीर अवश्य खिलाएं।
  • महा नवमी के दिन यदि आप दुर्गा सप्तशती के 12 वें अध्याय का 21 पाठ स्पष्ट उच्चारण पूर्वक और ध्यान मग्न होकर करते हैं तो इससे आपकी नौकरी या व्यापार में आने वाली परेशानियां दूर होगी और आपको सफलता मिलने लगेगी।

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