महाभारत एक महाकाव्य है और इस महकाव्य में अनेकों पौराणिक कथाएं हैं जिनमें से कुछ के बारे में हम जानते हैं तो वहीं कुछ ऐसी भी कथाएं हैं जिनसे हम अनजान हैं। इसी महाकाव्य में एक पात्र हैं द्रौपदी। द्रौपदी राजा द्रुपद की पुत्री थीं। द्रौपदी बहुत सुंदर थीं ऐसे में उचित समय आने के बाद राजा द्रुपद ने अपनी बेटी के लिए सुयोग वर ढूंढने की चाह में स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में कई देशों के राजाओं ने भाग लिया।
राजा ने इस स्वयंवर की शर्त यह रखी थी कि जिस भी राजा को द्रौपदी से विवाह करना है उसे खुद को सुयोग वर साबित करना होगा। इसके लिए उन्हें महल में रखे धनुष को उठाकर उसपर प्रत्यंचा चढ़ानी थी और फिर नीचे पानी में देखकर ऊपर छत पर घूम रही मछली की आँख का निशाना लगाना था। इस स्वयंवर में आये सभी राजा यही चाहते थे कि ये स्वयंवर वही जीतें क्योंकि राज-कुमारी थी भी काफी सुन्दर और उन के पिता यानी राजा द्रुपद शक्तिशाली राजा थे। बताया जाता है कि द्रौपदी के इस स्वयंवर में उनके मित्र भगवान श्रीकृष्ण भी मौजूद थे और साथ ही अपना वेष बदलकर सभी पांडव भी यहां पहुंचे थे।
कर्ण को माना गया सूत पुत्र
बताया जाता है कि धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन भी इस स्वयंवर में मौजूद थे, लेकिन उनके मन में इस बात की शंका थी कि अगर किसी भी वजह से वह स्वयंवर की शर्त पूरी नहीं कर सके तो सभी राजाओं के सामने उन्हें अपमानित होना पड़ेगा। इसी बात के डर से उन्होंने प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया और ना ही उन्होंने लक्ष्य भेदने की कोशिश की। इसी स्वयंवर में कर्ण भी आये हुए थे। कर्ण के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जन्म तो सूर्य पुत्र के रूप में कुंती की कोख से लिया था लेकिन वो पले बढ़े अधीरथ के घर थे जिसके कारण उन्हें सूत पुत्र माना गया और कदम-कदम पर अपमानित होना पड़ा।
इस स्वयंवर में जब भी कोई राजा इस प्रतियोगिता की तरफ आगे बढ़ता तब द्रौपदी चुपके से अपने मित्र भगवान कृष्ण की तरफ देखती थीं। फिर इशारों में भगवान कृष्ण द्रौपदी को ये बताते थे कि ये राजा उनके योग्य है कि नहीं। ऐसा काफी समय तक चला। तभी कर्ण स्वयंवर में हिस्सा लेने के इरादे से आगे बढ़े और देखते-ही-देखते उन्होंने धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा दी।
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द्रौपदी ने कर दिया विवाह से इंकार
भगवान कृष्ण ये बात अच्छे से जानते थे की कर्ण स्वयंवर की शर्त पूरी कर सकता है इसीलिए उन्होंने द्रौपदी की तरफ इशारा किया और कहा की ये तुम्हारे लिए उचित वर नहीं हैं। भगवान कृष्ण का इशारा मिलते ही द्रौपदी ने इस बात की घोषणा कर दी कि वह किसी सूद से शादी नहीं कर सकती।
द्रौपदी की ये बात सुनते ही उनके भाई धृष्टधुम्न ने कर्ण से कह दिया कि मेरी बहन आपसे विवाह नहीं करना चाहती इसलिए आप स्वयंवर में हिस्सा न लें। ये सुनकर कर्ण ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया और क्रोधित होकर वहां से चले जाना ही बेहतर समझा। इसके बाद स्वयंवर में ब्राह्मण के रूप में उपस्थित अर्जुन ने प्रतियोगिता की शर्त पूरी की और द्रौपदी से विवाह किया।
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इसके बाद कर्ण का हुआ था दो विवाह
इस स्वयंवर से अपमानित होने के बाद ऐसा नहीं है कि कर्ण में शादी नहीं की, बल्कि उन्होंने दो शादियाँ की. जी हाँ कर्ण की दो-दो पत्नियाँ थी। कर्ण की पहली पत्नी का नाम था रूषाली, जो कि उनके पिता अधीरथ की पसंद थी। बताया जाता है कि अपने पिता का मान रखने के लिये कर्ण ने रूषाली से विवाह स्वीकार किया था। रूषाली सूत पुत्री थी। इसके अलावा कर्ण की दूसरी पत्नी भी थीं जिनका नाम सुप्रिया था। कर्ण की दोनों पत्नियों रूषाली और सुप्रिया से 9 पुत्र पैदा हुए थे। इन सभी पुत्रों ने महाभारत के युद्ध में भाग भी लिया। युद्ध पूरा होने पर कर्ण का एक पुत्र वृषकेतु जीवित बचा था। जब पांडवों को पता चला कि कर्ण उनका ही बड़ा भाई था तो युद्धिष्ठिर ने राज परंपरा का पालन करते हुए वर्षकेतु को इंद्रप्रस्थ का शासन सौंप दिया।